अयोध्या विवाद में एक नया मोड़ आया है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर यह कहा है कि वो अयोध्या में विवादित जमीन के आसपास की ज़मीन उसके मूल मालिकों को लौटाना चाहती है. इसलिए कोर्ट पूरी जमीन पर यथास्थिति बरकरार रखने का अपना आदेश वापस ले ले.


सरकार ने अपनी अर्जी में कहा है कि जिस जमीन का मुकदमा इलाहाबाद हाई कोर्ट में चला और अब सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, वो सिर्फ 0.3 एकड़ है. लेकिन कोर्ट ने कुल 67.7 एकड़ जमीन पर यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया हुआ है. इस सारी जमीन का अधिग्रहण 1993 में केंद्र सरकार ने किया था. अब सरकार विवादित 0.3 एकड़ जमीन को छोड़ कर बाकी उसके मूल मालिकों को लौटाना चाहती है. कोर्ट इसकी इजाजत दे.


दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में असलम भूरे बनाम भारत सरकार मामले में फैसला देते वक्त माना था कि पूरी जमीन पर यथास्थिति बरकरार रखना ज़रूरी है. ताकि विवादित भूमि का फैसला जिसके भी पक्ष में आए, उसे उस जगह तक पहुंचने में दिक्कत न आए. यानी ऐसा न हो कि जिस पक्ष को आखिरकार ज़मीन मिले, वो इस वजह से ज़मीन तक न पहुंच सके कि उसके चारों तरफ निर्माण हो गया है.


सरकार की दलील है कि सिर्फ इस वजह से पूरी जमीन को रोक कर रखना गलत होगा. सरकार ने कहा है कि विवादित जमीन तक आने जाने का रास्ता देने के लिए जगह छोड़ने को तैयार है. इसके अलावा बाकी जमीन उसके मूल मालिकों को लौटा दी जानी चाहिए.


अगर सुप्रीम कोर्ट सरकार की अर्ज़ी को मान लेता है तो गैर विवादित जमीन उसके मूल मालिकों को लौटाना संभव हो सकेगा. ऐसे में जो 67.4 एकड़ जमीन उसके मूल मालिकों को लौटाई जाएगी, उसमें से 42 एकड़ राम जन्मभूमि न्यास को मिलेगी. इसके अलावा जो बाकी जमीन है, वो भी ज्यादातर हिंदू पक्षकारों की है. जमीन वापस लौटने का सीधा असर ये होगा कि विवादित स्थान से जुड़े इलाकों में मंदिर का निर्माण शुरू हो सकेगा. इसको सीधे अर्थों में समझे तो प्रस्तावित मंदिर के गर्भ गृह की जगह पर यानी जिस जगह पर भगवान राम के पैदा होने का दावा किया जाता है या जहां 6 दिसंबर 1992 से पहले बाबरी मस्जिद नाम का विवादित ढांचा मौजूद था, उसे छोड़कर हर तरफ मंदिर का निर्माण हो सकेगा.


सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद में हिंदू महासभा का पक्ष रख रहे वकील विष्णु शंकर जैन ने सरकार की अर्ज़ी का स्वागत किया है. उन्होंने एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत में कहा, "सरकार ने जमीन का अधिग्रहण किया था. अब वो उसे वापस लौटाना चाहती है. इस पर कोर्ट रोक नहीं लगा सकता. उसे अर्ज़ी पर विचार करना होगा. जबकि सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील अनूप जॉर्ज चौधरी ने एबीपी न्यूज़ से कहा, "यह अर्जी कानूनी रूप से मान्य नहीं है. असलम भूरे मामले में कोर्ट का फैसला आए 16 साल हो चुके हैं. अब सरकार एक तरह से उस फैसले पर पुनर्विचार की मांग कर रही है. असलम भूरे अब इस दुनिया में नहीं है. ऐसे में सबसे पहले सवाल उठता है कि क्या 16 साल के बाद पुनर्विचार की मांग पर सुनवाई हो सकती है. दूसरा सवाल ये कि जब मामले की याचिकाकर्ता असलम इस दुनिया में नहीं है, तब कोर्ट नोटिस जारी कर किससे जवाब मांगेगा."


बहरहाल, ये देखना होगा कि कोर्ट अर्ज़ी पर विचार करता है या नहीं. ये संभव है कि कोर्ट ये कहे कि वो मुख्य विवाद पर सुनवाई कर रहा है. उसे तय समय सीमा में निपटा दिया जाएगा. इसलिए इस अर्जी की अभी जरूरत नहीं है. ये भी हो सकता है कि कोर्ट इस अर्जी पर विचार ही न करे. लेकिन अगर कोर्ट इस अर्जी पर सुनवाई करता है, तो वो मामले से जुड़े दूसरे पक्षों को नोटिस जारी करेगा. उनसे उनकी राय सुनेगा. मतलब सरकार की अर्जी का ये कतई मतलब नहीं है कि कोर्ट इसे देखते ही जमीन मूल मालिकों को लौटाने का आदेश दे देगा और मंदिर का निर्माण शुरू हो जाएगा. अगर कोर्ट इसे सुनता भी है, तब भी इसका निपटारा होने में कुछ महीनों का वक्त लग सकता है.


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