चीन के विदेश मंत्री वांग यी भारत दौरे पर हैं. शुक्रवार को उन्होंने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मुलाकात की. पूर्वी लद्दाख में लगभग दो साल पहले शुरू हुए सैन्य गतिरोध के चलते दोनों देशों के संबंधों में आए तनाव के बाद चीन की ओर से यह पहली उच्चस्तरीय यात्रा है. चीन के विदेश मंत्री गुरुवार शाम को दिल्ली पहुंचे थे.दोनों अफसरों के बीच सौहार्दपूर्ण माहौल में बातचीत हुई, जिसमें कई अहम मुद्दों पर भी चर्चा हुई.
चीनी विदेश मंत्री और भारतीय एनएसए इस नतीजे पर पहुंचे कि एलएसी पर तनाव जल्द से जल्द खत्म किया जाए और जिन इलाकों में अब तक डिसएंगेजमेंट का काम नहीं हुआ है, उसे पूरा किया जाए. साथ ही द्विपक्षीय संबंधों को स्वाभाविक रूप से चलने देने की रुकावटों को भी दूर करने पर दोनों लोग सहमत हुए.
मौजूदा स्थिति दोनों देशों के हित में नहीं
इस बैठक में यह बात सामने आई कि मौजूदा स्थिति दोनों ही देशों के हितों में नहीं है. आपसी सहयोग से ही शांति स्थापित होगी और रिश्ते बेहतर होने का वातावरण बनेगा. कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर सकारात्मक बातचीत को जारी रखना होगा ताकि शांति स्थापित हो. ऐसे कदमों से दूर रहना होगा, जो समानता और आपसी सुरक्षा का उल्लंघन करते हैं.
उस दिशा में काम करना होगा, जिससे बाकी बचे हुए मुद्दे जल्द से जल्द सुलझ जाएं. परिपक्वता और ईमानदारी की जरूरत है. चीनी पक्ष ने भारतीय एनएसए अजीत डोभाल को अपने देश आने का न्योता दिया है. एनएसए ने इस न्योते पर सकारात्मक रुख दिखाते हुए कहा कि जरूरी मुद्दे सुलझ जाने के बाद वह चीन का दौरा कर सकते हैं.
2020 में दोनों ने की थी लंबी बातचीत
डोभाल और वांग ने पूर्वी लद्दाख में तनाव को कम करने को लेकर जुलाई 2020 में फोन पर लंबी बातचीत की थी. भारत और चीन पूर्वी लद्दाख में गतिरोध का हल निकालने के लिए उच्च स्तरीय सैन्य वार्ता भी कर रहे हैं. दोनों पक्षों ने बातचीत के बाद कुछ स्थानों से अपने सैनिक वापस भी बुलाए हैं.
पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में लंबित मुद्दों को हल करने के लिए 11 मार्च को भारत और चीन के बीच 15वें दौर की उच्च स्तरीय सैन्य वार्ता हुई थी. हालांकि, वार्ता में कोई समाधान नहीं निकल पाया था.
15 जून को गलवान में हुई थी हिंसा
गौरतलब है कि पैंगोंग झील के इलाकों में भारत और चीन की सेनाओं के बीच विवाद के बाद, पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून, 2020 को हिंसक संघर्ष से तनाव बढ़ गया था. इसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे. चीन के कई सैनिक भी मारे गए थे.
दोनों पक्षों ने धीरे-धीरे वहां हजारों सैनिकों तथा भारी हथियारों को पहुंचाकर अपनी तैनाती बढ़ाई है. वर्तमान में संवेदनशील क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दोनों ओर में से प्रत्येक हिस्से में लगभग 50,000 से 60,000 सैनिक तैनात हैं.
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