‘हनुमान चालीसा पढ़ना अगर गुनाह है तो 14 दिन नहीं, 14 साल सजा को तैयार’, नवनीत राणा का सीएम उद्धव पर बड़ा हमला, जानें 10 बातें
नवनीत राणा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि किसी खास केस पर वे बात नहीं करेंगीस लेकिन जिस तरह का उनके ऊपर लॉकअप से लेकर जेल तक अत्याचार हुआ उसको लेकर वे बाद में बात करेंगी.
Hanuman Chalisa Row: मातोश्री-हनुमान चालीसा विवाद को लेकर सुर्खियों में आई अमरावती से निर्दलीय सांसद नवनीत राणा ने रविवार को मुंबई के अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद महाराष्ट्र सरकार पर जोरदार हमला बोला. उन्होंने सवाल पूछा कि आखिर किस बात की सजा दी जा रही है? राजद्रोह केस लगने के बाद जेल के अंदर गई नवनीत राणा ने पूछा कि आखिरकार उनका गुनाह क्या था? उन्होंने कहा कि अगर हनुमान चालीसा पढ़ना या फिर भगवान का नाम लेना गुनाह है तो फिर वे 14 दिन नहीं, बल्कि 14 साल सज़ा भुगतने के लिए तैयार हैं. आइये जानते हैं दस बातें-
1- नवनीत राणा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि किसी खास केस पर वे बात नहीं करेंगी लेकिन जिस तरह का उनके ऊपर लॉकअप से लेकर जेल तक अत्याचार हुआ उसको लेकर वे बाद में बात करेंगी.
2-अमरावती की सांसद ने आगे कहा कि हमारी लड़ाई जारी रहेगी. उन्होंने सीएम उद्धव ठाकरे को चुनाव लड़ने की चुनौती देते हुए कहा कि जिस तरह से मेरे ऊपर अत्याचार किया गया, उसके जवाब महाराष्ट्र की जनता देगी. नवनीत राणा ने कहा कि राम और हनुमान का विरोध करने वालों का क्या नतीजा होता है ये महाराष्ट्र की जनता बताएगी.
3-नवनीत राणा ने जेल में अपने खिलाफ दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाते हुए कहा कि सुबह छह बजे तक खड़ा रखा गया और उन्हें कोई सुविधा नहीं दी गई. उन्होंने कहा कि जेल के अंदर कोई हेल्थ फैसिलिटी नहीं दी गई. नवनीत ने आगे कहा कि जिस तरह से कोर्ट ने कहा कि राजद्रोह का केस नहीं बनता है, उनके न्याय में इसको लेकर पूरा विश्वास था.
4- इससे पहले, मुंबई की एक विशेष अदालत ने कहा कि सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा ने ‘‘निसंदेह संविधान के तहत मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा को लांघा है‘‘, लेकिन केवल अपमानजनक या आपत्तिजनक शब्दों की अभिव्यक्ति ही उनके खिलाफ राजद्रोह का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हो सकते हैं.
5- अदालत ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के आवास के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ करने की दंपति की घोषणा का इरादा ‘‘हिंसक तरीकों से सरकार गिराने’’ का नहीं था. हालांकि, उनके बयान ‘‘दोषपूर्ण’’ हैं, लेकिन वे इतने भी पर्याप्त नहीं है कि उन्हें राजद्रोह के आरोप के दायरे में लाया जा सके.
6- विशेष अदालत के न्यायाधीश आर एन रोकाडे ने बुधवार को जन प्रतिनिधि दंपत्ति को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की. आदेश की विस्तृत प्रति शुक्रवार को उपलब्ध कराई गई. अदालत ने माना कि इस स्तर पर प्रथम दृष्टया दंपति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124 ए (राजद्रोह) के तहत आरोप नहीं बनते हैं.
7- मुंबई पुलिस ने पिछले हफ्ते दंपति की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि उनकी योजना से अपराध की मंशा नहीं दिखती है, लेकिन वास्तव में यह राज्य सरकार को चुनौती देने की एक ‘‘बड़ी साजिश’’ थी. योजना का उद्देश्य कानून-व्यवस्था की स्थिति को बिगाड़ना था और फिर महाराष्ट्र के राज्यपाल द्वारा वर्तमान सरकार को भंग करने की मांग करना था. पुलिस ने कहा था कि जब भड़काऊ बयानों के इस्तेमाल से सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने या कानून-व्यवस्था को बिगाड़ने की घातक प्रवृत्ति या मंशा होती है तो राजद्रोह के प्रावधान लगाए जाते हैं.
8- हालांकि, दंपति के भाषणों पर गौर करते हुए अदालत ने कहा, ‘‘निस्संदेह, याचिकाकर्ताओं ने संविधान के तहत मिले भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं को लांघा है. हालांकि, केवल अपमानजनक या आपत्तिजनक शब्दों की अभिव्यक्ति आईपीसी की धारा 124 ए में निहित प्रावधानों को लागू करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हो सकती है.’’
9- अदालत ने कहा, ‘‘ये प्रावधान तभी लागू होंगे जब लिखित और बोले गए शब्दों में हिंसा का सहारा लेकर सार्वजनिक शांति को भंग करने या अशांति पैदा करने की प्रवृत्ति या इरादा हो. हालांकि, याचिकाकर्ताओं के बयान और कार्य दोषपूर्ण हैं, लेकिन वे इतने भी पर्याप्त नहीं हैं कि उन्हें आईपीसी की धारा 124 ए के दायरे में लाया जा सके.’’
10- मुंबई पुलिस ने उपनगरीय बांद्रा में ठाकरे के निजी आवास ‘मातोश्री’ के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ करने की घोषणा के बाद 23 अप्रैल को राणा दंपति को गिरफ्तार किया था. उन पर राजद्रोह और वैमनस्व को बढ़ावा देने के आरोप सहित आईपीसी के विभिन्न प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था. जमानत मिलने के एक दिन बाद बृहस्पतिवार को दंपति जेल से बाहर आए. राणा दंपति ने अपनी जमानत याचिका में दावा किया था कि ‘मातोश्री’ के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ करने के आह्वान को वैमनस्य या घृणा की भावनाओं को बढ़ावा देने वाला नहीं कहा जा सकता है और धारा 153 (ए) के तहत ये आरोप नहीं टिकते हैं.