मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर दावे के लिए लगाई गई नई याचिका, कहा 'असली जन्मस्थान पर मस्जिद का अवैध कब्जा'
अयोध्या में राम जन्मभूमि पर फैसला आने के बाद से ही मथुरा में भगवान श्री कृष्ण जन्मभूमि के दावे तेज हो गए हैं. अब श्री कृष्ण जन्मभूमि पर दावे के लिए नई याचिका दाखिल हुई है. इसमें कहा गया है कि मथुरा के कटरा केशव देव की 13.37 एकड़ जमीन में से भगवान कृष्ण की असली जन्म स्थान पर शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट गैरकानूनी तरीके से काबिज़ है.
नई दिल्लीः मथुरा में भगवान श्री कृष्ण जन्मभूमि पर दावे के लिए नई याचिका दाखिल हुई है. मथुरा के सिविल कोर्ट में दाखिल इस याचिका में 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और मुस्लिम पक्ष के बीच हुए समझौते को खारिज कर जन्म भूमि पर बनी शाही मस्जिद को हटाने की मांग की गई है.
यह याचिका ‘भगवान श्रीकृष्ण विराजमान’ और ‘स्थान श्रीकृष्ण जन्मभूमि’ के नाम से दाखिल की गई है. बताया गया है कि मथुरा के कटरा केशव देव की 13.37 एकड़ जमीन में से 2 बीघा जगह पर शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट गैरकानूनी तरीके से काबिज़ है. उसने वहां मस्जिद बना रखी है. यहीं वह जगह है जो भगवान कृष्ण का असल जन्म स्थान है.
औरंगजेब ने मंदिर की जगह बनाई मस्जिद याचिका के मुताबिक हज़ारों सालों से मौजूद श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर समय-समय पर कई राजाओं ने मंदिर बनवाए या पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार किया. 1616 में ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने उस जगह पर 33 लाख रुपए की लागत से भव्य मन्दिर बनवाया. 1658 में औरंगजेब शहंशाह बना, अपनी कट्टर इस्लामी फितरत के चलते उसने हिंदू मंदिरों और धार्मिक स्थानों के विध्वंस का आदेश दिया.
जनवरी 1670 में मुगल फौज ने मथुरा पर हमला कर दिया और मंदिर का काफी हिस्सा गिरा कर वहां एक मस्जिद बना दी. मंदिर की मूर्तियों को आगरा ले जाकर बेगम शाही मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दफन कर दिया. ताकि नमाज के लिए जाते मुसलमान हमेशा उन्हें रौंदते हुए जाएं. यह सब कुछ खुद मुगल रिकॉर्ड में दर्ज है. दरबार में काम कर रहे लोगों के लेख में भी यह बातें उपलब्ध हैं.
मराठा योद्धाओं ने दोबारा किया मंदिर निर्माण 1770 में मराठों ने युद्ध जीतने के बाद आगरा और मथुरा पर कब्जा कर लिया. उन्होंने मस्जिद हटाकर वहां दोबारा मंदिर बनाई. 1803 में अंग्रेजों ने पूरे इलाके पर कब्जा कर लिया. उन्होंने 13.37 एकड़ क्षेत्र वाले पूरे कटरा केशव देव को नजूल जमीन घोषित किया. 1815 में जमीन की नीलामी हुई और बनारस के राजा पटनी मल ने पूरी जमीन खरीद ली. इसके बाद मुसलमानों ने कई बार राजा पटनी मल और उनके वंशजों के खिलाफ मुकदमे किए. हर बार उनका मुकदमा खारिज हुआ. इसके बावजूद जमीन के एक हिस्से पर मुसलमानों का अवैध कब्जा बना रहा.
भगवान कृष्ण के जन्मस्थान पर बनी है मस्जिद और ईदगाह 1944 में जुगल किशोर बिरला ने राजा के वंशजों से जमीन खरीद ली. 1951 में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाकर यह तय किया गया कि वहां दोबारा भव्य मंदिर का निर्माण होगा और ट्रस्ट उसका प्रबंधन करेगा. 1958 में श्रीकृष्ण जन्म स्थान सेवा संघ नाम के की नई संस्था का गठन कर दिया गया. कानूनी तौर पर इस संस्था को जमीन पर मालिकाना हक हासिल नहीं था. लेकिन इसने ट्रस्ट के लिए तय सारी भूमिकाएं निभानी शुरू कर दीं.
इस संस्था ने 1964 में पूरी जमीन पर नियंत्रण के लिए एक सिविल केस दाखिल किया. लेकिन 1968 में खुद ही मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता कर लिया. इसके तहत मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी और उन्हें उसके बदले उसी से सटी जगह दे दी गई.
याचिका में बताया गया है कि जिस जगह पर शाही मस्जिद और ईदगाह खड़ी है, वही जगह असल कारागार है जिसमें भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था. कोर्ट और हिंदू श्रद्धालुओं को धोखा देते हुए श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ने किसी दबाव में आकर मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता कर लिया. इस संस्था को ऐसा समझौता करने का कोई कानूनी अधिकार भी हासिल नहीं था.
जमीन के हकदार हैं भगवान श्रीकृष्ण याचिका में कहा गया है कि जमीन पर असली हक सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण का है. उनके नाम से ही यह याचिका दाखिल की जा रही है. श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट जो कि अब निष्क्रिय हो चुका है और श्रीकृष्ण जन्म स्थान सेवा संस्थान भगवान के हितों को सुरक्षित रखने में असफल रहे हैं. उन्होंने दबाव में आकर भगवान कृष्ण की असली जन्मस्थली को मुस्लिम पक्ष को दे दिया, जिसका कब्जा अवैध है.
पूजी जाने वाली हिंदू देवताओं की मूर्तियों और उनसे जुड़े स्थान को कानूनन न्यायिक व्यक्ति का दर्जा हासिल है. हालांकि, उनका दर्जा हमेशा नाबालिग का होता है. यानी उनकी तरफ से पुजारी या श्रद्धालु याचिका दाखिल कर सकते हैं. इस मामले में भगवान श्रीकृष्ण विराजमान और स्थान श्री कृष्ण जन्मभूमि की तरफ से लखनऊ की रहने वाली वकील और श्रद्धालु रंजना अग्निहोत्री को नेक्स्ट फ्रेंड बनाया गया है. यानी उन्होंने देवता की तरफ से याचिका दाखिल की है. मामले में भगवान श्रीकृष्ण विराजमान और जन्मस्थान के अलावा 6 और लोग भी याचिकाकर्ता हैं. यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड, शाही ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट, श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को प्रतिवादी बनाया गया है.
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को जानकारी दी है कि 1993 में इसी मामले पर एक याचिका दाखिल हुई थी. लेकिन तब उसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि याचिकाकर्ता ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और उसके ट्रस्टी यों को प्रतिवादी नहीं बनाया है. इस मामले में अपील पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी 1996 में यह कहा था कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की भूमिका निभाने का कोई कानूनी हक हासिल नहीं है. ऐसे में साफ है कि संस्थान की तरफ से मुस्लिम पक्ष से किया गया समझौता अवैध है. कोर्ट उसे निरस्त करे और मुस्लिम पक्ष को वहां से मस्जिद हटाने का आदेश दे.
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