एक्सप्लोरर

अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसान कब तक बना रहे 'अन्नदाता', खेती क्यों नहीं है मुनाफे का सौदा?

हर साल की तरह इस साल भी राष्ट्रीय किसान दिवस मनाया जा रहा है, लेकिन कृषि के इस पेशे से अब अन्नदाता का मोहभंग होने लगा है.खेती की बढ़ती लागत से कृषि प्रधान देश भारत में ये घाटे का सौदा साबित हो रहा है.

भारत को एक कृषि प्रधान देश है, देश की आबादी में 70 फीसदी लोग किसान हैं, किसान देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, किसान अन्नदाता हैं...बीते 70 सालों से खेती से जुड़े हर शख्स का मन इन्हीं बातों से मोह लिया जाता है. लेकिन जब किसानों की आर्थिक स्थिति की आती है तो आंदोलन और समझौतों के आगे बात नहीं बढ़ पाती. 

23 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री और किसान नेता रहे चौधरी चरण सिंह की जयंती पर किसान दिवस मनाया जाता है. ये दिन सिर्फ औपचारिकताएं निभाने भर का ही है. किसानों की आर्थिक हालत जस की तस पहले से ही बनी हुई है. आर्थिक उदारीकरण का फायदा हर सेक्टर को मिला है. लेकिन किसान इससे पूरी तरह से वंचित रहे हैं. सवाल इस बात का है खेती मुनाफे का सौदा कब बनेगी जब ये सेक्टर ही पूरी अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा आधार है.

एग्रो ब्रेन ड्रेन का शिकार भारत का कृषि सेक्टर
कोरोना महामारी के दौर से बात शुरू करें तो इस दौरान कृषि ही एक ऐसा सेक्टर रहा जिसमें ग्रोथ देखी गई थी. देश में खरीफ सीजन में बंपर पैदावार हुई. भले ही इस दौरान देश के किसानों के एक बड़े हिस्से ने विरोध-प्रदर्शनों में शिरकत की हो. उनका ये विरोध भी उपज के न्यूनतम मूल्य के आश्वासन को लेकर था. ये वो दौर रहा जब हालिया इतिहास में पहली बार खेत, खेती और किसानी राष्ट्रीय बहस का विषय बना.

ये हैरानी की बात भी नहीं क्योंकि देश का हर चौथा वोटर पेशे से किसान है और आर्थिक तौर से कमजोर होने से अब गरीबी और संकट के कगार पर पहुंच गया है.

नतीजा देश की रीढ़ कहे जाने वाले किसान और कृषि सेक्टर मरणासन्न अवस्था को जा पहुंचा है. इसे दोबारा से जीवंत बनाना देश की अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए बेहद जरूरी है. कृषि सेक्टर में कई ऐसी कमियां हैं जो इसके विकास और किसानों की जिंदगी पर असर डालती हैं. साल 2011 की जनगणना के हवाले से कहें तो देश में रोजाना 2,000 किसान खेती छोड़कर कोई दूसरा पेशा अपना रहे हैं.


अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसान कब तक बना रहे 'अन्नदाता', खेती क्यों नहीं है मुनाफे का सौदा?

आलम ये है कि किसान परिवारों का युवा वर्ग भी इस पेशे में दिलचस्पी नहीं ले रहा है. कृषि विश्वविद्यालयों से ग्रेजुएशन करने के बाद भी युवाओं का एक बड़ा तबका दूसरे पेशों को तवज्जो दे रहा है. इस तरह के हालात को एक्सपर्ट 'एग्रो ब्रेन ड्रेन' कहते हैं.  कृषि अर्थव्यवस्था में उपजे इस गंभीर संकट का असर खेतों और गैर-कृषि वर्क फोर्स दोनों पर पड़ा है.

दिल्ली की एक बिजनेस इन्फॉर्मेशन कंपनी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2018-19 में कृषि कुल कीमत (Gross Value) बीते 14 साल में सब कम रही थी. अनुमान के मुताबिक साल 2018-19 में ग्रामीण भारत में 91 लाख नौकरियां और शहरी भारत में 18 लाख नौकरियां खत्म हो गई थीं. इस रिपोर्ट की माने तो देश की कुल आबादी का दो-तिहाई गांवों में बसता है. इस ग्रामीण आबादी में 84 फीसदी की नौकरी छूट गई. 

