नई दिल्लीः पिछले महीने बिहार के मुजफ़्फ़पुर के बालिका गृह में 34 बच्चियों से रेप की खबर और इसके बाद उत्तर प्रदेश के देवरिया विंध्यवासिनी बालिका गृह में बच्चियों के यौन उत्पीड़न के मामला सामने आने के बाद पूरे देश में हड़कंप मचा हुआ है. देवरिया के बालिका गृह में कुल 42 बच्चियां रह रही थी जिनमें से 24 को निकाला जा चुका है और 18 बच्चियों का कोई पता नहीं है. 5 अगस्त को सामने आए इस दूसरे मामले के बाद ये बहस छिड़ गई कि लड़कियां एनजीओ के संरक्षण में सुरक्षित हैं भी या नहीं.


करोड़ों का फंड लेने के लिए काम करता है नेटवर्क
देश भर में बच्चों के लिए 2 हजार के करीब शेल्टर होम्स हैं जिनकों राज्य और केंद्र दोनों से करोड़ों में फंड मिलता है. इसी फंड पर कब्जे के लिए एक पूरा नेटवर्क काम करता है. इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है. देवरिया शेल्टर होम की अनियमितता के बाद तेज हुई जांच के बाद हरदोई के बेनीगंज निराश्रित महिलाओं के लिए चल रहे शेल्टर होम में जब डीएम साहब निरीक्षण करने पहुंचे तो 19 महिलाएं गायब मिलीं. शेल्टर होम के रजिस्टर में 21 महिलाओं के नाम दर्ज थे, लेकिन वहां केवल 2 महिलाएं ही मौजूद थीं.


जो दो लड़कियां आश्रय गृह में मौजूद थीं वो भी वहां नहीं रहती थीं. आरोप है कि उन्हें भी चंद घंटे पहले शेल्टर होम की सहायिका बहला फुसला कर लाई थी. शेल्टर होम पहुंचते ही वहां का माहौल देखकर लड़कियां घबरा गईं. शेल्टर होम की सहायिका से इस बाबत पूछने पर वो कोई जवाब भी नहीं दे पाई लेकिन जिस महिला पर बहला फुसलाकर लड़कियों को लाने का आरोप है, उसने सीधे पल्ला झाड़ लिया. लिहाजा जांच के बाद डीएम ने शेल्टर होम को मिल रही अनुदान राशि पर रोक लगाने की सिफारिश की है.


शेल्टरहोम्स पर उठ रहे हैं बड़े सवाल
इन कांड के सामने आने के बाद देश में चल रहे शेल्टरहोम्स पर बड़े सवाल उठ रहे हैं जिनके जरिए एनजीओ करोड़ों के वारे न्यारे कर रहे हैं. इसके बावजूद लड़कियों की अस्मत से खिलवाड़ किया जा रहा है. सरकारी मुलाजिम जिन्होंने रिश्वतखोरी करते हुए नियम कायदे के बिना ऐसे शेल्टरहोम्स को संचालित करने की इजाजत दी उनकी जिम्मेदारी लेने को सरकार तैयार नहीं है. इसका उदाहरण देवरिया का आश्रय गृह है जिसे अब बंद कर दिया गया है. सरकार का दावा है कि इस शेल्टर होम को जून 2017 में ही बंद कर दिया गया था लेकिन एक दबंग परिवार नियम कायदे की धज्जियां उड़ाते हुए इसे चलाता रहा. लेकिन जब मंत्री से पूछा गया कि ऐसे कैसे चलता रहा तो उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि मामले की जांच होगी.


महिला-बाल विकास मंत्रालय के सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्सेज अथॉरिटी की वेबसाइट पर अभी भी दिख रहा है देवरिया का शेल्टर होम
महिला-बाल विकास मंत्रालय के सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्सेज अथॉरिटी की वेबसाइट पर मां विंध्यवाशिनी महिला प्रक्षिक्षण और समाज सेवा संस्था का नाम एजेंसी कोड UP201661 के साथ अभी भी मौजूद है. इसका पता स्टेशन रोड देवरिया और सम्पर्क व्यक्ति संजीव त्रिपाठी लिखा हुआ है. इस शेल्टर होम में बच्चों की संख्या 7 बताई गई है, जिनमे चार गोद लेने के योग्य बताए गए हैं. यानी कि देवरिया का आश्रय गृह बंद होने के बाद भी महिला और बाल विकास की वेबसाईट पर इसकी सम्बद्धता आज भी कैसे है इसका मंत्रियों के पास कोई जवाब नहीं है.


दरअसल सच यह है कि बच्चों के सुधार गृह के नाम पर करोड़ों का माल डकारने का एक खेल चल रहा है जिसमें जिम्मेदारी कोई नहीं लेता. आंकड़ों के आधार पर देश में बच्चों के लिए कुल शेल्टर होम्स करीब 1921 हैं. इन शेल्टर होम्स में करीब 44 हजार बच्चे रहते हैं. सरकार आश्रय गृह में रहने वाले हर बच्चे पर दो हजार रुपए प्रति माह मदद देती है लेकिन असल कमाई एनजीओ को मिलने वाले फंड से होती है. आश्रय गृह चलाने वाले एनजीओ को साल दर साल कितनी मदद सरकार से मिल रही है ये डेटा काफी चौंकाने वाला है.


केंद्र से एनजीओ को फंड
साल 2009-10 में 42.63 करोड़ रुपये सरकार ने आश्रय गृह चलाने वाले एनजीओ को दिए और साल 2010-11 में 115.14 करोड़ रुपये दिए गए. 2011-12 में ये रकम बढ़कर 177.54 करोड़ रुपये हो गई और 2012-13 में इस मद में सरकार ने 259.09 करोड़ रुपये की अनुदान राशि दी थी. साल 2013-14 में एनजीओ को आश्रय गृह चलाने के लिए 265.78 करोड़ रुपये दिए गए और साल 2014-15 में 449.73 करोड़ रुपये सरकार ने जारी किए. 2015-16 में ये राशि 497.30 करोड़ रुपये थी जो 2016-17 में 575.96 करोड़ रुपये और 2017-18 में 636.90 करोड़ रुपये पर पहुंच गई.


साफ दिखता है कि 2010-11 में जहां यह रकम 115 करोड़ 14 लाख रुपए थी वो सिर्फ 8 सालों में 2018 तक बढ़कर 639 करोड़ 90 लाख रुपए हो गई. इसके बावजूद एनजीओ कीकोई जिम्मेदारी नहीं होती है और सरकार की उदासीनता तथा लापरवाही ने हालात और बिगाड़ दिए हैं.


अब शेल्टर होम के नाम पर एनजीओ का करोड़ों रुपये सरकार से हासिल करने का कच्चा चिट्ठा खुलना शुरु हो चुका है तो सरकार को तुरंत देश के सभी शेल्टर होम्स की गड़बड़ियों को दुरुस्त करने और ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत है जिसमें बेघर हुए बच्चों को छांव मिले न कि उनका शोषण हो.