नई दिल्ली : नक्सलियों के निशाने पर सिर्फ सुरक्षा बलों को जवान नहीं हैं. बल्कि, स्थानीय नागरिकों पर भी नक्सलवाद कहर बन कर टूट रहा है. हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले एक साल में जो आंकड़ा सामने आया है उससे साफ है कि हर दो दिन में एक नागरिक नक्सलियों की भेंट चढ़ रहा है.


पुरानी रंजिश और लेनदेन की ही बात सामने आ रही है


आश्चर्य की बात है कि जो भी स्थानीय आदिवासी नक्सलियों का शिकार हो रहा है उसे पुलिस का 'मुखबिर' बता कर मारा जा रहा है. लेकिन, ज्यादातर मामलों में पुरानी रंजिश और लेनदेन की ही बात सामने आ रही है. क्योंकि, नक्सली दस्तों में शामिल स्थानीय लोग बदला पूरा करने का खेल भी खेल रहे हैं.


त्वरित न्याय के तहत लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया


ज्यादातर हत्याएं 'कंगारू कोर्ट' (नक्सलियों द्वारा खुद की अदालत लगाना और सजा देना) लगाकर की गई हैं. त्वरित न्याय के तहत लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया है. इसके साथ ही शवों के साथ नक्सली अपना 'नोट' भी छोड़ जाते हैं जिसमें वे अन्य लोगों के लिए धमकी लिखकर जाते हैं.


बिहार, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में ऐसी घटनाएं


यह घटनाएं बिहार, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में ऐसी घटनाएं हुई हैं. सुकमा में आठ, गढ़चिरौली में सात, मलकानगिरी में पांच और चतरा में चार सबसे ज्यादा हत्याएं हुई हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार इसके अलावा 30 अप्रैल, 2017 तक नक्सलियों ने 62 लोगों को मौत के घाट उतार दिया है. इसके साथ ही इस साल अप्रैल में 21, मार्च में 12, फरवरी में 16 और जनवरी में 13 लोगों की हत्याएं हुई हैं.


नक्सलियों ने घात लगाकर सीआरपीएफ जवानों पर भी हमला किया था


गौरतलब है कि अप्रैल में सुकमा में नक्सलियों ने घात लगाकर सीआरपीएफ जवानों पर भी हमला किया था. इसमें 25 जवानों की मौत हो गई थी. सरकार के लिए यह घटनाएं चुनौतियों की तरह ही हैं. नक्सली दहशत फैलाने के लिए इस तरह की घटनाओं को अंजाम देते हैं और फिर इन स्थानों से उगाही भी करते हैं.