Nepal Citizenship Bill: नेपाल में गहरा सकता है संवैधानिक संकट ! राष्ट्रपति का नागरिकता बिल को मंजूरी देने से इनकार
Nepal Citizenship Bill: राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी (Vidya Devi Bhandari) ने 14 अगस्त को नागरिकता बिल दोबारा विचार के लिए भेज दिया था. इसके बाद भी बिल को सदन से दोबारा भेजा गया.
![Nepal Citizenship Bill: नेपाल में गहरा सकता है संवैधानिक संकट ! राष्ट्रपति का नागरिकता बिल को मंजूरी देने से इनकार Nepal president vidya devi bhandari refused to assent citizenship bill into law Nepal Citizenship Bill: नेपाल में गहरा सकता है संवैधानिक संकट ! राष्ट्रपति का नागरिकता बिल को मंजूरी देने से इनकार](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2022/09/21/dcbce0fcbae9732e1269114821d7d2531663739164915539_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
Nepal President Refused to Sign Citizenship Bill: नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी (Vidya Devi Bhandari) ने नागरिकता बिल को मंजूरी देने से इनकार कर दिया है. इसके बाद अब यहां संवैधानिक संकट गहराने के आसार बढ़ गए हैं. नेपाली संसद के दोनों सदनों ने इस बिल को दोबारा पारित किया था और राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेजा था. ऐसे में उन्होंने इसे मंजूरी देने से इनकार कर दिया है.
दरअसल, नेपाल के संविधान के मुताबिक अगर किसी बिल को संसद के दोनों सदन दोबारा भेजते हैं तो राष्ट्रपति को 15 दिन के अंदर फैसला लेना होता है. इसी के तहत फैसला लेते हुए राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने इसे मंजूरी नहीं दी. राष्ट्रपति के राजनीतिक सलाहकार लालबाबू यादव ने पुष्टि की कि भंडारी ने "संविधान की रक्षा के लिए" विधेयक को प्रमाणित करने से इनकार कर दिया है.
'संविधान की रक्षा करना राष्ट्रपति की जिम्मेदारी'
राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के इस फैसले पर उनके सलाहकार लालबाबू यादव ने बयान जारी किया. उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 61(4) के तहत संवैधानिक व्यवस्था के संरक्षण की जिम्मेदारी राष्ट्रपति की ह. इसका मतलब यह है कि संविधान में जितने भी अनुच्छेद हैं सबकी रक्षा की जिम्मेदारी उनकी है. अकेल अनुच्छेद 113 को देखकर कोई यह नहीं कह सकता कि राष्ट्रपति ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई है.
राष्ट्रपति ने दोबारा विचार के लिए भेजा था बिल
राष्ट्रपति के सलाहकार का यह भी कहना है कि मौजूदा नागरिकता बिल संविधान के पार्ट 2 का सीधा-सीधा उल्लंघन है. इसमें महिलाओं के साथ विभेद होने के साथ प्रांतीय पहचान के साथ सिंगल फेडरल नागरिकता की भी व्यवस्था नहीं है. दरअसल, राष्ट्रपति ने 14 अगस्त को इस बिल को दोबारा विचार के लिए भेज दिया था. इसके बाद भी बिल को सदन से दोबारा भेजा गया.
बता दें कि, राष्ट्रपति द्वारा नागरिकता विधेयक को स्वीकार करने से इनकार करने पर सत्तारूढ़ गठबंधन के रूप में अदालत में प्रवेश हो सकता है. कई संवैधानिक विशेषज्ञों का कहना है कि संविधान राष्ट्रपति को उनकी सहमति के लिए बिल पर उनकी सहमति से इनकार करने का अधिकार नहीं देता है.
ये भी पढ़ें:
![IOI](https://cdn.abplive.com/images/IOA-countdown.png)
ट्रेंडिंग न्यूज
टॉप हेडलाइंस
![ABP Premium](https://cdn.abplive.com/imagebank/metaverse-mid.png)
![रुमान हाशमी, वरिष्ठ पत्रकार](https://feeds.abplive.com/onecms/images/author/e4a9eaf90f4980de05631c081223bb0f.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=70)