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नई संसद में 1280 सांसदों की बैठने की व्यवस्था, क्या 2024 से पहले लोकसभा की सीटें बढ़ेंगी?

नए संसद बनने के बाद कई सवाल सत्ता के गलियारों में पूछा जा रहा है. मसलन, क्या भारत में लोकसभा सीटों की संख्या तय करने के लिए नया परिसमीन होगा?

आजादी के 75 साल बाद भारत के माननीय अब नई संसद भवन में बैठकर कानून बनाएंगे. 862 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाला नया संसद भवन तैयार हो गया है. 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका उद्धघाटन करेंगे. तिकोने आकार में बना नया संसद भवन चार मंजिला है.

राज्यसभा और लोकसभा के साथ-साथ नए संसद भवन में एक संविधान हॉल भी होगा. इसमें देश के संवैधानिक विरासत की प्रदर्शनी लगाई जाएगी. अब तक मिली जानकारी के मुताबिक नए भवन के लोकसभा में 888 सांसदों की बैठने की क्षमता है. 

नए भवन में भी लोकसभा के मुकाबले राज्यसभा का आकार छोटा है. राज्यसभा में 384 सांसद बैठ सकेंगे. दोनों सदनों के संयुक्त मीटिंग में कुल 1280 सांसद एक साथ बैठ सकेंगे. नया संसद भवन भूकंप रोधी बनाया गया है और इसके फर्श का कलर धूसर हरा (ग्रे-ग्रीन) है.

भारत में अभी लोकसभा की 545 सीटें हैं, जिसमें से 543 सीटों पर चुनाव कराया जाता है. पुराने संसद भवन में लोकसभा सांसदों की बैठने की क्षमता 590 थी. ऐसे में नए संसद भवन में जिस तरह बैठने के लिए सीटों की क्षमता बढ़ाई गई है, उससे कई सवाल उठने शुरू हो गए हैं. 

मसलन, क्या भारत में लोकसभा सीटों की संख्या तय करने के लिए नया परिसमीन होगा? क्या आने वाले वक्त में 543 से ज्यादा लोकसभा सीटों के लिए चुनाव होंगे? क्या दोनों सदनों में सीटों की संख्या सरकार बढ़ाएगी? 

संसद की में वर्तमान व्यवस्था क्या है?
भारत में लोकसभा की कुल 545 सीटें हैं, जिसमें से 543 सीटों पर चुनाव कराया जाता है. 545 सीटों की संख्या 1976 परिसीमन में तय हुआ था. राज्यसभा में 250 सीटें हैं, जिसमें से 12 सीट पर राष्ट्रपति मनोनीत करते हैं और बाकी के सीट पर विधायकों के वोट से सांसद चुने जाते हैं. 

भारत में जो अभी संसद भवन है, वो ब्रिटिश राज के दौरान 1927 में बना था. पुराने संसद के लोकसभा में 590 सदस्य बैठ सकते थे, जबकि राज्यसभा में यह आंकड़ा 300 से भी कम है. नई संसद भवन के निर्माण को लेकर कई विपक्षी पार्टियां केंद्र सरकार पर निशाना साध चुकी है. 

भारत में लोकसभा की सीटें कैसे तय होती है?
केंद्र में सरकार बनाने के लिए लोकसभा की सीटें अहम होती है. लोकसभा में बहुमत के आधार पर ही सरकार बनाया जा सकता है. आनुपातिक प्रतिनिधित्व सिद्धांत के अनुसार लोकसभा में सीटों की संख्या संवैधानिक रूप से तय की जाती है. 

भारत में संविधान का अनुच्छेद-81 लोकसभा की संरचना को परिभाषित करता है. इसके मुताबिक जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सीटों की संख्या तय की जा सकती है. इसके लिए चुनाव आयोग को परिसीमन कराना होगा. 

परिसीमन का शाब्दिक अर्थ होता है- किसी देश या प्रांत में विधायी निकाय वाले निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा तय करने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया. 

डिलिमिटेशन एक्ट 2002 के मुताबिक परिसीमन की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान या पूर्व जज कर सकते हैं. मुख्य चुनाव आयुक्त या उनकी तरफ से नामित चुनाव आयुक्त भी इसके सदस्य होते हैं. 