अगर 2017-18 की नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस की पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे रिपोर्ट पर नजर डाले तो इसके आंकड़े सकते में डालने वाले हैं. रिपोर्ट के मुताबिक 2011-12 और 2017-18 के बीच 3 करोड़ कृषि मजदूरों और  कुछ 3.4 करोड़ अनौपचारिक मजदूरों को  ग्रामीण इलाकों में नौकरियों से हाथ धोना पड़ा. इससे एग्रीकल्चर वर्कफोर्स में 40 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई.

पर्यावरणविद् गुंजन मिश्रा का कहना है कि कृषि से किसानों का मोहभंग होने का सबसे बड़ा कारण लागत का बढ़ जाना है. बढ़ी हुई लागत के बाद भी खेती में उत्पादन उसकी लागत के मुताबिक नहीं हो पाता है और किसान को उतना फायदा नहीं हो पाता कि वो अपने परिवार का खर्च चला सकें तो वो इससे दूर भागने लगते हैं. फिर वो रोजी-रोटी की तलाश में दूसरे सेक्टर की तरफ जाते हैं.

वो कहीं दूसरी जगह नौकरी और व्यापार करने की सोचता है. खासतौर से आज युवा किसान पूरी तरह से खेती से विरक्त हो चुका है. किसानी-खेती से किसानों के दूर जाने की दूसरी वजह जलवायु परिवर्तन है. वैसे तो भारत का किसान मानसून प्रधान खेती का आदी रहा है, लेकिन जलवायु परिवर्तन ने उसकी परेशानी और बढ़ा दी है. कभी सूखा, कभी वर्षा इससे भी खेती को नुकसान पहुंचता है.


अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसान कब तक बना रहे 'अन्नदाता', खेती क्यों नहीं है मुनाफे का सौदा?

बदल रहा है भारत

गांवों का देश भारत ग्रामीण से शहरी अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ रहा है. इससे लोगों के पेशे और उम्मीदों में भी बदलाव महसूस किया जा रहा है. ऐसे में एक गंभीर मसला ये है कि देश की कृषि से जुड़ी आबादी इस पेशे पर ही टिकी रहेगी या फिर अन्य कारोबारों और पेशों की तरफ रुख करेगी. घाटे का सौदा बनता जा रहा कृषि सेक्टर क्या किसानों और कृषि मजदूरों को इस पेशे में टिका पाएगा.

इसे जानने के लिए गांव और शहर के अंतर को समझना जरूरी है और इसके लिए देश के स्थानीय निकायों की संरचना को जानना जरूरी है. एक बस्ती शहरी तब बनती है जब उसकी आबादी कम से कम 5000 की, जनसंख्या घनत्व कम से कम 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी और कम से कम 75 फीसदी पुरुष आबादी कृषि से अलग काम करती हो.

ये सेंसस टाउन के तौर पर पहचानी जाती है. हालांकि इसमें नगरपालिका, निगम, छावनी बोर्ड और एक अधिसूचित नगर क्षेत्र समिति शामिल नहीं होते हैं. 2001 और 2011 की जनगणना पर गौर किया जाए तो शहरी बस्तियों में इजाफा हुआ है. ये 11 साल में 1,362 से बढ़कर 3,894  तक पहुंच गई. ये इस बात का सबूत पेश करता है कि गांवों के लोग खेती किसानी को अलविदा कह गैर कृषि कामों को तवज्जो दे रहे हैं. 

देश के इतिहास में यह पहला मौका था जब 2011 की जनगणना में गांवों की आबादी में गिरावट देखी गई थी. ये भी देखा गया है कि भले ही गांवों में लोग बेरोजगार रह लें, लेकिन वो अपनी छोटी सी जमीन पर भी खेती करना पसंद नहीं कर रहे हैं. ये भारत के बदलते स्वरूप का एक संकेत है. 

अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसान कब तक बना रहे 'अन्नदाता', खेती क्यों नहीं है मुनाफे का सौदा?

बीते एक साल में बढ़ गई खेती की लागत

बीते एक साल में ही कृषि की लागत में बढ़ोतरी दर्ज की गई है. इसकी वजह कृषि में इस्तेमाल होने वाले डीजल, खाद, उर्वरक और कीटनाशकों की कीमतों में बढ़ोतरी होना. बीते एक साल में ही इसमें 10 से 20 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. जनवरी 2021 से लेकर जनवरी 2022 तक डीजल की कीमतों में औसतन 15-20 रुपये की बढ़ोतरी दर्ज की गई.

यही हाल उर्वरक और कीटनाशकों का भी है. 50 किलो की एनपीके उर्वरक की एक बोरी अब 275 में आती है, जबकि पहले ये 265 की थी. बीते साल 2021-22 के खरीद विपणन सीजन में धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 72 रुपये प्रति कुंतल की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी और साल 2022-23 के लिए गेहूं के एमएसपी केवल 40 रुपये प्रति कुंतल की बढ़ोतरी हुई है.

वहीं रोग, खरपतवार कीट नाशक दवाइयों में भी 10 से 20 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की गई. खेती किसानी की बढ़ती लागत के साथ किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमतों में फसलों की बिक्री से चिंतित है. हालत ये है कि किसान एक कुंतल धान बेचकर भी 50 किलो डीएपी खाद तक नहीं खरीद पाते. डीएपी के सरकारी दाम 1206 रुपये हैं, लेकिन वो 1400-1600 में मिलती है. 

गन्ने की फसल के बीच उगने वाली खरपतवार को खत्म करने की दवा को ही लें जो साल 2021 में 170 रुपये की थी वो साल 2022 में 270 रुपये की आ रही है. 5 साल में गन्ने पर महज 25-35 रुपये पर कुंतल बढ़े हैं. किसानों का कहना है कि खेती की लागत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, लेकिन फसल के दाम उस हद तक नहीं बढ़ रहे हैं.


अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसान कब तक बना रहे 'अन्नदाता', खेती क्यों नहीं है मुनाफे का सौदा?

उत्तर प्रदेश में खेती से जुड़े अतुल कुमार का कहना है कि अगर यूपी के नजरिए से देखा जाए तो यहां पहली परेशानी जानवरों वाली है. इससे किसान खेती छोड़ रहा है. जानवर तैयार फसल को खाकर बर्बाद कर डालते हैं, ये फसल फिर से तैयार नहीं की जा सकती और किसान इसे खुद ही काट देते हैं. दूसरी परेशानी है कि कुछ किसान जैविक खेती करना चाहते हैं तो जैविक खाद मिलना मुश्किल होता है.

अतुल आगे कहते हैं कि मैं भी डीएपी, यूरिया की खेती से जैविक खेती की तरफ मुड़ा हूं, लेकिन ये खेती करना भी आसान नहीं हो पा रहा है और अगर डीएपी वाली खेती करें तो वो भी उपलब्ध नहीं हो पाती है. इसके साथ ही ये काफी महंगी मिलती है. पहले की तुलना में लगातार इसकी कीमतों में इजाफा होता जा रहा है.

वह कहते हैं कि अगर दूसरी तरह की खेती की तरफ किसान जाते हैं तो उसका बाजार मिलना मुश्किल होता है. मैं ऐसी कोशिश कर चुका हूं मैंने केले और पपीते की खेती की थी. इसे बेचने के लिए मार्केट नहीं मिल पाती मजबूरी में मंडी जाते हैं, लेकिन वहां दलालों के चक्कर में काफी पैसा कमीशन का देना पड़ता है तो बहुत फायदा नहीं हो पाता है. मंडी जाने का मतलब किसान का लुट जाना है.

अतुल बताते हैं कि अगर कोई किसान कमर्शियल खेती करना चाहे तो बीज और उसकी ट्रेनिंग मिलना मुश्किल होता है. सरकार खेती को लेकर जो योजनाएं बनाती है वो कागजों तक ही रह जाती है. व्यवहारिक तौर पर ये योजनाएं किसानों तक पहुंच ही नहीं पाती हैं. ये मसले हैं जिनसे किसान आज परेशान है और खेती छोड़कर दूसरे क्षेत्रों में जा रहा है फिर वो चाहे दुकान खोलना ही क्यों न हो. 



अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसान कब तक बना रहे 'अन्नदाता', खेती क्यों नहीं है मुनाफे का सौदा?

इस पर एग्रो एक्सपर्ट भुवन भास्कर कहते हैं कि किसानों की जो परेशानी है उसकी नब्ज सरकार ने पकड़ ली है, लेकिन सरकार में इच्छा शक्ति का अभाव है. इस सरकार के आने के बाद कई बेहद ही बुनियादी बदलाव प्रस्तावित किए गए थे जैसे कि मिट्टी की टेस्टिंग, राष्ट्रीय कृषि बाजार  ईनेम है जिस पर अभी भी काम चल रहा है. सरकार भी ये समझ चुकी है अब इस देश में किसानों को उत्पादन को लेकर बहुत ज्यादा चिंता करने की जरुरत नहीं है. हालांकि अलग-अलग पॉकेट में है जैसे तिलहन और दलहन हमारा एक मुद्दा था. उस पर काम किया गया है. दलहन के मामले में हम लगभग आत्मनिर्भर होने की स्थिति में आ गए हैं. तिलहन में अभी देर है. देखा जाए तो उत्पादन के मामले में हमारी सरकार और किसान दोनों सक्षम हैं.

वह आगे कहते हैं कि अगर ठीक तरह से पॉलिसी सपोर्ट मिले तो किसान उत्पादन कर लेंगे, लेकिन  उस उत्पादन का वो करेंगे क्या? जब उनको सही और मजबूत बाजार ही नहीं मिलेगा. सरकार को इस पर काम करने की जरूरत है और सरकार उस पर काम कर भी रही है. ईनेम  2016 में लॉन्च हुआ है, लेकिन उसे रफ्तार नहीं मिल पाई है. किसानों के पास एक बहुत बड़ा जरिया है वायदा बाजार का है. इससे करीबन 10-12 लाख किसान जुड़े हैं और उसमें काम कर रहे हैं. वहां हमने देखा की सरकार ने जिंसों 7 कमोडिटी ट्रेडिंग पर बैन कर दिया और इस साल तीन दिन पहले ही फिर उस बैन को बढ़ा दिया.

उनका मानना है कि किसानों के पास जो मॉडर्न मार्केटिंग फैसिलिटी है उनको जब-तक आप बढ़ावा नहीं देंगे तब तक किसानों के हालातों में सुधार नहीं आएगा. सरकार को अपने नजरिए को कंज्यूमर सेंट्रिक न कर फार्मर सेंट्रिक करना होगा. जैसे जब दाम  गिरते हैं तो उस पर हंगामा नहीं होता, लेकिन जब दाम  बढ़ते हैं तो उस पर हंगामा हो जाता है क्योंकि कंज्यूमर को दाम ज्यादा लगता है, लेकिन ये कोई नहीं देखता कि किसान को लॉस हो रहा है. ये छोटी सी चीज है, लेकिन इस पर ध्यान दिया जाना जरूरी है. कृषि उपज बाजार पर जब -तक अच्छे से ध्यान नहीं दिया जाएगा और जो विकल्प सरकार के पास हैं उन पर सरकार अच्छे से काम नहीं करेगी तब तक खेती को एक मुनाफे के कारोबार में बदलना मुश्किल है.


अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसान कब तक बना रहे 'अन्नदाता', खेती क्यों नहीं है मुनाफे का सौदा?

देश गैर-कृषि अर्थव्यवस्था की राह पर

भारत के गांवों में अब बड़ा बदलाव आ रहा है यहां की आबादी अब केवल कृषि पर निर्भर नहीं रह गई है. आर्थिक और रोजगार के मोर्चे पर वो नए विकल्प तलाश चुकी है. अब गांवों को कृषि प्रधान कहना बेमानी सा लगता है. गौरतलब है कि नीति आयोग ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में आ रहे बदलावों का विश्लेषण किया था.

