NCERT Text Book Modification: राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की राजनीतिक विज्ञान की पाठ्य पुस्तकों में हुए बदलाव पर योगेंद्र यादव और सुहास पालशिकर ने परिषद को एक चिट्ठी लिखी थी कि मुख्य सलाहकार के रूप में उनके नामों को हटा दिया जाए. इस पर एनसीईआरटी ने कहा है कि नाम हटाने का सवाल ही उठता.


हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, योगेंद्र यादव और सुहास पालशिकर साल 2006-07 में प्रकाशित कक्षा 9 और 12 के लिए राजनीतिक विज्ञान की किताबों के मुख्य सलाहकार थे. बीते गुरुवार को इन दोनों ने एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश प्रसाद सकलानी को चिट्ठी लिखी और कहा, “पाठ्य पुस्तकों को युक्ति संगत बनाने की कवायद में इन्हें विकृत कर दिया गया है और अकादमिक रूप से बेकार बना दिया गया है.”


क्या कहा एनसीईआरटी ने?


वहीं, परिषद ने शुक्रवार देर रात जारी एक बयान में कहा कि एनसीईआरटी ने 2005-08 के दौरान पाठ्यपुस्तक विकास समितियों (जिनमें से यादव और पलशिकर सदस्य थे) का गठन किया था और वे पाठ्यपुस्तकों के विकसित होने तक ही अस्तित्व में थीं. बयान में आगे कहा गया, “पाठ्यपुस्तक विकास समितियों के सभी सदस्यों ने लिखित हलफनामे के माध्यम से इस पर अपनी सहमति दी थी.”


इस पर योगेंद्र यादव और सुहास पालशिकर ने क्या कहा?


परिषद के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए, यादव और पलशिकर ने शनिवार को कहा कि पाठ्यपुस्तक के वर्तमान संस्करण में उनके नाम को जारी रखने से समर्थन की झूठी छाप पैदा होती है, और उन्हें इस आक्षेप से अलग होने का पूरा अधिकार है. दोनों ने एक बयान में कहा, “यदि वे पाठ को विकृत करने के लिए अपने कानूनी अधिकार का उपयोग कर सकते हैं तो हमें अपने नाम को उस पाठ्यपुस्तक से अलग करने के लिए अपने नैतिक और कानूनी अधिकार का प्रयोग करने में सक्षम होना चाहिए जिसका हम समर्थन नहीं करते हैं.”


उन्होंने कहा, 'हमसे इन बदलावों के बारे में कोई सम्पर्क नहीं किया गया. अगर एनसीईआरटी ने दूसरे विशेषज्ञों से काट छांट को लेकर कोई चर्चा नहीं की, तब हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि हम इससे पूरी तरह से असहमत हैं.'


इसमें कहा गया है, 'हमारा मानना है कि ऐसी एकतरफा काट छांट से पाठ्य पुस्तक की भावना का उल्लंघन होता है. अक्सर और श्रृंखलाबद्ध काट छांट का सत्ता को प्रसन्न करने के अलावा और कोई तर्क समझ में नहीं आता.'


एनसीईआरटी का जवाब


हालांकि, एनसीईआरटी ने कहा है कि किसी की सम्बद्धता को वापस लेने का कोई सवाल ही नहीं है क्योंकि स्कूली स्तर पर पाठ्यपुस्तकें किसी दिए गए विषय पर ज्ञान और समझ के आधार पर विकसित की जाती हैं और किसी भी स्तर पर व्यक्तिगत लेखन का दावा नहीं किया जाता है.


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