PM Modi's challenge In 2022: 2022 में उत्तर प्रदेश का रण जीतना मोदी की सबसे बड़ी चुनौती है. यूपी यानी वो दरवाजा तो दिल्ली में सत्ता के सिंहासन तक ले जाता है और मोदी को हर हाल में यूपी के चुनाव में बीजेपी का झंडा फहराना है. यूपी के चुनावी युद्ध में मोदी को विजयी होना है क्योंकि उनकी साख का सवाल है. साख का सवाल इसलिए क्योंकि मोदी उत्तर प्रदेश के वाराणसी से सांसद हैं. पांच साल यहां बीजेपी सत्ता में रह चुकी है. मोदी ने वादा किया था कि वो यूपी की तस्वीर बदल देंगे लेकिन अगर बीजेपी को यूपी में हार मिली तो ज्यादा बड़ी चोट होगी.


कोविड महामारी के बाद यूपी का चुनाव बेहद मुश्किल हो चुका है. ऑक्सीजन के लिए तरसते लोग और गंगा नदी में तैरते शवों ने सबूत दिया कि यूपी सरकार स्वास्थ्य के मोर्चे पर नाकाम रही है और यही वजह है कि बीजेपी ब्रैंड मोदी पर चुनाव लड़ रही है.


पीएम मोदी की दूसरी चुनौती


प्रधानमंत्री मोदी के लिए अगली चुनौती राज्यों में बीजेपी की सत्ता को बचाए रखने की है. दरअसल 2022 के शुरुआत से लेकर आखिर तक कुल 7 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. पहले चरण में यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर जबकि दूसरे चरण में यानि साल के आखिर में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में चुनाव है. 


इन सात राज्यों में पंजाब को छोड़कर बाकी 6 राज्यों में बीजेपी की सरकार है. 6 राज्यों में बीजेपी की सरकार को दोबारा लाना मोदी के लिए बड़ी चुनौती होगी. और इसके साथ पंजाब में कमल खिलाना. इन सात राज्यों में से दो राज्यों से मोदी का सीधा रिश्ता है. यूपी के वाराणसी से वो सांसद हैं और गुजरात से मोदी खुद आते हैं. इसलिए दोनों राज्यों में अच्छा प्रदर्शन करने का मोदी पर अतिरिक्त भार है.


पीएम मोदी की तीसरी चुनौती 


प्रधानमंत्री मोदी की अगली चुनौती है राष्ट्रपति चुनाव. राष्ट्रपति चुनाव की चुनौती का गणित 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मिली जीत से तय होगा. क्योंकि, जीती हुई सीटें बीजेपी की राष्ट्रपति चुनाव में मदद करेंगी. चुनावी 5 राज्यों में राष्ट्रपति चुनाव के 1 लाख 3 हजार 756 वोट हैं. इसमें से करीब 80 फीसदी यानी 83 हजार 824 मत उत्तर प्रदेश से है. यूपी में एक विधायक के वोट की कीमत 208 है जो देश में सबसे ज्यादा है. एनडीए के पास यूपी में 325 विधायक हैं और 67 हजार 600 वोट.


अगर बीजेपी यूपी में चुनाव हारती है तो फिर राष्ट्रपति चुनाव में अपना उम्मीदवार जिताना पार्टी के लिए मुश्किल हो जाएगा. क्योंकि, 2017 के राष्ट्रपति चुनाव के मुकाबले पार्टी इस बार राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड जैसे राज्यों में सत्ता गंवा चुकी है. बतौर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का पांच साल का कार्यकाल जुलाई 2022 में खत्म हो रहा है.


पीएम मोदी की चौथी चुनौती


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए 2022 की अगली चुनौती ओमिक्रोन को हराना है. वो वायरस जो तीसरी लहर के तौर पर दस्तक देने लगा है. कोरोना वायरस की वो दहशत जो ब्रिटेन से लेकर अमेरिका तक पसरी हुई है. तीसरी लहर की आहट के बाद कार्यक्रमों पर रोक लगनी शुरू हो गई है.


देश के लिए चिंता बड़ी है क्योंकि अभी बड़ी आबादी को कोरोना वैक्सीन का पहला डोज भी नहीं लगा है. कोरोना वायरस का नया वैरिएंट ओमिक्रोन ना सिर्फ डेल्टा से कई गुना ज्यादा तेजी से फैल रहा है बल्कि वैक्सीन को भी चकमा दे रहा है.


कोरोना को रोकना मुश्किल चुनौती है क्योंकि चुनावों का मौसम है. यूपी से लेकर उत्तराखंड तक चुनावी रैलियां हो रही हैं जिसमें लाखों लोग जुट रहे हैं. यूरोपियन यूनियन की 27 सदस्यीय कमेटी ने कहा है कि जनवरी के मध्य तक ये वायरस भयानक हो सकता है. IIT हैदराबाद ने 27 जनवरी तक तीसरी लहर की चेतावनी दी है. जब हर रोज डेढ़ लाख कोरोना के मामले आ सकते हैं. उस भर भी आफत ये कि हिंदुस्तान में पिछले साल की तुलना में  60 फीसदी लोग मास्क नहीं लगा रहे हैं.


