Welcome Olympic Champions: टोक्यो ओलंपिक में इतिहास रचने के बाद भारत के चैंपियन स्वदेश लौटे. दिल्ली एयरपोर्ट पर ढोल-नगारों और ‘भारत माता की जय’ के नारे के साथ उनका भव्य स्वागत हुआ. एयरपोर्ट के बाहर ओलंपिक विजेताओं के इंतजार में प्रशंसक जश्न मनाते दिखे. भारतीय दल में गोल्ड विजेता नीरज चोपड़ा, ब्रॉन्ज विजेता बजरंग पूनिया और रवि दहिया शामिल थे. भारतीय हॉकी टीम भी दिल्ली लौटी. स्टार बॉक्सर लवलीना बोरगोहेन भी देश लौटीं.एयरपोर्ट पर खिलाड़ियों की अगवानी के लिए खेल मंत्रालय के अधिकारी मौजूद रहे. भारतीय युवा मोर्चा के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या ने नीरज चोपड़ा का गुलदस्ता देकर स्वागत किया. 


प्रशंसकों ने बजरंग पूनिया को कंधे पर उठा लिया. उन्होंने हाथ हिलाकर समर्थकों का अभिवादन किया. लोगों के हाथों में वेलकम बजरंग पूनिया के प्लेकार्ड्स थे. प्रशंसकों ने फूलों की बारिश की. बॉक्सर लवलीना बोरगोहेन एबीपी न्यूज़ के सवाल पर कहा कि वो बाद में बात करेंगी.


ओलंपिक में कैसा रहा भारत का सफर


ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धा में भारत को पहला पदक मिला जो 13 साल बाद पहला गोल्ड मेडल भी था. इसके अलावा हॉकी में 41 सालों से चला आ रहे मेडल का इंतजार भी खत्म हुआ, वेटलिफ्टिंग में पहला सिल्वर मेडल और नौ वर्षों बाद मुक्केबाजी में पहला मेडल भारत की झोली में आया जबकि बैडमिंटन स्टार पीवी सिंधू दो ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी बनीं. ज्यादातर नए खिलाड़ियों ने पोडियम स्थान हासिल किये और एक ओलंपिक में सबसे ज्यादा पदक भी मिले और देश के लिये इतना सबकुछ एक ही ओलंपिक के दौरान हुआ.


ओलंपिक खेलों में प्रतिस्पर्धाओं के पहले दिन ही मीराबाई ने देश का पदक तालिका में खाता खोल दिया जो पहले कभी नहीं हुआ था. मणिपुर की यह वेटलिफ्टर चार फीट 11 इंच की है लेकिन उसने 202 किग्रा (87 + 115) का वजन उठाकर सिल्वर हासिल किया और दुनिया को दिखा कि क्यों आकार मायने नहीं रखता और इसे मायने नहीं रखना चाहिए. वह अपने प्रदर्शन के दौरान आत्मविश्वास से भरी हुई थीं जबकि पांच साल पहले वह आंसू लिये निराशा में इस मंच से विदा हुई थी जिसमें वह एक भी वैध वजन नहीं उठा सकी थीं और 24 जुलाई को वह वेटलिफ्टिंग में पहली सिल्वर मेडल विजेता बनकर मुस्कुरा रही थीं.


देश को इसी तरह की शुरूआत की जरूरत थी लेकिन इसके बाद पदकों की शांति छा गयी. कुछ प्रबल दावेदार प्रभाव डाले बिना ही बाहर हो गये, जिसमें सबसे बड़ी निराशा 15 सदस्यीय मजबूत निशानेबाजी दल से मिली. सिर्फ सौरभ चौधरी ही फाइनल्स में जगह बना सके और वह भी पोडियम तक नहीं पहुंच सके जिससे उनकी तैयारियों पर काफी सवाल उठाये गये.


किसी के पास भी स्पष्ट जवाब नहीं था कि क्या गलत हुआ. ऐसा लग रहा था कि भारतीय अभियान इससे उबर नहीं सकेगा. लेकिन सिंधू ने ब्रॉन्ज मेडल जीतकर चीजों को पटरी पर ला दिया. हैदराबादी बैडमिंटन खिलाड़ी 2016 ओलंपिक में अपने सिल्वर का रंग बेहतर करना चाहती थीं. लेकिन वह ऐसा तो नहीं कर सकीं, पर दो ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी बन गयीं.


इसके बाद दोनों (पुरूष और महिला) हॉकी टीमों ने शुरूआती झटकों के बावजूद टक्कर देने का जज्बा दिखाया. महिला खिलाड़ियों ने भारतीय दल के अभियान की जिम्मेदारी संभालना जारी रखा जिसमें मुक्केबाजी रिंग में असम की 23 साल की लवलीना बोरगोहेन (69 किग्रा) ने चार अगस्त को ब्रॉन्ज हासिल किया. अगले ही दिन रवि कुमार दहिया ओलंपिक में सिल्वर हासिल करने वाले दूसरे भारतीय पहलवान बने. वह ओलंपिक में पदार्पण पर ऐसा करने वाले पहले खिलाड़ी बने.


इससे कुछ ही घंटों पहले ब्रॉन्ज से पुरुष हॉकी टीम का पदक का लंबे समय से चला आ रहा इंतजार खत्म हुआ. मनप्रीत सिंह और उनकी टीम ने जर्मनी के खिलाफ प्ले-ऑफ में वापसी करते हुए ऐसी पीढ़ी के लिये देश में हॉकी के फिर से फूलने फलने के बीज बो दिये जिसने सिर्फ आठ गोल्ड मेडल जीतने की दास्तानें सुनी थीं और खेल की दर्दनाक गिरावट को देख रही थी. इसे देखकर आंखों में आंसू थे, खुशी थी और सबसे बड़ी चीज गर्व था क्योंकि हॉकी भारत का खेल था लेकिन इसके गिरते स्तर ने क्रिकेट इसकी जगह लेता चला गया.


ओलंपिक समापन की ओर बढ़ रहा था जिसमें नीरज चोपड़ा के भाला फेंक के गोल्ड ने चार चांद लगा दिये जिससे भारत ने 13 साल बाद गोल्ड और एथलेटिक्स में पहला पदक हासिल किया. स्वर्ण पदक के दावेदार माने जा रहे बजरंग पूनिया मायूसी के बाद कुश्ती मैट पर ब्रॉन्ज जीतने में सफल रहे.