नयनतारा की शादी के 4 महीने बाद बच्चे, सरोगेसी कानून पर क्यों उठे सवाल?
बच्चे की किलकारियां जिंदगी में खुशियां लाती हैं. किसी तरह से भी बच्चा न पैदा करने वाले भी अब इस खुशी से महरूम नहीं रहते. इसके लिए अब सरोगेसी जैसी सुविधाएं हैं, लेकिन इस पर भी सवाल उठने लगे हैं.
Why Question Over Surrogacy Law: मां बनना दुनिया का सबसे खूबसूरत एहसास है. इसके लिए एक औरत 9 महीने तक की परेशानियों का दौर भी हंसते हुए झेल जाती है. एक वक्त था जब मां-बाप न बन पाने वाले जोड़े पर समाज सवाल करता था. मां न बन पाने पर औरत को तरह-तरह के तानों का सामना करना पड़ता था, लेकिन अब वो दौर नहीं रहा है. ऐसे लोगों के लिए भी मां बनना मौजूदा वक्त में ख्वाब नहीं रह गया है.
आईवीएफ, एग फ्रीज करने की तकनीक के साथ सरोगेसी जैसे विकल्प मौजूद हैं, लेकिन सरोगेसी के जरिए मां-बाप बनने के लिए नियम-कायदों की लंबी फेहरिस्त है. इन पर अमल न किए जाने पर सवाल उठ सकते हैं, जैसा कि तमिल फ़िल्मों के निर्देशक विग्नेश सिवन (Vignesh) और अभिनेत्री नयनतारा (Nayanthara) के पेरेंट्हुड पर उठ रहे हैं. 4 महीने पहले शादी के बंधन में बंधे इस मशहूर जोड़े के जुड़वां बेटे पैदा हुए हैं. आखिर इस जोड़े पर सरोगेसी (Surrogacy) को लेकर सवाल क्यों उठ रहे हैं?
आखिर क्या हो रहा बवाल
हाल ही में प्रियंका चोपड़ा सरोगेसी के जरिए मां बनी हैं. इससे पहले करण जौहर, लीजा रे, शाहरूख खान, तुषार कपूर, सोहेल खान, सनी लियोनी, एकता कपूर, आमिर खान, कृष्णा और कश्मीरा शाह सरोगेसी के जरिए पेरेंट्स बनने की खुशी पा चुके हैं. अब 9 अक्टूबर को तमिल फ़िल्मों के निर्देशक विग्नेश सिवन ने पत्नी अभिनेत्री नयनतारा संग जुड़वां बेटों के पैदा होने का एलान किया है. उनके इसी एलान के बाद सरोगेसी पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं.
जहां सोशल मीडिया पर इस जोड़े को बधाई संदेश देने वाले कम नहीं हो रहे हैं तो उधर तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री एमए सुब्रमण्यम की प्रेस कांफ्रेस से उनके पैरेंट्हुड पर सवालों का दौर चल पड़ा है. माना जा रहा है कि इस फिल्मी जोड़े के ये बच्चे सरोगेसी के जरिए पैदा हुए हैं. दरअसल इस कांफ्रेस में पत्रकारों ने सूबे के स्वास्थ्य मंत्री से नयनतारा और विग्नेश सिवन की शादी के बाद इतनी जल्दी बच्चा पैदा करने पर सरोगेसी कानून को तोड़ने को लेकर सवाल किया था.
इस पर मंत्री ने इस मामले की मेडिकल सेवा महानिदेशालय के जरिए जांच कराने का बयान दे डाला था. हालांकि इसे लेकर विग्नेश-नयनतारा जोड़े ने अब तक कुछ नहीं कहा है. इसके बाद से ही इंटरनेट पर सरोगेसी कानून खोजा जा रहा है तो सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे को लेकर खासी बहस का दौर चल पड़ा है.
क्या है सरोगेसी
इन सवालों के बारे में जानने से पहले सरोगेसी का मतलब जानना जरूरी है. सरोगेसी ऐसी औरतों के लिए वरदान से कम नहीं जो प्रजनन संबंधी परेशानियों से जूझ रही हो, जिन्हें गर्भपात का खतरा बना रहता हो या फिर जो किसी अन्य वजह से प्रेग्नेंट नहीं हो सकती हैं. ऐसी औरतें किराए की कोख यानी सरोगेसी का विकल्प चुन सकती हैं.इस तरीके में किराए की कोख देने वाली महिला डोनर एग या फिर खुद के एग के जरिए किसी दूसरे जोड़े के लिए प्रेग्नेंट होती है.
सरोगेसी के लिए भी अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल होता है.मसलन पारंपरिक सरोगेसी में सरोगेट मदर का एग को डोनर के स्पर्म से मिलाया जाता है. इसके मैच होने के बाद इसे मेडिकली सेरोगेट मां बनने जा रही महिला के गर्भ में पहुंचाया जाता है. सरोगेट मदर को ये स्पर्म अगर बच्चे के पिता बनने जा रहे शख्स के अलावा कोई और देता है तो फिर उस बच्चे का मां की तरह ही पिता से भी कोई जैविक संबंध नहीं होता है.