पीएम मोदी की पांचवीं चुनौती


दूसरी लहर में देश को स्वास्थ्य व्यवस्था की अहमियत पता चली. देश को पता चला कि हमारा हेल्थ सिस्टम कितना बीमार है. लक्ष्य तय किए गए कि हिंदुस्तान की स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत बनाना है. प्रधानमंत्री मोदी के सामने 2022 में अस्पताल से लेकर डॉक्टरों के खाली पदों को भी भरना है.


स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करने के लिए देश को अतिरिक्त 3.5 लाख डॉक्टरों की जरूरत है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 1000 मरीजों पर एक डॉक्टर होना चाहिए जबकि देश में 1335 मरीजों पर एक डॉक्टर मौजूद है. 


भारत में एक तिहाई से ज्यादा बच्चे कुपोषण का शिकार है और तीसरी लहर में उन पर सबसे ज्यादा खतरा होगा. तीसरी लहर से बच्चों को बचाने के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत करना होगा. इसके लिए भारत को अपनी जीडीपी का 2.50 फीसदी हेल्थ पर खर्च करना होगा. यही प्रधानमंत्री मोदी की सबसे बड़ी चुनौती है. 


पीएम मोदी की छठी चुनौती 


2022 में मोदी की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है अर्थव्यवस्था की गाड़ी को चलाए रखना. 2021 की उपलब्धि ये थी कि कोरोना महामारी के बावजूद कई सेक्टर में विकास दर शानदार रही लेकिन ओमिक्रोन खतरे की घंटी बनकर आया है.


अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच ने मौजूदा वित्तीय वर्ष में भारत की जीडीपी 8.4 फीसदी रहने का अनुमान जताया है लेकिन आर्थिक जानकारों के मुताबिक ओमिक्रोन इसमें रोड़ा साबित हो सकता है. अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए मोदी को कई मोर्चों पर लड़ाई लड़नी है. जिसमें सबसे पहले है महंगाई.


दिसंबर में खुदरा महंगाई दर 4.91 फीसदी पर पहुंच गई जो पिछले तीन महीनों में सबसे ज्यादा है. थोक महंगाई दर भी 14.23 पर जा पहुंची है. जबकि दिसंबर में बेरोजगारी दर 7.4 फीसदी पहुंच गई है. 2022 में आर्थिक मोर्चे पर हिंदुस्तान को आगे रखने के लिए मोदी को महंगाई पर काबू करना होगा. पीएम को रोजगार के नए अवसर पैदा करने होंगे. भारतीय जीडीपी को 10 फीसदी के पार ले जाना होगा. ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना होगा.


पीएम मोदी की सातवीं चुनौती 


साल 2022 में मोदी की तमाम चुनौतियों में कश्मीर का नाम शामिल रहेगा. वो कश्मीर जो सिर्फ अक्टूबर महीने में सबसे ज्यादा आम नागरिकों की मौत से लेकर आतंकी हमलों और एनकाउंटर की आग में सुलगता रहा. आतंकियों ने दहशत फैलाने के लिए कश्मीर के शिक्षकों को निशाना बनाया. आईकार्ड देखकर गोलियां सीने में उतारी गई. एक तरफ सरकार घाटी से आतंक का सफाया कर रही है और दूसरी तरफ नए-नए आतंकी संगठन हत्या की जिम्मेदारी लेने सामने आ रहे हैं.


जम्मू कश्मीर में साल 2020 में 140 हत्या की घटनाएं हुईं. जबकि 2021 में 145. 2020 में 33 आम नागरिक मारे गए जबकि 2021 में 35 आम नागरिकों की मौत हुई. 2020 में 56 जवान शहीद हुए और 2021 में 43 जवानों की शहादत हुई.


कश्मीर में स्थिरता लाने के लिए मोदी के सामने दोहरी चुनौती है. पहली आतंक के मोर्चे पर और दूसरी राजनीतिक मोर्चे पर. मोदी ने जम्मू कश्मीर में चुनाव करवाने का वादा किया था. सवाल है कि क्या 2022 में जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव होंगे? वो भी तब जब जम्मू कश्मीर की पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसी प्रमुख राजनीतिक पार्टियां सरकार के परिसीमन वाले फैसले का विरोध कर रही हैं. 


पीएम मोदी की आठवीं चुनौती 


साल 2020 की ये तस्वीर न हिंदुस्तान कभी भूला है और ना कभी भूलेगा. लद्दाख की गलवान घाटी में चीन ने घुसपैठ कर भारत की जमीन पर कब्जे की कोशिश की थी. जिसका भारतीय जवानों ने मुंहतोड़ जवाब दिया. चीन की 22 हजार किलोमीटर लंबी सीमा 14 देशों के साथ लगती है. इसमें सिर्फ भारत के साथ चीन का सीमा पर तनाव चल रहा है. भारत के साथ चीन की 3 हजार 488 किलोमीटर लंबी भूमि सीमा है.


