किसानों के भारत बंद को NCP का समर्थन, कृषि बिल पर क्या अपने पुराने रुख से पलट रही पार्टी?
इस मसले पर एनसीपी का रवैया दोहरा नजर आता है. सभी किसान बिलों पर संसद के दोनों सदनों में हुई चर्चा पर एक नजर डालें तो यह बात साफ हो जाती है.
नई दिल्ली: एनसीपी नेता शरद पवार ने 8 दिसंबर को किसान संगठनों की ओर से बुलाए गए भारत बंद का समर्थन किया है. लेकिन ताज्जुब की बात यह है कि जब संसद में इन बिलों पर चर्चा हुई थी तब शरद पवार की पार्टी एनसीपी ने इन बिलों का विरोध नहीं किया था.
किसानों के आंदोलन के बहाने अब राजनीति भी तेज हो गई है. सोनिया गांधी समेत 11 विपक्षी नेताओं ने 8 दिसंबर को किसान संगठनों की ओर से बुलाए गए भारत बंद के समर्थन का ऐलान किया है.
इन नेताओं में एनसीपी प्रमुख शरद पवार भी शामिल हैं. इतना ही नहीं सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी के साथ शरद पवार 9 दिसंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात भी करने वाले हैं. दोनों नेता राष्ट्रपति से किसान बिलों को वापस लिए जाने की मांग कर सकते हैं.
हालांकि इस मसले पर एनसीपी का रवैया दोहरा नजर आता है. सभी किसान बिलों पर संसद के दोनों सदनों में हुई चर्चा पर एक नजर डालें तो यह बात साफ हो जाती है. बिल पर लोकसभा में 17 सितंबर को चर्चा शुरू हुई थी. लोकसभा की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक एनसीपी की ओर से रायगढ़ से सांसद संजय तटकरे ने चर्चा में भाग लिया था.
वेबसाइट पर उनके भाषण का जो ब्यौरा दिया गया है उसके मुताबिक़ अपने पूरे भाषण में तटकरे ने ज़्यादातर समय इस बात पर दिया कि शरद पवार ने देश और महाराष्ट्र के किसानों की भलाई के लिए कितना काम किया है. उन्होंने कहा कि शरद पवार ने देशभर के किसानों का 75000 करोड़ रुपया माफ़ किया था. इस बिल के बारे में तटकरे ने बस इतना कहा था, "मुझे शक है कि ये बिल किसानों के हितों की रक्षा कर सकेगा." तटकरे ने अपने भाषण में कहीं ये नहीं कहा कि वो इस बिल का विरोध करते हैं.
वहीं, राज्यसभा में 20 सितंबर को बिल भारी हंगामे के बीच पारित हुआ था. राज्यसभा में पार्टी की ओर से वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल पटेल ने चर्चा में भाग लिया था. पटेल ने अपने भाषण के दौरान सरकार से कहा था, " बिल लाने के पहले सरकार को शरद पवार और प्रकाश सिंह बादल जैसे वरिष्ठ नेताओं से सलाह लेनी चाहिए थी."
ये कहना मुश्किल है कि अगर दोनों सदनों में बिल पारित करवाने के लिए वोटिंग करवाई गई होती तो पार्टी का रुख क्या होता. दोनों ही सदनों में बिल को ध्वनि मत से पारित करवाया गया था.
इतना ही नहीं, 2004 से 2014 के बीच में देश के कृषि मंत्री के पद पर रहते हुए खुद शरद पवार ने कृषि के क्षेत्र में निजी निवेश की जोरदार वकालत की थी. आज जिस एपीएमसी कानून के तहत आने वाले मंडियों को लेकर बवाल मचा है उस में निजी निवेश को लेकर शरद पवार ने अगस्त 2010 और नवंबर 2011 में सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा था.
नवंबर 2011 के अपने पत्र में पवार ने साफ-साफ लिखा था कि केंद्र सरकार की ओर से 2003 में तैयार किए गए मॉडल एपीएमसी कानून की तर्ज पर ही राज्यों को भी अपने एपीएमसी एक्ट में बदलाव करना चाहिए. जिससे की प्राइवेट सेक्टर को निवेश के लिए प्रोत्साहित किया जा सके.
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