कश्मीर में चुनाव की बयार है. सरहद के पार भी. भारत ने अनुच्छेद 370 हटाकर जो इतिहास रचा, उसकी धमक से पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में अभी तक हलचल है. राज की बात ये है कि पीओके यानी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का चरित्र भी बदलने को पड़ोसी मजबूर हो रहा है. राज की बात ये है कि पीओके को सूबा बनाने के लिए पाकिस्तान पर भारी दबाव है और आज हो रहे चुनावों के बाद इसकी तस्वीर तेजी से बदलने के संकेत भी हैं.
पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम इमरान खान भले ही भारत के हिस्से वाला कश्मीर भी लेने का दावा करें या फिर मरियम शरीफ कितना भी चिल्लाती रहें कि –पाकिस्तानी फौज, दिल्ली तक करेगी मौज-, लेकिन असलियत ये है कि वो जिसे आजाद कश्मीर कहते रहे हैं, वहां खुद वे अपने संविधान की लकीर खींचने के लिए मजबूर हो रहे हैं.
दरअसल, जिस तरह से भारत ने जम्मू-कश्मीर को लेकर अपनी रणनीति को जमीन पर उतारा है, उसमें पड़ोसी बुरी तरह फंस गया है. भरसक कोशिशों के बावजूद जम्मू-कश्मीर में तो इंसानियता और जम्हूरियत की गंगा-जमुना तेजी से बह चली है. परिसमीन हो रहा है. चुनाव की तैयारियां चरम पर हैं. पाकिस्तान के माउथपीस बने सभी नेता अलग-थलग हैं. कोई पूछने वाला नहीं है. गुपकार समूह भी अब भारत के संविधान की बात कर रहा है. उसके दायरे मे रहकर जम्हूरियत की बात कर रहा है. मतलब मतभेदों के बीच लोकतंत्र की फसल लहलहाने की तैयारी चरम पर है.
हर पाकिस्तानी साजिश का दिया जा रहा जवाब
हर पाकिस्तानी साजिश का मुंहतोड़ जवाब दिया जा रहा है. घाटी में अशांति फैलाने के मंसूबे सिर तो उठाते हैं, लेकिन भारतीय एजेंसियां उनका फन कुचलने में देर नहीं लगाती. उल्टे पीओके और बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के हनन और पाकिस्तानी सेना के अत्याचार की कहानियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सामने आने लगी हैं. लोकतंत्र का दिखावा करने के लिए 25 जुलाई को यहां चुनाव कराया जा रहा है. चुनाव कैसे होते हैं, उसको हम छोड़ भी दें तो पाकिस्तान पर दबाव अब पीओके बनाने का है.
पीओके के हालात को लेकर परेशान है चीन
राज की बात ये है कि पीओके को सूबा बनाने का दबाव फिलहाल उसके सबसे बड़े हमदर्द और हाकिम चीन ने बना रखा है. पीओके में चीन का भारी-भरकम निवेश और उसके लोगों की मौजूदगी किसी से छिपी नहीं है. सीपैक उसका महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है. इतना भारी-भरकम निवेश और अपने लोगों की मौजूदगी के चलते चीन पीओके के हालात को लेकर परेशान है. खासतौर से जिस तरह से भारत ने आक्रामक रुख अख्तियार किया है और अपने हिस्से वाले कश्मीर में जो कदम उठाए हैं, उससे वह ज्यादा परेशान है.
राज की बात ये है कि बालाकोट में भारतीय वायुसेना के कहर के बाद से ही चीन की चिंता ब़ढ़ गई है. ऊपर से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में भारत ने लोकतंक्र को मजबूत कर विकास की बयार बहा दी है. लगातार भारत इस क्षेत्र में ज्यादा मजबूत और अंतरराष्ट्रीय फोरमों पर प्रभाव बढाता जा रहा है. इधर, आजाद कश्मीर के नाम पर पीओके के हालात किसी से छिपे नहीं हैं. ऐसे में चीन की चिंता है कि अगर भारत संपूर्ण कश्मीर को अपनी संसद के प्रस्ताव के मुताबिक लेने के लिए आगे बढ़ता है तो चीन के निवेश और उसके प्रोजेक्ट का बोरिया बिस्तर बंध सकता है.
संयुक्त राष्ट्र में यह क्षेत्र विवादित
दरअसल, पाकिस्तान ने इसे आजाद कश्मीर का दर्जा दिया है. यह पाकिस्तान का अंग भी नहीं. संयुक्त राष्ट्र में यह विवादित क्षेत्र है. ऐसे में चीन अपनी परियोजना और लोगों को बचाने के लिए सैन्य इस्तेमाल भी नहीं कर सकेगा. ऐसा करने के परिणाम दूरगामी हो सकते हैं. इसीलिए, वह पाकिस्तान पर अब पूरी तरह से दबाव बना रहा है कि इसे अपने प्रदेश का दर्जा दे. तब वह यहां पर ज्यादा मजबूती और अंतरराष्ट्रीय हैसियत के साथ दखल दे सकेगा.
यदि ऐसा होता है तो फिर पाकिस्तान खुद ही एक सीमा खींच लेगा. अपने सूबे की सीमा खींचने के बाद पाकिस्तान के लिए भी हदें होंगी. उस तरफ से होने वाला कुछ भी आजादी की लड़ाई नहीं, बल्कि उसका आक्रमण माना जाएगा. जाहिर है कि अभी पीओके घाटी का चुनाव आगे तक का मुस्तकबिल न सिर्फ तय करेगा, बल्कि इस पूरे क्षेत्र के तमाम आयाम भी बदल देगा.
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