NDA Vs UPA: अगर नरेंद्र मोदी सरकार (Modi Government)के ख़िलाफ़ कांग्रेस (Congress)और तमाम विपक्षी पार्टियां एक साझा विपक्षी फ्रंट (Opposition) बनाने की कोई कोशिश कर रही थी तो राष्ट्रपति (Presidential Election) और उपराष्ट्रपति चुनाव (Vice Presidential Election)ने उस कोशिश में पलीता लगा दिया है और विपक्षी पार्टियों को सबसे ज़्यादा झटका लगा है. अबतक विपक्षी एकता का झंडा उठाए चल रहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री (West Bengal CM)और तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी (Mamta Banerjee)से.
ममता के ऐलान ने विपक्ष को किया परेशान
अब इसे संयोग कहें या कुछ और, लेकिन जिस दिन राष्ट्रपति चुनाव के लिए हुए वोटिंग की मतगणना चल रही थी ठीक उसी दिन ममता बनर्जी ने उपराष्ट्रपति चुनाव में तटस्थ रहने का फ़ैसला किया. दूसरे शब्दों में कहें तो ममता बनर्जी ने जता दिया कि वो ना तो सत्ता पक्ष के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ का साथ देंगी ना ही विपक्ष की राष्ट्रपति उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा के पक्ष में ही मतदान करेंगी.
पहले से मोदी सरकार के खिलाफ ममता बनर्जी के तेवर को देखते हुए यह माना जा रहा था कि उपराष्ट्रपति के चुनाव में वह विपक्ष के उम्मीदवार का समर्थन करेंगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ और जाहिर है इससे विपक्ष की अगुवाई करने वाली कांग्रेस बेहद खफा है.
ममता का साथ ना आना यूपीए को बड़ा झटका
लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा है कि ममता का साथ न आना विपक्षी एकता के लिए यह बड़ा झटका है लेकिन इसकी शुरुआत राष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए की ओर से द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाए जाने के साथ ही हो गई थी. मुर्मू को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद न सिर्फ़ वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल जैसी गैर एनडीए गैर यूपीए पार्टियां विपक्ष को छोड़कर उनके पक्ष में चली गईं. बल्कि झारखंड मुक्ति मोर्चा और शिवसेना ने भी विपक्ष का साथ छोड़ दिया.
हालांकि इसका मतलब यह कतई नहीं है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा और बीजू जनता दल जैसी पार्टियां एनडीए के साथ आएंगी. वैसे राष्ट्रपति चुनाव में जिस तरह से कई विपक्षी सांसदों और विधायकों ने द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में क्रॉस वोटिंग किया यह विपक्षी एकता के लिए अच्छा संकेत नहीं है.
क्रॉस वोटिंग ने बिगाड़ा था खेल
माना जा रहा है कि राष्ट्रपति चुनाव में 17 सांसदों और 100 से ज्यादा विधायकों ने द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में क्रॉस वोटिंग किया. ममता बनर्जी और कांग्रेस के बीच रिश्तों में आई दूरी का असर अब संसद में भी दिखने लगा है, जहां विपक्ष की ज्यादातर बैठकों से टीएमसी नदारद नजर आ रही है. तो अब नरेंद्र मोदी जैसे कद्दावर नेता को चुनौती देने का सपना देख रहे विपक्ष के लिए ये संकेत निश्चित ही शुभ नहीं है.
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