नई दिल्ली: इस साल के राष्ट्रीय बाल वीरता पुरस्कार की घोषणा कर दी गई है. इस साल कुल 18 बच्चों को इस सम्मान के लिए चुना गया है. इसमें तीन बच्चों को मरणोपरांत ये अवार्ड दिया गया है. सम्मान पाने वाले बच्चों में सात लड़कियां हैं. सभी 18 बहादुर बच्चे 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होंगे और प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से मिलने का मौका मिलेगा. खुद प्रधानमंत्री इन बच्चों को ये सम्मान देंगे.
इस साल का सबसे बड़ा 'भारत अवार्ड' आगरा की रहने वाली नाज़िया को मिला है. नाजिया ने अपने इलाके में चल रहे अवैध सटोरियों के रैकेट को बंद कराने में अहम भूमिका निभाई थी. जबकि इस साल का संज़य चोपड़ा पुरस्कार पंजाब के करनबीर को मिला है जिसने आठ बच्चों को डूबने से बचाया था. साथ ही सात शवों को भी निकालने में मदद की थी. गीता चोपड़ा अवार्ड कनार्टक की नेत्रावती एम चव्हाण को मरणोपरांत दिया गया है.
भारत अवार्ड: वीरता का सबसे बड़ा पुरस्कार है. ये अवार्ड आगरा की रहने वाली 16 साल की नाज़िया को दिया गया है. आगरा के मंटोला इलाके में 40 साल से चल रहे अवैध जुए और सट्टों के अड्डों के खिलाफ आवाज उठाई. इस गैर कानूनी काम से इलाके के सभी निवासी और दुकानदार आतंकित थे लेकिन नाज़िया ने बिना किसी डर के आवाज उठाई.
नाजिया ने इस अवैध काम के खिलाफ सबूत जुटाए और चार लोगों को जेल भिजवा दिया. लेकिन इसके बाद बदमाश उसके खिलाफ और ज्यादा हो गए. नाज़िया का घर से निकलना दूभर हो गया और उसके घर पर हमले होने लगे. उसके परिवारवाले अपना घर बेचकर कहीं दूर जाने का सोचने लगे. नाजिया ने घर छोड़कर जाने से मना कर दिया. अब उसने सीधे यूपी के मुख्यमंत्री को सीधे ट्वीट किया (जुलाई 2016). फिर क्या था पूरा पुलिस-प्रशासन हरकत में आ गया और बदमाशों और सटोरियों के खिलाफ बड़ा अभियान छेड़ा गया. नाज़िया की सुरक्षा भी सुनिश्चित की गई.
संजय चोपड़ा अवार्ड: 20 सितबंर 2016 को करनबीर स्कूल बस से घर लौट रहा था. तभी बस नाले में जा गिरी. करनबीर बहादुरी पूर्वक बस का दरवाजा तोड़कर बाहर निकला और 15 छोटे बच्चों को बस से बाहर निकलने में मदद की. इस घटना में 08 बच्चों को तो बचा लिया गया लेकिन सात बच्चों की जान चली गई. करनबीर बड़ा होकर पुलिस ऑफिसर बनना चाहता है या फिर सीए.
गीता चोपड़ा अवार्ड: कर्नाटक की रहने वाली नेत्रावती एम चव्हाण ने तालब में डूतो दो बच्चों को बचाया. लेकिन 30 फुट गहरे में खुद डूब गई. निर्भकतापूर्वक खतरे का सामना करते हुए बच्चों की जान बचाते हुए अपने जीवन का बलिदान के लिए नेत्रावती को वीरता पुरस्कार दिया गया.
बापू गाएधानी अवार्ड: मात्र छह साल की ममता दलाई ने मगरमच्छ से मुकाबला किया और अपनी बहन की जान बचाई. ये घटना 06 अप्रैल 2017 को ओडिसा में हुई.
10 जुलाई 2016 को पंकज सेमवाल ने उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल में एक गुलदार (लेपर्ड) से अपनी मां की जान बचाई. अपनी मां को बचाने के लिए पंकज गुलदार से भिड़ गया और एक लकड़ी की मदद से घर से भगा दिया. इस घटना में पंकज की मां घायल हो गई थीं. पकंज के साहसिक और धैर्यपूर्ण शोर्य के लिए वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
1 जुलाई 2016 को समृद्धि घर पर अकेली थी जब एक चोर घर में घुस आया. लेकिन समृद्धि ने हथियारबंद चोर का मुकाबला किया और उसे घर से भगा डाला. इस साहसपूर्ण कारवाई में समृद्धि घायल भी हो गई थी.
राजेश्वरी: 13 साल की राजेश्वरी ने अपनी जान देकर अपनी आंटी और चचेरे भाई को डूबने से तो बचाई लेकिन अपने प्राण दे दिए. घटना 10 नबम्बर 2016 को मणिपुर मे हुई.
कैसे होता है बहादुर बच्चों का चयन
नेशनल ब्रेवरी अवार्ड इंडियन काउंसिल फॉर चाइल्ड वेलफेयर (आईसीसीडब्लू) आर्गनाइज्ड करता है, इस सम्मान के लिए एक हाई-पॉवर कमेटी बनाई जाती है. इस कमेटी में 36 सदस्य होते हैं. इस कमेटी में राष्ट्रपति भवन, आईसीसीडब्लू, रक्षा मंत्रालय, सामाजिक न्याय मंत्रालय, आईपीएस ऑफिसर, बच्चों से जुड़े एनजीओ के सदस्य होते हैं.
सभी जिलों के डीएम अपने-अपने जिलों के बहादुर बच्चों की कहानियां इस कमेटी को भेजते हैं. फिर ये कमेटी इन बच्चों का चयन करती है. 30 सितंबर तक सभी बच्चों की एंट्रिया आ जाना चाहिए.
जानकारी के मुताबिक, 1957 में दो बहादुर बच्चों को तत्कालीन प्रधानमंत्री ने सम्मानित किया था. उसके बाद से हर साल बहादुर बच्चों को सम्मानित किया जाता है. 1957 से अबतक 669 लड़के और 276 लड़कियां को सम्मानित किया जा चुका है. इन बच्चों को आईसीसीडब्लू की तरफ से स्कॉलरशिप, अवार्ड (मेडल) और कैश पुरस्कार दिया जाता है.
ये बहादुर बच्चों देश के दूर दराज के इलाकों से आते हैं और बहुत से तो बेहद ही वंचित परिवारों से ताल्लुक रखते हैं. लेकिन ये अवार्ड मिलने के बाद वे अलग-अलग क्षेंत्र में अपना नाम कर चुके हैं. एक लड़की तो इनदिनों नासा में वैज्ञानिक है. ये बच्चे देशभर के दूसरे बच्चों के लिए भी प्रेरणा के स्रोत हैं.