नई दिल्ली: नागरिकता संशोधन विधेयक पर सोमवार को लोकसभा में कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और तेलंगाना राष्ट्र समिति ने विरोध दर्ज कराया. सभी दलों ने कहा कि विधेयक पर पुनर्विचार की जरूरत है.


एनसीपी की सुप्रिया सुले ने कहा कि गृह मंत्री ने संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में विधेयक पर सहमति की बात कही जो तथ्यात्मक रूप से गलत है क्योंकि जेपीसी में इस पर कई सदस्यों ने असहमति जताई थी. उन्होंने सवाल किया कि विधेयक लाने की तत्काल जरूरत क्यों आ पड़ी. यदि पूर्वोत्तर को अभी शामिल नहीं किया जा सकता तो सरकार इसे इतनी जल्दबाजी में क्यों लाई.


एनसीपी सदस्य ने विधेयक वापस लेकर सरकार से इस पर पुनर्विचार की मांग की और कहा कि यह विधेयक संसद से पारित हो गया तो उच्चतम न्यायालय में नहीं टिकेगा. सुप्रिया सुले ने कहा कि वह सरकार की मंशा पर सवाल नहीं उठा रहीं, लेकिन धारणाओं को लेकर प्रश्नचिह्न खड़ा होता है. उन्होंने कहा कि मुस्लिमों में असुरक्षा का माहौल बन रहा है. क्या एनआरसी विफल हो गया है, इसलिए सरकार विधेयक लाई है? सरकार को देश के दूसरे सबसे बड़े समुदाय की चिंताओं पर ध्यान देना चाहिए.


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वहीं बीजू जनता दल ने विधेयक का समर्थन किया है. बीजू जनता दल (बीजद) की शर्मिष्ठा सेठी ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इस विधेयक को एनआरसी से नहीं जोड़ा जाए, सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए. उन्होंने इसमें श्रीलंका को भी शामिल करने की मांग की. बीजद सदस्य ने सुझाव दिया कि इसमें मुस्लिम समुदाय के लोगों को भी शामिल करने पर विचार किया जाए. जेडीयू ने भी बिल का समर्थन किया है.


वहीं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के अफजाल अंसारी ने कहा कि यह संशोधन विधेयक संविधान की मूल भावना के विपरीत है इसलिए उनकी पार्टी इसका विरोध कर रही है. उन्होंने कहा कि जिन तीन देशों की बात हो रही है, उनमें धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं होने की बात ठीक हो सकती है लेकिन यह भी कटु सत्य है कि भारत से पाकिस्तान जाने वाले मुसलमानों के साथ भी वहां के नागरिकों के समान व्यवहार नहीं किया जाता. अंसारी ने कहा कि सरकार इन देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के खिलाफ उन्हें पनाह देने की दरियादिली दिखा रही है तो थोड़ा और बड़ा दिल करके उसे मुस्लिमों को भी इसमें शामिल करना चाहिए.


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तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के नामा नागेश्वर राव ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि धार्मिक आधार पर नागरिकता देना संविधान के मूल सिद्धांत के खिलाफ है. उन्होंने विधेयक में अन्य धर्मों के साथ ‘मुस्लिम’ समुदाय को भी शामिल करने की मांग की.


उधर समाजवादी पार्टी (सपा) के एस टी हसन ने कहा कि यह विधेयक ऐसा लगता है कि एनआरसी की भूमिका निभा रहा है जिससे मुसलमानों में डर का माहौल है. उन्होंने विधेयक का विरोध करते हुए इस पर पुनर्विचार करने की और इसमें मुसलमानों को भी समाहित करने की मांग की.


आईयूएमएल के पी के कुन्हालीकुट्टी और माकपा के एस वेंकटेशन ने भी विधेयक का विरोध किया. कुन्हालीकुट्टी ने कहा कि आज आजाद भारत के लिए काला दिन है और पहली बार ऐसा भेदभाव वाला विधेयक लाया गया है. इससे सरकार का सांप्रदायिक एजेंडा स्पष्ट हो जाता है. उन्होंने भी कहा कि यह विधेयक उच्चतम न्यायालय में कानूनी पड़ताल में टिक नहीं पाएगा. एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी बिल पर कड़ी आपत्ति जताई.


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