इंडस्ट्री से पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव पर एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) खासा नाराज होने के साथ सख्त भी हुआ है. एनजीटी बेंच ने साफ किया कि बिना पर्यावरण क्लीयरेंस के इंडस्ट्रियल यूनिट चलाने की अनुमति नहीं दी जाएगी. एनजीटी ने ये भी साफ किया है कि राज्य सरकारें पर्यावरण को होने वाले नुकसान की भरपाई का हवाला देकर भी किसी भी यूनिट को बिना ईसी (पर्यावरण क्लीयरेंस) के यूनिट चलाने की अनुमति प्रदान नहीं कर सकती.
एनजीटी चेयरपर्सन की अध्यक्षता में बेंच का फैसला
जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता में गठित एनजीटी बेंच ने साफ कर दिया कि इंडस्ट्रियल यूनिट चलाने के लिए क्लीयरेंस लेना ही होगा. राज्य सरकारें अब ऐसी यूनिट को मुआवज़ा देने की शर्त पर भी चलाने की अनुमित नहीं दे सकती. यूनिट को पर्यारवरण क्लीयरेंस लेना ही होगा. बेंच ये साफ किया कि ईसी लेना जरूरी होगा और इसे युनिट्स को मानना होगा.
एनजीओ की याचिका पर बेंच ने सुनाया फैसला
एनजीटी बेंच ये फैसला स्वंयसेवी संस्था दस्तक की याचिका पर विचार करते हुए दिया. दस्तक हरियाणा सरकार के उस फैसले को समाप्त कराने का अनुरोध कर रही थी जिसमें फॉर्मैल्डीहाईड बनाने वाली यूनिट को बिना ईसी के अगले छह महीने चलाने की अनुमति दी गई थी.
एनजीटी पर्यावरण को लेकर काफी सख्त हुआ है
विगत कई वर्षों में एनजीटी पर्यावरण को लेकर काफी सख्त हुआ है. ऐसे उदाहरण भी हैं जब कई आयोजनों के बाद एनजीटी ने आयोजको पर पर्यावरण को होने वाले नुकसान की भरपाई तक के आदेश दिए. वहीं एनजीटी राज्य सरकारों पर भी अंकुश लगाता दिखाई दिया. कई व्यवसायिक समूहों के विरोध के बाद भी एनजीटी ने अपना रूख नहीं बदला और वो लगातार सख्त फैसले लेता रहा है. जिसकी एक और बानगी अब देखने को मिली जब एनजीटी ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया की बिना पर्यावरण क्लीयरेंस के यूनिट चलाने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
सरकारी अफसरों से भी मांगा गया जवाब
अपने कई फैसलों में एनजीटी ने राज्य सरकारों के अफसरों तक को पेशी पर बुलाकर जवाब तलब किया था. एनजीटी ने इन सभी से पर्यावरण पर रिपोर्ट बना कर जमा करने का निर्णय सुनाया था. अपने सख्त फैसलों पर अमल करते हुए एनजीटी दिल्ली सरकार भी साल 2018 में 25 करोड़ रुपये का जुर्माना लगा चुकी है. इसके अलावा कई और राज्यों पर भी एनजीटी ने कड़ी कार्रवाई की है.