बॉम्बे हाई कोर्ट से मंत्री नवाब मलिक को बड़ा झटका लगा है. मलिक की अंतरिम राहत देने की याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया है. मलिक ने अपनी याचिका में ईडी की ओर से उन पर की गई कार्रवाई को गैर-कानूनी बताया था. कोर्ट के फैसले ने सरकार के लिए भी मुश्किलें बढ़ा दी हैं. उधर, मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की चुप्पी ने भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं.
कोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी ने फिर एक बार नवाब मलिक के इस्तीफे की मांग तेज कर दी है. नेता विपक्ष देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि कोर्ट के आदेश के बाद साफ है कि नवाब मलिक पर ईडी की ओर से की गई कार्रवाई सही है. उन्होंने कहा कि सरकार बताए कि मलिक को मंत्रिमंडल से नहीं हटाने के लिए क्या उन पर दाऊद का कोई दबाव है?
मंत्रिमंडल में नवाब मलिक शामिल
तीन दशक पहले 12 मार्च 1993 को मुंबई में अंडर वर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के कहने पर मुंबई में कई ठिकनों पर बम ब्लास्ट किए गए. मुंबई आज भी इन जख्मों को भूल नहीं सका है. वहीं, शिवसेना ने भी कई सालों तक दाऊद का जमकर विरोध किया, लेकिन आज राजनीतिक मुश्किल में शिवसेना फंसी है कि ना उन्हें निगलते बन रहा है, ना उगलते बन रहा है. शिवसेना अध्यक्ष जो राज्य के मुख्यमंत्री भी है, उनके मंत्रिमंडल में नवाब मलिक शामिल हैं, जिन पर मुंबई बम धमकों के आरोपियों और दाऊद के रिश्तेदारों से आर्थिक संबंध रखने का आरोप है.
हर कदम फूंक-फूंक कर रख रही शिवसेना
नवाब मालिक को मंत्री के पद पर बनाए रखना एनसीपी की मजबूरी है, जिसके जरिए कांग्रेस के मुस्लिम वोटों को अपनी ओर मोड़ सके. वहीं, शिवसेना भी इस बात को अच्छी तरह जानती है कि सेकुलरवादी पार्टियों के साथ जाने के बाद हिंदुत्ववादी वोट शिवसेना से खिसक सकते हैं, ऐसे में इन वोटों की भरपाई मुस्लिम वोटों से हो सकती है, शायद इसलिए फिलहाल शिवसेना हर कदम फूंक-फूंक कर रख रही है.
नवाब मालिक के समर्थन के बहाने राज्य में मुस्लिम वीटों का ध्रुवीकरण परवान चढ़ रहा है. अपनी-अपनी वोट बैंक के साथ मुस्लिम वोटों का बोनस जिसे मिल जाए, वही दल आगामी स्थानीय निकाय के चुनाव में राहत की सांस ले सकेगा, ये साफ है.
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