Nawab Malik Real Story: महाराष्ट्र सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री और एनसीपी के वरिष्ठ नेता नवाब मलिक इन दिनों एक राष्ट्रीय चेहरा बन गये हैं. बॉलीवुड अभिनेता शाहरूख खान के बेटे आर्यन खान की ड्र्ग्स के मामले में गिरफ्तारी के बाद से मलिक लगातार नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) के जोनल डायरेक्टर समीर वानखेड़े पर हमले कर रहे हैं और उनके आरोपों की जद में बीजेपी नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी आ गये हैं. जानिए नवाब मलिक की असली कहानी क्या है.
महाविकास आघाडी की सरकार बनाने में निभाई अहम भूमिका
आज से ठीक दो साल पहले साल यानी 2019 का वक्त याद कीजिये. यही अक्टूबर-नवंबर का महीना था. नवाब मलिक तब भी आज ही की तरह चर्चा में थे. तब नवाब मलिक रोजाना कोई शायरी ट्वीट करते थे जो खबरों का केंद्र बन जातीं थीं. उन शायरियों के जरिये मलिक राज्य में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस का गठबंधन कराने की भूमिका बना रहे थे. उनके और संजय राऊत के ट्वीट से पता चल रहा था कि शिवसेना का बीजेपी के साथ तीन दशकों पुराना गठबंधन टूटने जा रहा है और शिवसेना की करीबी एनसपी और कांग्रेस की ओर बढ रही थी. मलिक तब भी एनसीपी के प्रवक्ता थे और महाराष्ट्र की मौजूदा महाविकास आघाडी की सरकार बनाने की प्रक्रिया में उन्होने एक अहम भूमिका निभाई थी.
मुंबई यूनिवर्सिटी में आंदोलन से हुई राजनीति की शुरूआत
नवाब मलिक का सियासी सफर काफी उतार चढाव भरा रहा है. 26 जून 1959 को उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में जन्मे नवाब मलिक के पिता मुंबई में बस गये थे. वह एक होटल चलाने के अलावा जहाजों के कबाड़ खरीदने का काम करते थे. नवाब मलिक ने भी यही रोजगार अपनाया. हालांकि मलिक 12वीं कक्षा के बाद बीए की पढाई पूरी नहीं कर पाए, लेकिन सियासत में उन्होने कदम छात्र राजनीति से ही रखे. मुंबई यूनिवर्सिटी की ओर से फीस बढ़ाए जाने के खिलाफ मलिक एक आंदोलन में शामिल हुए और वहीं से उनके सियासी सफर की शुरूआत हो गई. कांग्रेस पार्टी राजनीति में उनकी लांच पैड बनी.
साल 1980 में संजय गांधी के निधन के बाद उनकी पत्नी और मौजूदा बीजेपी नेता मेनका गांधी ने कांग्रेस से अलग होकर संजय विचार मंच नाम की एक अलग पार्टी बनायी थी. उस पार्टी की तरफ से 1984 का लोकसभा चुनाव उन्होंने उत्तर-पूर्व मुंबई की सीट से लड़ा. मलिक चुनाव तो बुरी तरह से हार गए, लेकिन इसके जरिये उन्होंने चुनाव लड़ने के दांव-पेंच जरूर सीख लिये. इसके बाद उन्हें संजय विचार मंच के साथ अपना कोई भविष्य नजर नहीं आया और वे फिर एक बार कांग्रेस में शामिल हो गये.
1996 में पहली बार बने विधायक
मलिक को उम्मीद थी कि 1995 में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उन्हें टिकट देगी लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला. तीन साल पहले ही मुंबई में बाबरी कांड के बाद भयानक दंगे हुए थे, जिसके बाद से मुसलिम इलाकों में समाजवादी पार्टी का वर्चस्व बढ रहा था. कांग्रेस से नाराज मलिक ने समाजवादी पार्टी की सदस्यता ले ली, जिसने उन्हें नेहरू नगर सीट से बतौर उम्मीदवार उतारा. मलिक वो चुनाव हार गए, लेकिन चुनाव जीतने वाले शिवसेना के सूर्यकांत महाडिक की सदस्यता धर्म के आधार पर वोट मांगने के आरोप में चुनाव आयोग ने खारिज कर दी. साल 1996 में उपचुनाव हुए, जिसमें जीतकर मलिक पहली बार विधायक बने.
फरवरी 1993 में शिव सेना ने अपने मुखपत्र सामना का हिंदी संस्करण ‘दोपहर का सामना’ निकाला. ये अखबार उन दिनों मुसलमानों के खिलाफ रोजाना जहर उगल रहा था. सामना का जवाब देने के लिये मलिक ने भी उसी की तरह एक सांध्य दैनिक निकालने का फैसला किया. दक्षिण मुंबई के डोंगरी इलाके से उन्होंने ‘सांझ समाचार’ नाम का एक हिंदी अखबार 1993 में शुरू किया. ये अखबार 1997 तक चला और फिर लगातार घाटे के चलते बंद हो गया.
