Parliament Inauguration: नए संसद भवन के उद्घाटन की तारीख जैसे-जैसे नज़दीक आती जा रही है उसका रोमांच और उससे जुड़े विवाद भी बढ़ता जा रहा है. एक तरफ जहां कांग्रेस, टीएमसी और कुछ अन्य विपक्षी दलों ने उद्घाटन का बहिष्कार करने का ऐलान कर दिया है वहीं उद्घाटन समारोह की तैयारी भी ज़ोरों पर है.
दोनों सदनों के सांसदों को निमंत्रण पत्र भेजा जा चुका है. सूत्रों के मुताबिक सांसदों के अलावा लोकसभा के सभी पूर्व स्पीकरों और राज्यसभा के सभी पूर्व सभापतियों के साथ-साथ सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी न्यौता भेजा जा रहा है. संसद भवन के उद्घाटन के एक दिन पहले यानि 27 मई को दिल्ली में नीति आयोग के गवर्निंग काउंसिल की बैठक बुलाई गई है जिसमें सभी मुख्यमंत्री पदेन सदस्य होते हैं. सूत्रों के मुताबिक इसके अलावा कुछ कलाकारों और विशिष्ट मेहमानों को भी निमंत्रण पत्र भेजा जा रहा है.
नया संसद भवन 65000 स्क्वायर मीटर में बनाया गया है. पुरानी बिल्डिंग की तरह ही नई बिल्डिंग में भी लोकसभा और राज्यसभा के लिए अलग-अलग चेंबर बनाया गया है. लोकसभा चेंबर में जहां एक साथ 888 सदस्य बैठ सकते हैं वहीं राज्यसभा में कुल 382 लोगों के बैठने की व्यवस्था की गई है. हालांकि पुरानी बिल्डिंग में संयुक्त सत्र का आयोजन सेंट्रल हॉल में हुआ करता था लेकिन नई बिल्डिंग में इसका आयोजन लोकसभा चेंबर में हुआ करेगा. संयुक्त सत्र के दौरान कुल अधिकतम 1282 सदस्यों तक के बैठने का इंतज़ाम किया गया है.
एक रोचक जानकारी ये है कि लोकसभा चेंबर को जहां राष्ट्रीय पक्षी मोर की थीम पर बनाया गया है वहीं राज्य सभा चैंबर को राष्ट्रीय फूल कमल की थीम पर बनाया गया है. पुरानी बिल्डिंग का डिजाइन जहां गोलाकार था वहीं नई बिल्डिंग को तिकोना बनाया गया है ताकि जगह का ज़्यादा से ज़्यादा उपयोग किया जा सके.
सेंट्रल हॉल की तर्ज पर सेंट्रल लाउंज
नई बिल्डिंग में एक सेंट्रल लाउंज बनाया गया है जिसे पुरानी बिल्डिंग में स्थित सेंट्रल हॉल के समानांतर देखा जा सकता है. इस लाउंज में भी सांसद बैठकर आपस में बातचीत कर सकते हैं. दोनों चैंबरों में से निकल कर सांसद एक आंगन (courtyard) से होकर इस लाउंज में जा सकेंगे. आंगन में राष्ट्रीय वृक्ष यानि पीपल का पेड़ लगाया गया है.
1927 में बनकर तैयार हुई थी वर्तमान इमारत
संसद के वर्तमान बिल्डिंग का निर्माण कार्य 1921 में शुरू किया गया था जिसे 1927 में बनाकर तैयार कर दिया गया. सर एडविन लुटियंस और हरबर्ट बेकर इसके मुख्य आर्किटेक्ट थे. ब्रिटिश काल में इसे काउंसिल हाउस कहा जाता था और इसमें इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल की बैठकें हुआ करती थीं.
क्यों बनानी पड़ी है नई इमारत
लगभग 100 साल पुरानी इमारत में आधुनिक सुविधाओं का अभाव है और जगह की बेहद कमी हो गई है. यहां तक कि दोनों चैंबरों में सांसदों को बैठने में भी काफ़ी दिक्कत होती है. सुरक्षा को लेकर भी चिंताएं रहती हैं क्योंकि समय के साथ बिजली के तार लगाए गए हैं जिससे आग लगने का खतरा हो सकता है. जिस समय भवन का निर्माण हुआ था उस समय दिल्ली भूकंप क्षेत्र के जोन 2 में आती थी जबकि आज दिल्ली जोन 4 में आती है. बिल्डिंग में संचार की आधुनिक व्यवस्था का भी अभाव है. एक बड़ा कारण ये है कि 2026 के बाद परिसीमन की हालत में देश में लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ने की संभावना है क्योंकि सीटों की संख्या बढ़ाने पर लगी पाबंदी 2026 में हट जाएगी.
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