नई दिल्ली: जामा मस्जिद के पास बकरा मंडी में कोरोना वायरस का असर देखा जा रहा है. यहां बिक्रेताओं को बकरीद से एक हफ्ते पहले भी बकरे का खरीदार नहीं मिल रहा है. जिसके चलते उनके सामने कई तरह की समस्या खड़ी हो गई है.


22 वर्षीय युवक उत्तर प्रदेश के बरेली से दो हफ्ते दिल्ली के बकरा मंडी आया था. शकील खान को बकरा खरीदार नहीं मिलने से खान को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. उसे उर्दू बाजार रोड पर बंद पड़ी दुकानों के बाहर रात बितानी पड़ रही है. साथ ही मालिक के दिए पैसे खत्म होने को हैं जिससे उसकी चिंता बढ़ गई है. उसने कहा, “अगर कुछ बकरे बिक तो उससे कुछ कमाई हो जाती. मेरे मालिक ने एक जोड़े बकरे की कीमत 30 हजार रुपए की कीमत तय की है. हर बकरे का वजन करीब 40 किलो है.” एक खरीदार ने बताया, "वैश्विक महामारी का डर लोगों पर हावी है. पिछले साल तक मैं चार बकरे खरीदता था. इस बार एक बकरा भी नहीं खरीद पा रहा हूं.


पांच सालों से बकरा बाजार आ रहे खान ने कहा, ‘‘पिछले साल मैंने आठ बकरे 1.6 लाख रुपए में बेचे थे. हर बकरे की कीमत 20 हजार रुपये थी. इस साल एक भी खरीदार ने अब तक 10 हजार रुपये से ज्यादा की पेशकश नहीं की है.” सफीना और उनकी बहू बकरीद के लिए पुरानी दिल्ली के फिल्मिस्तान इलाके से एक बकरा खरीदने आए थे. उन्होंने कहा, “हम हर साल एक बकरा खरीदते हैं. इस साल हमारी दुकान लगभग पूरे समय बंद रही. यह मुश्किल वक्त है. हमने त्योहार के लिए कुछ पैसे बचाए थे लेकिन हम दिखावा करने का जोखिम नहीं उठा सकते.”


बकरा मंडी पर महामारी का साया


बहू ने कहा कि उन्होंने पिछले साल 15 हजार रुपये में एक बकरा खरीदा था. मगर इस साल उनके पास सिर्फ 10 हजार रुपए में अच्छा बकरा मिलना बहुत मुश्किल है.” कपड़े की दुकान के मालिक जैद मलिक ने कहा कि प्रशासन ने कोरोना वायरस के डर से बकरों की बिक्री की इजाजत नहीं दी है. उन्होंने कहा, “पिछले सालों की तुलना में इस बार बाजार में कुछ भी नहीं है. पहले ये खचाखच भरे रहते थे और आपको कहीं खाली जगह नहीं मिलती थी मगर अब आप लोगों को आसानी से गिन सकते हैं.” सामान्य दिनों में कुर्बानी के लिए 15-20 बकरे बेचनेवाले मोहम्मद इजहार का भी यही रोना है.


मालिकों के नहीं बिक रहे बकरे


इजाहर इस साल केवल एक जोड़ा बकरा नुकसान उठाकर बेचने को मजबूर हुए. उन्होंने कहा, “कोरोना वायरस नहीं होता तो एक जोड़े के कम से कम 30 से 35 हजार रुपये मिलते. एक बकरे को तैयार करने में 18 माह का समय लगता है. उसकी देखरेख पर 10 हजार रुपये खर्च कर हो जाते हैं. खाने में गेहूं, चना, मक्का और जौ देकर उसे बड़ा किया जाता.” विक्रेताओं का कहना है कि अगर इस साल उनके बकरे-बकरियां नहीं बिक पाईं तो उन्हें अगले साल के लिए रखना पड़ेगा.


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