साल 1999 के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने फिर एक बार मलिक को टिकट दिया और मलिक चुनाव जीत गये, लेकिन इसके बाद मलिक का समाजवादी के महाराष्ट्र इकाई प्रमुख अबू आजमी के साथ मनमुटाव हो गया और 2 साल बाद उन्होने पार्टी छोड दी. मलिक का कहना था कि समाजवादी पार्टी सांप्रदायिक नफरत की राजनीति कर रही थी, जबकि वे सेकुलर विचारधारा में यकीन रखते हैं. साल 2001 में वे शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये. उनकी शुमारी पार्टी के बड़े मुसलिम चेहरों में हो गई. इस तरह से नवाब मलिक अपने 4 दशकों के सियासी सफर में 4 अलग अलग राजनीतिक पार्टियों में काम कर चुके हैं.
मलिक के साथ विवाद भी जुडे. 2004 की विलासराव देशमुख की सरकार में मलिक को गृह निर्माण मंत्री बनाया गया लेकिन एक हाऊसिंग प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार के आरोप को लेकर गांधीवादी अन्ना हजारे ने उनके खिलाफ आंदोलन किया. इसके बाद मलिक को मंत्रीपद से इस्तीफा देना पडा. साल 2008 में उन्हें फिर एक बार मंत्री बनाया गया. इस बीच मलिक को अदालत से भी क्लीन चिट मिल गयी.
NCB पर कबसे और क्यों हमलावर हैं नवाब
उनके नाम की फिर एक बार चर्चा हुई जब नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने ड्र्ग्स के कारोबार से जुडे होने के आरोप में उनके दामाद समीर को गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तार करने वाले अधिकारी वही समीर वानखड़े थे, जिन्होंने 2 अक्टूबर को आर्यन खान को पकडा था. आर्यन की गिरफ्तारी के हफ्ते भर बाद ही एक के बाद एक कई प्रेस कांफ्रेंस लेकर नवाब मलिक ने समीर वानखेड़े पर आरोपों की झडी लगा दी. मलिक का कहना है कि समीर वानखेड़े ने धोखाधडी करके आईआरएस की नौकरी हासिल की है. वानखड़े मुसलमान हैं लेकिन नौकरी पाने के लिये उन्होंने अपने आप को अनुसूचित जाति का बताया. उन्होंने आर्यन खान को फर्जी मामले में वसूली के इरादे से फंसाने का आरोप भी लगाया. मलिक का आरोप है कि जो लोग क्रूज पर छापेमारी के दौरान बतौर स्वतंत्र गवाह बुलाये गये थे, वे बीजेपी के सदस्य थे और आपराधिक रिकॉर्ड वाले थे. मलिक का आरोप है कि वानखेड़े ने छापेमारी के दौरान पकडे गये बीजेपी के एक नेता मोहित कंबोज के रिश्तेदार को छोड दिया. उन्होंने गुजरात में पकड़े गये एक ड्र्ग्स कारोबारी के देवेंद्र फडणवीस और उनकी पत्नी अमृता फडणवीस के साथ तस्वीरें ट्विट कर सवाल उठाये.
मलिक के आरोपों पर फडणवीस ने भी पलटवार किया और कहा कि मलिक ने मुंबई बमकांड के आरोपी और दाऊद इब्राहिम गिरोह से जुडे लोगों से जमीन का सौदा किया. मलिक ने इन आरोपों को गलत बताया और उलटा फडणवीस पर अंडरवर्लड से जुड़े लोगों का साथ देने का आरोप लगाया. मलिक का कहना था कि फडणवीस के संबंध दाऊद गिरोह से जुडे रियाज भाटी के साथ हैं. रियाज भाटी फिलहाल फरार बताया जा रहा है.
मलिक ने आरोपों की झड़ी तो लगा दी है, लेकिन उनपर भी मानहानि के मुकदमों की झड़ी भी लग गयी है. समीर वानखेड़े के पिता ज्ञानेश्वर वानखेड़े ने बॉम्बे हाईकोर्ट में उनपर मानहानि का का मुकदमा दायर किया है. बीजेपी नेता मोहित कंबोज ने उनके खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दायर किया है और देवेंद्र फडणवीस की पत्नी अमृता ने भी उन्हें मानहानि का नोटिस भेजा है. आर्यन खान जेल से बाहर आ चुके हैं और समीर वानखेड़े को उनके मामले की जांच से हटाया जा चुका है, लेकिन नवाब मलिक के शब्दों में पिक्चर अभी बाकी है. मलिक के मुताबिक इस पिक्चर का दी एंड तब होगा जब समीर वानखेड़े जेल की सलाखों के पीछे जायेंगे.