परिसीमन आयोग विस्तृत अध्ययन के बाद 2 पहलुओं पर रिपोर्ट देगा- लोकसभा की सीटें कितनी होंगी? राज्यवार सीटों की संख्या क्या होगी?

अनुच्छेद 82 में कहा गया है कि हर 10 साल पर जब जनसंख्या का डेटा आ जाए, तो सीटों के आवांटन पर विचार किया जा सकता है. भारत में 1976 में जनसंख्या को आधार बनाकर ही लोकसभा में सीटों की संख्या तय की गई थी. 

लोकसभा में सीटें बढ़ाने की क्यों उठ रही मांग?
सबसे बड़ी वजह जनसंख्या वृद्धि है. 1976 में जब लोकसभा का परिसीमन किया गया तो उस वक्त भारत की आबादी 50 करोड़ थी. यानी करीब 10 लाख पर एक सीट का फॉर्मूला उस वक्त सेट किया गया था. 

भारत की वर्तमान आबादी करीब 142 करोड़ है यानी 1976 से लगभग तीन गुना. जनसंख्या मुकाबले सीटों की संख्या में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है. आंकड़ों के नजरिए से देखा जाए तो वर्तमान में 17 लाख लोगों पर एक सांसद हैं.

यानी इसे उलट दिया जाए तो एक सांसद को जीतने के लिए 17 लाख लोगों के बीच जनसंपर्क बनाए रखना होगा. यह एक मुश्किल काम भी है. 2019 में भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने लोकसभा में 1000 सीट करने की मांग की थी. 

मुखर्जी ने इसके पक्ष में दलील देते हुए सवाल उठाया था कि आखिर कोई सासंद कितने लोगों की आबादी का प्रतिनिधित्व कर सकता है? उन्होंने कहा था कि भारत में निर्वाचित प्रतिनिधियों को देखें, तो मतदाताओं की संख्या उसके अनुपात में बहुत अधिक है.

भारत में साल 2002 में लोकसभा में सीटें बढ़ाने के लिए परिसीमन की कवायद की गई थी, लेकिन राजनीतिक विरोध के बाद उस वक्त इसे रोक दिया गया था. इतना ही नहीं, एक प्रस्ताव के जरिए 2026 तक के लिए परिसीमन को होल्ड कर दिया गया था. 

लोकसभा में अभी कितनी सीटें होनी चाहिए?
2019 के बाद यह सवाल सबसे ज्यादा सुर्खियों में है. प्रणब मुखर्जी के बयान के बाद 2021 में कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने एक ट्वीट किया था. तिवारी ने लिखा था कि बीजेपी के नेताओं से उन्हें पता चला है कि सरकार लोकसभा सीटों की संख्या 1000 करने पर विचार कर रही है.

यानी एक बड़े तबके को लग रहा है कि देश में अगर परिसीमन हुआ तो 1976 जैसा (10 लाख पर एक सीट) फॉर्मूला लागू हो सकता है. मिलन वैष्णव और जैमी हिंटसन ने साल 2019 में 'भारत में प्रतिनिधित्व का उभरता संकट' नाम से एक शोध पत्र जारी किया. 

शोध रिपोर्ट में मिलन और हिंटसन ने मैकमिलन थ्योरी का हवाला देते हुए कहा है कि अगर किसी भी राज्य की सीटों की संख्या कम नहीं करनी है तो आनुपात के मुताबिक लोकसभा में कुल सीटें 848 होनी चाहिए. हालांकि, सीटों की संख्या तय करने का अंतिम अधिकार परिसीमन आयोग के पास होता है. 

परिसीमन आयोग की रिपोर्ट को संसद के दोनों सदनों में पास कराना होता है.

2024 से पहले सरकार बढ़ा सकती है सीटों की संख्या?
नई संसद भवन बनने के बाद सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि क्या 2024 के चुनाव से पहले लोकसभा की सीटें बढ़ सकती है? फिलहाल, इसका जवाब अभी केंद्र की ओर से नहीं दिया गया है, लेकिन राजनीतिक जानकार इसे मुश्किल मान रहे हैं. इसकी 3 वजहें भी है...