इसमें सरकारी थिंक टैंक के सदस्य अर्थशास्त्री रमेश चंद ने अपने रिसर्च पेपर में बताया था कि 2004-05 के बाद से देश की अर्थव्यवस्था गैर-कृषि वाली हो गई है. इसके पीछे बड़ी वजह किसानों के कृषि कार्यों को छोड़कर अन्य पेशे में शामिल होना रहा. खेती के मुकाबले में किसानों को नौकरी में अधिक कमाई हो जाती है. एक किसान की आमदनी गैर किसान के 5वें हिस्से के करीब है. 

यह बदलाव 1991-92 में आर्थिक सुधारों के बाद दर्ज किया गया. कृषि सेक्टर में विकास की रफ्तार में  1993-94 और 2004-05 के बीच ब्रेक लग गया और विकास दर में 1.87 फीसदी की कमी आई. वहीं गैर कृषि सेक्टर में इसमें 7.93 फीसदी का उछाल आया. गांवों की अर्थव्यवस्था में कृषि की भागीदारी बेहद कम हो गई.

गांवों की अर्थव्यवस्था में ये भागीदारी जहां 1993-1994 में 57 फीसदी था, जबकि 2004-05 में यह घटकर 39 फीसदी रह गई. कृषि आमदनी के मुकाबले अन्य आमदनी में इजाफा हुआ है. कृषि आमदनी और गैर कृषि आमदनी के बीच 1980 में 1:3 का रेशियो था, लेकिन 2011-12 में ये बढ़कर 1: 3.12 तक जा पहुंचा.  ये ट्रेंड अभी भी चल रहा है. 

और देखें
Advertisement

IPL Auction 2025

Most Expensive Players In The Squad
Virat Kohli
₹21 CR
Josh Hazlewood
₹12.50 CR
Rajat Patidar
₹11 CR
View all
Most Expensive Players In The Squad
Rishabh Pant
₹27 CR
Nicholas Pooran
₹21 CR
Ravi Bishnoi
₹11 CR
View all
Most Expensive Players In The Squad
Jasprit Bumrah
₹18 CR
Suryakumar Yadav
₹16.35 CR
Hardik Pandya
₹16.35 CR
View all
Most Expensive Players In The Squad
Heinrich Klaasen
₹23 CR
Pat Cummins
₹18 CR
Abhishek Sharma
₹14 CR
View all
Most Expensive Players In The Squad
Ruturaj Gaikwad
₹18 CR
Ravindra Jadeja
₹18 CR
Matheesha Pathirana
₹13 CR
View all
Most Expensive Players In The Squad
Shreyas Iyer
₹26.75 CR
Arshdeep Singh
₹18 CR
Yuzvendra Chahal
₹18 CR
View all
Most Expensive Players In The Squad
Sanju Samson
₹18 CR
Yashaswi Jaiswal
₹18 CR
Riyan Parag
₹14 CR
View all
Most Expensive Players In The Squad
Venkatesh Iyer
₹23.75 CR
Rinku Singh
₹13 CR
Varun Chakaravarthy
₹12 CR
View all
Most Expensive Players In The Squad
Rashid Khan
₹18 CR
Shubman Gill
₹16.5 CR
Jos Buttler
₹15.75 CR
View all
Most Expensive Players In The Squad
Axar Patel
₹16.5 CR
KL Rahul
₹14 CR
Kuldeep Yadav
₹13.25 CR
View all
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