इस तरह की सरोगेसी ही पारंपरिक सरोगेसी कहलाती है. इसके अलावा जेस्टेशनल सरोगेसी यानी गर्भकालीन सरोगेसी भी पेरेंट्स बनने का विकल्प देती है. इसमें होने वाले बच्चे के जैविक मां-बाप के एग और स्पर्म को टेस्ट ट्यूब में मेल कराया जाता है और इसके बाद इसे सरोगेट मदर की कोख में पहुंचाया जाता है. इसमें सरोगेट मदर का बच्चे से कोई जैविक रिश्ता नहीं होता है. इसके अलावा परोपकारी और कमर्शियल सरोगेसी का विकल्प भी होता है.
जहां परोपकारी सरोगेसी में बच्चा चाहने वाला जोड़ा सरोगेट मदर को अपने यहां बुलाकर उसके सारे खर्चे वहन करता है. दूसरी तरफ कमर्शियल सरोगेसी में कोख किराए पर देने वाली सरोगेट मदरको इसका पूरा पैसा दिया जाता है. भारत में इस तरह की सरोगेसी पर प्रतिबंध है. सरोगेसी विनियमन अधिनियम 2021 कमर्शियल सरोगेसी के नियमन के लिए लाया गया था. इसके जरिए कमर्शियल सरोगेसी 10 साल की कैद और 10 लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान किया गया.
सरोगेसी कानून का सफर
सरोगेसी कानून के बनने तक का सफर कुछ ऐसा रहा है. 15 जुलाई, 2019 को लोकसभा में सरोगेसी रेगुलेशन विधेयक लाया गया. भारत की संसद में इसे 2021 को पास किया और इस साल यानी जनवरी 2022 में राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही ये कानून बन गया और पूरे देश में लागू हो गया. इस कानून में साफ कहा गया कि जब कोई जोड़ा प्रजनन संबंधी दिक्कतों से जूझ रहा हो या फिर बच्चा पैदा करने के लायक न हो तभी सरोगेसी के जरिए बच्चा पैदा कर सकता है.
इसके जरिए सरोगेसी यानी किराए की कोख के तरीकों पर काबू रखा जाता है. इसके जरिए कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध लगा दिया गया. परोपकारी के तहत तो सरोगेसी को मान्यता दी गई, लेकिन सरोगेट मदर को पैसे देकर उसकी कोख खरीदने पर मनाही हो गई.
सरोगेट मदर बनने का हक
सरोगेसी रेगुलेशन विधेयक कहता है कि बच्चा चाहने वाले जोड़े की कोई भी नजदीकी रिश्तेदरी की औरत सरोगेट मदर बन सकती है बशर्ते की उसकी उम्र 25 से 35 साल के बीच होनी चाहिए. इसी तरह से प्रजनन संबंधी दिक्कतों से जूझ रहे बच्चा चाहने वाले शादीशुदा जोड़े की उम्र को लेकर भी नियम है. इसमें पति की उम्र कम से कम 21 साल और पत्नी की उम्र 18 साल होनी चाहिए.
इस कानून का बेहद सकारात्मक पक्ष है कि ये 35 से लेकर 45 साल की तलाकशुदा और विधवा महिलाओं को भी इस तरीके से बच्चा पैदा कर मां बनने का हक देता है. इस अपवाद को छोड़कर ये कानून केवल शादीशुदा जोड़े को ही सरोगेसी से पेरेंट्स बनने की इजाजत देता है.
ऐसे जोड़े जो बगैर शादी के साथ रहे हैं वह सरोगेट कानून के दायरे में नहीं आते हैं. गौरतलब है कि सरोगेसी रेगुलेशन विधेयक के लागू होने से पहले करण जौहर साल 2017 में जुड़वां बच्चों के पिता बन चुके हैं. इसके साथ ही अकेले पुरुष को सरोगेसी के जरिए बच्चा पैदा करने का हक देने की मांग भी उठने लगी है.
बातें जो साफ होनी चाहिए
सरोगेसी कानून के कुछ ऐसे प्वाइंट हैं जिन पर असमंजस बरकरार है. मसलन इसमें कहा गया है कि तलाकशुदा और विधवा औरत 35 की उम्र पूरी करने के बाद इसका सहारा लेकर संतान प्राप्त कर सकती है. ऐसी विधवा महिला जिसके पति की मौत उसके 35 साल का होने से पहले ही हो गई हो उसे सरोगेसी के लिए इतना इंतजार क्यों करना चाहिए. इस पर कानून में कुछ नहीं कहा गया है. देश की स्त्री रोग विशेषज्ञों का मानना है कि जिस तरह से भारतीय लोगों में प्रजनन संबंधी दिक्कतों में इजाफा हो रहा है और सरोगेसी को बेहतरीन विकल्प की तरह देखा जा रहा हो, उसे देखते हुए सरोगेसी कानून के नियमों में स्पष्टता होनी जरूरी है.