1. 2026 तक परिसीमन पर लगी है रोक- 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने संविधान के 84वें संशोधन के तहत परिसीमन पर 2026 तक रोक लगा दिया था. यानी रोक हटाने के लिए सरकार को संसद से इसे पास करना होगा. संसद का अगला सत्र मानसून होगा, जिसके हंगामेदार रहने की आशंका है.

सरकार अगर संविधान में संशोधन कर भी देती है, तो पूरी प्रक्रिया होने में कम से कम एक साल का वक्त लग सकता है. ऐसे में 2024 के चुनाव से पहले यह मुश्किल लग रहा है. 

2. 2021 की जनगणना ही नहीं हुई है- अब तक के नियम के मुताबिक हालिया जनगणना के आधार पर ही सरकार लोकसभा में सीटों की संख्या बढ़ा सकती है. सरकार अगर यह अभी करना चाहेगी, तो तकनीक तौर पर एक समस्या आंकड़ों का आएगा. 

केंद्र सरकार की ओर से अब तक 2021 का जनगणना नहीं कराया गया है. हाल ही में ऑफिस ऑफ रजिस्ट्रार एंड सेंसस ने सभी राज्यों को पत्र लिखकर 30 जून 2023 तक प्रशासनिक सीमाएं फ्रीज करने के लिए कहा था. 

एक बार सीमाएं फ्रीज होने के 3 महीने बाद ही जनगणना शुरू हो सकती है. जनगणना न होने की वजह परिसीमन का डेटा तैयार करने का सरकार के पास कोई आधार नहीं होगा. ऐसे में माना जा रहा है कि जनगणना होने के बाद ही सरकार इस पर विचार कर सकती है.

3. संख्या को आधार बनाने के खिलाफ दक्षिण की पार्टियां- लोकसभा में सीटें बढ़ाने का सबसे बड़ा आधार जनसंख्या है, लेकिन दक्षिण की पार्टियां इसका पुरजोर विरोध कर रही है. दक्षिण भारत की क्षेत्रीय पार्टियों का कहना है कि सरकार अगर जनसंख्या को आधार बनाकर परिसीमन करेगी तो उत्तर भारत का दबदबा बढ़ जाएगा.

तमिलनाडु की सत्ताधारी दल डीएमके ने हाल ही में जनसंख्या के आधार पर परिसीमन का विरोध किया था. डीएमके का कहना है कि दक्षिण में परिवार नियोजन कार्यक्रम को सफलकापूर्वक लागू किया गया है, जबकि उत्तर भारत की सरकार इसे लागू करने में विफल रही.

डीएमके का कहना है कि जनसंख्या को आधार बनाया जाता है, तो यह विफलता का सबसे बड़ा प्रमाण होगा. सरकार उन लोगों को तवज्जो देगी, जो अपना काम ठीक ढंग से नहीं कर पाए.

नए संसद में क्या-क्या बदलेगा?
नए संसद के दोनों सदनों के कर्मचारी अब नई वर्दी पहनेंगे जिसे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (निफ्ट) ने डिजाइन किया है. पहले संसद के अंदर काम करने वाले कर्मचारी सफेद बंदगले वाला ड्रेस पहनते थे. हालांकि, बजट सत्र के दौरान मार्शलों का ड्रेस बदल दिया गया था, जिस पर विवाद हुआ था.

नए संसद भवन में तीन द्वार हैं- ज्ञान द्वार, शक्ति द्वार और कर्म द्वार. सांसदों, वीआईपी और मेहमानों के लिए अलग-अलग प्रवेश द्वार बनाए गए हैं. इसके अलावा लोकसभा स्पीकर, प्रधानमंत्री और नेता प्रतिपक्ष का भव्य चैंबर भी बनाया गया है. 

संसद भवन में एक संविधान हॉल भी बनाया गया है. इस हॉल में संविधान की कॉपी रखने की बात कही जा रही है. इसके अलावा हॉल में देश के पूर्व प्रधानमंत्रियों समेत महान सेनानियों की तस्वीरें लगाई जाएगी. 

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