NIA ने स्टेन स्वामी की कस्टडी नहीं मांगी, लेकिन उन्हें सलाखों के पीछे रखा और जमानत याचिका का विरोध किया
स्टेन स्वामी को 8 अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया लेकिन एनआईए ने पूछताछ के लिए उनकी हिरासत की मांग नहीं की. 9 अक्टूबर को उन्हें जेल में भेज दिया गया. वे 28 मई को अस्पताल में भर्ती होने तक जेल में रहे.
नई दिल्लीः आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी का कल निधन हो गया. नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) ने जब पिछले साल अक्टूबर में स्टेन स्वामी को अपने मुंबई कार्यालय में बुलाया तो उसके अधिकारियों ने कहा कि 83 साल के स्वामी से एल्गार परिषद मामले के संबंध में और पूछताछ करनी है.
स्वामी को 8 अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया और अगले दिन मुंबई ले जाया गया, लेकिन एजेंसी ने पूछताछ के लिए उनकी हिरासत की मांग नहीं की. अगले दिन 9 अक्टूबर को एनआईए अदालत में स्वामी को पेश किया गया और उन्हें तलोजा सेंट्रल जेल में न्यायिक हिरासत में भेज दिया. वे 28 मई को एक निजी अस्पताल में भर्ती होने तक यहां रहे और सोमवार को अस्पताल में उनका निधन हो गया.
स्वामी के वकील ने कहा, गिरफ्तारी की जरूरत नहीं थी
स्वामी के वकील मिहिर देसाई ने सोमवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष स्वामी की मृत्यु के बारे में पीठ को सूचित किए जाने के कुछ मिनट बाद कहा "उनकी गिरफ्तारी की क्या आवश्यकता थी, क्योंकि एक दिन की हिरासत नहीं मांगी गई थी?". जांच की मांग करते हुए देसाई ने कहा कि उन्हें अदालत या अस्पताल से कोई शिकायत नहीं है, लेकिन वह एनआईए और जेल अधिकारियों के बारे में ऐसा नहीं कह सकते.
2018 में पहली बार उनके घर की तलाशी ली गई
स्वामी की पहली बार एल्गर परिषद मामले के संबंध में तब जांच की गई थी जब पुणे पुलिस ने 2018 और 2019 में रांची में उनके घर की तलाशी ली थी. जनवरी 2020 में केस एनआईए के पास आने के बाद जुलाई-अगस्त में पांच दिनों में उनसे लगभग 15 घंटे तक पूछताछ की गई थी. एनआईए ने उन्हें पिछले साल अक्टूबर में फिर से मुंबई कार्यालय में तलब किया.
9 अक्टूबर को जिस दिन उन्हें अदालत के सामने पेश किया गया, एनआईए ने उनके और सात दूसरे लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया, जिसमें उन पर प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) के सदस्य होने और इसकी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए काम करने का आरोप लगाया गया था.
एनआईए ने पूछताछ के लिए स्वामी की हिरासत की मांग नहीं की
हालांकि, एजेंसी ने आगे की पूछताछ के लिए स्वामी की हिरासत की मांग नहीं की, लेकिन जोर देकर कहा कि उन्हें सलाखों के पीछे रखा जाए. अपनी गिरफ्तारी के एक हफ्ते के भीतर स्वामी ने अपनी उम्र और हार्ड डिजीज और पार्किंसंस डिजीज सहित कॉमरेडिटी को देखते हुए कोविड -19 संक्रमण के लिए अतिसंवेदनशील बताया. स्वामी ने इस आधार पर अंतरिम जमानत मांगी तो एनआईए ने कहा कि 83 वर्षीय स्वामी मांग महामारी का "अनुचित लाभ" लेने और उनकी मेडिकल कंडीशन के बारे में याचना करना अंतरिम राहत प्राप्त करने के लिए "केवल एक चाल" थी. अदालत ने 22 अक्टूबर को उनकी याचिका खारिज कर दी.
इस मार्च में भी खारिज हुई थी जमानत याचिका
स्वामी ने आरोप पर कहा था कि वह कभी भीमा कोरेगांव नहीं गए हैं और उनके लैपटॉप पर पाए गए दस्तावेजों पर दावा किया था कि वे प्लांट किए गए थे. अदालत ने इस साल मार्च में भी स्वामी की जमानत याचिका को खारिज था. जबकि विशेष अदालत के आदेशों के ऑर्डर के खिलाफ स्वामी की ओर से बॉम्बे रहाईकोर्ट के समक्ष दायर अपील सुनवाई के लिए लंबित थी.
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