क्या दिल्ली में आज होगी जमकर बारिश, जानिए किन राज्यों में अलर्ट जारी, पूरे देश के मौसम का हाल एक क्लिक में
क्या दिल्ली में आज होगी जमकर बारिश, जानिए किन राज्यों में अलर्ट जारी, पूरे देश के मौसम का हाल एक क्लिक में
संभल हिंसा में 3 की मौत, स्कूल-इंटरनेट बंद, आरोपियों पर लगेगा रासुका | जानें 10 बड़ी बातें
संभल हिंसा में 3 की मौत, स्कूल-इंटरनेट बंद, आरोपियों पर लगेगा रासुका | जानें 10 बड़ी बातें
देवेंद्र फडणवीस बनेंगे महाराष्ट्र के CM? अजित पवार हैं 'ओके', नाम पर RSS की मुहर पक्की!
देवेंद्र फडणवीस बनेंगे महाराष्ट्र के CM? अजित पवार हैं 'ओके', नाम पर RSS की मुहर पक्की!
IPL 2025 Mega Auction: कौड़ियों के दाम में बिके ऑस्ट्रेलिया के ये स्टार खिलाड़ी, कीमत देख नहीं होगा यकीन
कौड़ियों के दाम में बिके ऑस्ट्रेलिया के ये स्टार खिलाड़ी, कीमत देख नहीं होगा यकीन
Advertisement
ABP Premium

वीडियोज

Maharashtra Election 2024 : गेम चेंजर मोदी..अब '2025' पर नजर होगी !  BJP | PM ModiChitra Tripathi  : Modi-Shah चौंकाएंगे, CM किसे बनाएंगे ? । Maharashtra Election ResultsSandeep Chaudhary : शिंदे को झटका, फडणवीस बनेंगे CM? वरिष्ठ पत्रकारों का सटीक विश्लेषण | MaharashtraMaharashtra New CM News : मुख्यमंत्री कौन...दावेदार क्यों मौन?  Election result | BJP | Shiv sena

फोटो गैलरी

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
क्या दिल्ली में आज होगी जमकर बारिश, जानिए किन राज्यों में अलर्ट जारी, पूरे देश के मौसम का हाल एक क्लिक में
क्या दिल्ली में आज होगी जमकर बारिश, जानिए किन राज्यों में अलर्ट जारी, पूरे देश के मौसम का हाल एक क्लिक में
संभल हिंसा में 3 की मौत, स्कूल-इंटरनेट बंद, आरोपियों पर लगेगा रासुका | जानें 10 बड़ी बातें
संभल हिंसा में 3 की मौत, स्कूल-इंटरनेट बंद, आरोपियों पर लगेगा रासुका | जानें 10 बड़ी बातें
देवेंद्र फडणवीस बनेंगे महाराष्ट्र के CM? अजित पवार हैं 'ओके', नाम पर RSS की मुहर पक्की!
देवेंद्र फडणवीस बनेंगे महाराष्ट्र के CM? अजित पवार हैं 'ओके', नाम पर RSS की मुहर पक्की!
IPL 2025 Mega Auction: कौड़ियों के दाम में बिके ऑस्ट्रेलिया के ये स्टार खिलाड़ी, कीमत देख नहीं होगा यकीन
कौड़ियों के दाम में बिके ऑस्ट्रेलिया के ये स्टार खिलाड़ी, कीमत देख नहीं होगा यकीन
प्रिंस नरूला ने अपनी नन्ही परी के साथ सेलिब्रेट किया 34वां बर्थडे, तस्वीरें शेयर कर नाम भी किया रिवील
प्रिंस ने अपनी नन्ही परी के साथ सेलिब्रेट किया 34वां बर्थडे, देखिए तस्वीरें
'संभल हिंसा योगी-बीजेपी-RSS की सोची समझी साजिश', कांग्रेस ने PM मोदी को याद दिलाया मोहन भागवत का बयान
'संभल हिंसा योगी-बीजेपी-RSS की साजिश', कांग्रेस ने PM मोदी को याद दिलाया मोहन भागवत का बयान
IBPS PO Mains परीक्षा के लिए एडमिट कार्ड जारी, ऐसे करें डाउनलोड, जानें किस सब्जेक्ट से आएंगे कितने सवाल
IBPS PO Mains परीक्षा के लिए एडमिट कार्ड जारी, ऐसे करें डाउनलोड, जानें किस सब्जेक्ट से आएंगे कितने सवाल
समीर रिजवी के साथ यह क्या हो गया...? CSK ने दिए थे करोड़ों, अब सिर्फ लाखों में बिके
समीर रिजवी के साथ यह क्या हो गया...? CSK ने दिए थे करोड़ों, अब सिर्फ लाखों में बिके
Embed widget