नई दिल्लीः भारत की सरहदी सीमाएं करीब 15 हज़ार किमी से भी लंबी हैं जिसमें नदियां, नाले और पहाड़ों समेत कई दुर्गम रास्ते हैं. सरहदों की हिफाज़त और युद्ध की तैयारियों में दुश्मन के इरादे ही नहीं, धरती की बाधाएं भी सेना के लिए चुनौती बनती हैं. ऐसे में ज़रूरत होती है तुरत-फुरत समाधान की, जो खासतौर पर बख्तरबंद दस्तों का रास्ता आसान बना सके. इस मौके पर काम आते हैं ऐसे पुल जो मिनटों में गहरी खाइयों, नालों और गड्ढों को पार करने का रास्ता बना दें।.


सेना के बख्तरबंद दस्तों को शुक्रवार सहूलियत का ऐसा ही एक साथी हासिल हुआ जो उनका रास्ता मिनटों में आसान बना सकता है. फौजी वाहन पर रखा यह शार्ट स्पान ब्रिजिंग सिस्टम महज़ 10 मिनट में 10 मीटर चौड़ी खाई को पाट ऐसा मजबूत पुल बना देता है जिस पर से सेना के भीमकाय अर्जुन टैंक और 70 टन तक वज़नी वाहन आसानी से गुज़र सकते हैं. वहीं मिनटों में इस पुल को हटाया जा सकता है ताकि उसका इस्तेमाल दुश्मन न कर सके.


इस तरह के सिस्टम की कमी काफी समय से हो रही थी महसूस
देश में ही डीआरडीओ वैज्ञानिकों के शोध और एलएंडटी जैसी कम्पनी की इंजीनियरिंग से तैयार यह ब्रिजिंग सिस्टम आत्मनिर्भर भारत की कोशिशों का भी उदाहरण है. सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने कहा कि इस तरह के सिस्टम की कमी काफी समय से महसूस की जा रही थी. इनके आने से खासतौर पर पश्चिमी मोर्चे पर के उन इलाकों में सेना के तैनाती की रफ्तार बढ़ पाएगी ज़हां नदियां, नाले काफी संख्या में हैं. 


12 वाहनों की पहली खेप सेना की इंजीनियर कोर को सौंपी 
दिल्ली के परेड ग्राउंड पर इन शॉर्ट स्पान ब्रिजिंग सिस्टम से लैस 12 वाहनों की पहली खेप सेना की इंजीनियर कोर को सौंपी गई. इस मौके पर सेना इंजीनियर कोर के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल सिंह ने कहा कि अगस्त तक 30 वाहनों से हासिल हो जाएंगे. वहीं अगले कुछ महीनों में इस आर्डर के सभी 100 वाहन सेना के पास होंगे. उन्होंने बताया कि अब तक सेना के पास जो पुल थे वो 50 टन तक का ही भार उठा सकते थे. जबकि उन्नत धातु शोध से तैयार यह ब्रिज सिस्टम न केवल अधिक भार उठा सकते हैं बल्कि अधिक सुविधा के साथ ऑपरेट किए जा सकते हैं.


पुराने सिस्टम में ज्यादा लोगों की होती थी जरूरत
ध्यान रहे क़ई इससे पहले सेना वर्षों तक चेकोस्लोवाकिया से लिए गए AM50 ब्रिज सिस्टम इस्तेमाल कर रही थी. इनको इस्तेमाल करते समय में केवल अधिक वक्त लगता था बल्कि करीब 10-12 लोगों की ज़रूरत होती थी. वहीं देसी का दम दिखाते इन ब्रिजिंग सिस्टम को महज़ 4 फौजियों के साथ संचालित करने मुमकिन है. सेना की इस क्षमता का मुआयना खुद सेना प्रमुख ने भी किया. 


ब्रिज सिस्टम के साथ साथ एयर डिफेंस सिस्टम भी  
नए शॉर्ट स्पान ब्रिजिंग सिस्टम में इस बात की भी सुविधा है कि इसे स्वदेशी सर्वत्र जैसे बड़े ब्रिज सिस्टम के साथ भी जोड़ा जा सकता है. इतना ही नहीं भौगोलिक चुनौतियों से मुकाबले के देसी समाधान तैयार करने की कवायद में टैंक पर आधारित सिस्टम, ब्रिज लेयर टैंक भी तैयार किया गया है. इसमें सेतु समाधान के साथ साथ एयर डिफेंस सिस्टम भी मौजूद है.


ड्रोन किल सिस्टम को अधिक उन्नत बनाने पर काम हो रहा काम
इस मौके पर डीआरडीओ प्रमुख डॉ. सतीश रेड्डी ने कहा कि देश के रक्षा वैज्ञानिक सशस्त्र सेनाओं की सहूलियत बढ़ाने और उनकी ज़रूरत पूरा करने के आत्मनिर्भर समाधान तलाशने में जुटे हैं. वहीं कार्यक्रम के बाद मीडिया से बातचीत में एक सवाल का जवाब देते हुए   डॉ. रेड्डी ने कहा कि रक्षा वैज्ञानिकों द्वारा विकसित ड्रोन किल सिस्टम को सशस्त्र सेनाओं और खुफिया एजेंसियों के इनपुट के साथ अधिक उन्नत बनाने पर काम कर रहे हैं. इसके लिए कर्नाटक के कोलार में परीक्षण जारी हैं. साथ ही क़ई कम्पनियों को तकनीकी हस्तांतरण की कवायद भी चल रही है ताकि इसका उत्पादन किया जा सके. स्वदेशी ड्रोन किल सिस्टम पहले से मौजूद है और उसे 15 अगस्त और 26 जनवरी जैसे आयोजनों में इस्तेमाल किया जाता है.
 


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