चीन और भारत की सीमा लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से जुड़ती है. साल 2020 में गलवान घाटी युद्ध से पहले भारतीय सैनिकों से चीनी सैनिकों की कई बार झड़प हो चुकी है. साल 2017 में तो अरुणाचल प्रदेश के डोकलाम में भारत और चीन के सैनिक 73 दिनों तक आमने-सामने रहे थे. चीन भारत की सीमा पर निर्माण की हिमाकत कई बार कर चुका है.


ऐसे तनातनी के माहौल में 23 अक्टूबर 2021 को चीन की सरकार ने सीमा को लेकर एक कानून पास किया जो भारत के लिए चिंताजनक है. चीन का नया कानून 1 जनवरी 2022 से लागू हो रहा है. चीन के कानून के मुताबिक सीमा सुरक्षा को ख़तरा पैदा करने वाले किसी सैन्य टकराव की स्थिति में चीन अपनी सीमाएं बंद कर सकता है. 


रक्षा एक्सपर्ट इसे आसान भाषा में कह रहे हैं कि चीन बॉर्डर के पास नए शहर बसाएगा, उनको रेल, रोड, बिजली जैसी सुविधाओं से जोड़ेगा. ताकि युद्ध की स्थिति में वो अपना बचाव कर सके. भारत चीन के इस कानून का विरोध कर चुका है. भारत कह चुका है कि चीन इस तरह के कानून बनाकर मौजूदा व्यवस्था को बदल नहीं सकता है क्योंकि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद का समाधान होना बाकी है. 


पीएम मोदी की नौवीं चुनौती


करीब साल भर तक दिल्ली के दरवाजे पर बैठे रहने वाले किसान साल के अंत में अपने अपने घर लौट गये. 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों किसान कानून वापस लेने का एलान किया. संसद से कानून रद्द हो गया है लेकिन अभी चुनौती खत्म नहीं हुई है. ऐसा इसलिए क्योंकि किसान आंदोलन के नेता राकेश टिकैत बार बार कह रहे हैं कि आंदोलन सिर्फ स्थगित हुआ है खत्म नहीं.


असल में किसान संगठन एमएसपी के लिए कानून बनाने की मांग पर अड़े हुए हैं. सरकार अनाज, दलहल, तिलहन और बाकी फसलों की MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती हैं. MSP पर फिलहाल कानून नहीं है. एक पॉलिसी के तहत कीमतें तय की जाती हैं. कानून नहीं होने से सरकार बाध्य नहीं है. 


सरकार ने इस मांग पर विचार के लिए कमेटी बना रखी है. माना ये जा रहा है कि अगर बात नहीं बनी तो फिर किसान नए सिरे से मार्च के बाद आंदोलन कर सकते हैं.  किसान चाहते हैं कि MSP से कम कीमत पर फसल की खरीद को सरकार अपराध घोषित करे और MSP पर सरकारी खरीद लागू हो. लेकिन एमएसपी को कानूनी दायरे में लाना आर्थिक रूप से बेहद चुनौतीपूर्ण है.


पीएम मोदी की दसवीं चुनौती


हिंदुस्तान के लिए प्रधानमंत्री मोदी के सबसे बड़े सपनों में से एक है 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाना. उस सपने को पूरा करने में मदद होगी जब देश का निर्यात बढ़ेगाऔर 2022 में भारत का निर्यात बढ़ाना मोदी की अहम चुनौतियों में से एक है. भारत ने इस वित्तीय वर्ष यानि साल 2022 के मार्च महीने तक 30 लाख करोड़ के निर्यात का लक्ष्य रखा है.


प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में नई विदेश व्यापार नीति की शुरुआत हुई है जिसके तहत अगले पांच सालों में यानि 2026 तक भारत का निर्यात दोगुने से ज्यादा यानि 30 लाख करोड़ से 75 लाख करोड़ तक करना है. 75 लाख करोड़ यानि 1 ट्रिलियन. 1 ट्रिलियन के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए भारत को घरेलू अर्थव्यवस्था में 186 लाख करोड़ का निवेश करना होगा. ये तभी हो सकता है जब हर साल 37.51 लाख करोड़ का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हो. देश में निर्यात बढ़ेगा तो रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे जिसकी अभी सबसे ज्यादा जरूरत है.


IT विभाग की छापेमारी पर Nirmala Sitharaman बोलीं- Akhilesh Yadav हिल गए हैं, उन्हें कैसे पता कि BJP का पैसा है?


जेल में ही बीतेगा Kalicharan का नया साल, 13 जनवरी तक न्याययिक हिरासत में भेजे गए