कैलाश मानसरोवर यात्रा अब सिर्फ एक हफ्ते में होगी पूरी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नई सड़क का किया उद्घाटन
बीआरओ के डीजी ने एक वीडियो प्रेजेंटेशन के दौरान बताया कि इस सड़क को बनाना एक बड़ी चुनौती थी. क्योंकि यहां पर चट्टानों को तोड़ना और काटना बेहद मुश्किल काम था.
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नई दिल्ली: कोरोना वायरस और लॉकडाउन के दौरान भी सरहदों की निगहबानी की तैयारियों पर कोई खासा असर नहीं पड़ा है. ताजा उदाहरण है उत्तराखंड में चीन सीमा पर ट्राईजंक्शन पर बनी सामिरक महत्व की एक सड़क का. खास बात ये है कि इस सड़क के बनने से कैलाश मानसरोवर की यात्रा भी अब एक हफ्ते में पूरी हो सकेगी.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को इस सड़क का उदघाटन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए किया. ये सड़क पिथौरागढ़ के धारचूला से चीन सीमा के लिपूलेख तक है. इस सड़क को बॉर्डर रोड ऑर्गेनाईजेशन (बीआरओ) ने करीब 17 हजार फीट की ऊंचाई पर तैयार किया है. ये सड़क भारत-चीन और नेपाल के ट्राईजंक्शन के पास से गुजरती है. इस ट्राईजंक्शन के काला-पानी एरिया को लेकर तीनों देशों में विवाद चल रहा है. यही वजह है कि भारत को इस जगह तक एक पक्की सड़क बनाने की बेहद जरूरत थी, ताकि जरूरत पड़ने पर सैनिकों की मूवमेंट तेजी से की जा सके.
आपको बता दें कि डोकलम विवाद के दौरान जब चीन को पांव पीछे खीचने पड़े थे, तब चीन ने जिन ट्राईजंक्शन को लेकर भारत से विवाद चल रहा है, उनपर आंखे तिरछी करने की कोशिश की थी. यही वजह है कि ये सड़क बेहद महत्वपूर्ण है.
करीब 200 किलोमीटर लंबी इस सड़क के उदघाटन पर बीआरओ को बधाई देते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ ने इसे 'ऐतिहासिक' बताया और कहा कि इससे कैलाश मानसरोवर यात्रा को एक हफ्ते में पूरा किया जा सकता है. क्योंकि अभी सिक्किम के नाथूला और नेपाल से कैलाश मानसरोवर की यात्रा में 2-3 हफ्ते लग जाते हैं. यात्रा के दौरान 80 प्रतिशत सफर चीन (तिब्बत) में करना पड़ता है और बाकी 20 प्रतिशत भारत में था. लेकिन पिथौरागढ़ की सड़क बनने से अब ये सफर उल्टा हो जाएगा. यानी अब 84 प्रतिशत भारत में होगा और मात्र 16 प्रतिशत तिब्बत में होगा.
रक्षा मंत्री ने इस सड़क के बनने के दौरान मारे गए मजदूरों के प्रति संवदेनाएं प्रकट करते हुए कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान भी बीआरओ के जवान और मजदूर काम में जुटे हैं, जो बेहद प्रशंसनीय है. इस वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान सीडीएस जनरल बिपिन रावत और थलसेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे सहित बीआरओ के डीजी लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल सिंह भी मौजूद थे.
बीआरओ के डीजी ने एक वीडियो प्रेजेंटेशन के दौरान बताया कि इस सड़क को बनाना एक बड़ी चुनौती थी. क्योंकि यहां पर चट्टानों को तोड़ना और काटना बेहद मुश्किल काम था. साथ ही भारी बर्फबारी और बादलों के फटने के कारण मजदूर और मशीनरी कई बार करीब में बहती काली नदी में बह गई. इसके बावजूद सड़क को बनाकर तैयार किया गया. मशीनरी को इतनी उंचाई पर पहुंचाने के लिए हाल ही में अमेरिका से लिए गए चिनूक हेलीकॉप्टर की मदद भी ली गई.
सड़क बनने के पहले दिन धारचूला से गाड़ियों के एक काफिले को भी सीमा पर स्थित गांवों के लिए रवाना किया गया. इस सड़क के बनने से पहले पिथौरागढ़ से लिपूलेख तक पहुंचने में कई दिन का समय लगता था. लेकिन अब यहां कुछ घंटों में ही पहुंचा जा सकता है. रक्षा मंत्री ने कहा कि ये सड़क प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस विजन के अनुरूप है, जिसमें सीमावर्ती इलाकों के विकास पर खासा जोर दिया गया है.
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