Nirbhaya Case: भारत के इतिहास में 16 दिसंबर की तारीख एक काला अध्याय है, जिसका जिक्र होते ही मन उदास हो जाता है. ये वो दिन है, जब एक मासूम बेटी के साथ कुछ ऐसा हुआ, जिसने सबको झकझोर कर रख दिया. ये वो दिन है, जब देश की एक बेटी को छह दरिंदों की हैवानियत का शिकार होना पड़ा. दरअसल, हम 'निर्भया कांड' की बात कर रहे हैं, जो आज ही के दिन हुआ था. इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. 


निर्भया दुष्कर्म मामले को लेकर लोगों के बीच इतना ज्यादा गुस्सा था कि राजधानी की सड़कों पर उतरकर लोगों ने प्रदर्शन किया था. लोगों के अंदर इस घटना को लेकर इतना ज्यादा आक्रोश था कि वे प्रदर्शन करते-करते राष्ट्रपति भवन तक पहुंच गए थे. शनिवार (16 दिसंबर) को निर्भया केस को 11 साल पूरे हो गए. ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर इस दिन क्या हुआ था और किस तरह इस घटना की वजह से देश के कानून में बदलाव किया गया. 


16 दिसंबर की रात क्या हुआ? 


16 दिसंबर, 2012 की अंधेरी रात को दक्षिणी दिल्ली में चलती बस में एक 23 वर्षीय महिला के साथ क्रूरतापूर्वक दुष्कर्म किया गया. इस महिला का नाम था ज्योति सिंह, जो बाद में निर्भया कहलाई. निर्भया एक फिजियोथेरेपी इंटर्न थी और वह अपने दोस्त अविंद्र प्रताप पांडे के साथ साकेत से फिल्म देखकर लौट रही थी. दोनों ने दक्षिणी दिल्ली के मुनरिका में एक प्राइवेट बस लिया, क्योंकि उन्हें सरकारी बस नहीं मिली. इस बस में ड्राइवर समेत छह लोग बैठे हुए थे. 


बस स्टार्ट हुई और जल्द ही वह दूसरे रास्ते की ओर बढ़ने लगी. कुछ देर में बस के दरवाजे भी बंद कर दिए गए. जब अविंद्र को गड़बड़ी का एहसास हुआ, तो उसने बस के दरवाजे और रूट को लेकर सवाल किया. इस पर बस के भीतर ही अविंद्र और बाकी के आरोपियों के बीच लड़ाई शुरू हो गई. सभी आरोपी शराब के नशे में धुत थे. उन्होंने निर्भया के साथ बदतमीजी भी शुरू कर दी. जब अविंद्र ने इसका विरोध किया, तो उसके सिर पर रॉड से हमला कर उसे बेहोश कर दिया गया.  


आरोपी निर्भया को खींचते हुए बस के पीछे ले गए और उसके साथ बारी-बारी से रेप किया. जब उसने विरोध किया, तो एक नाबालिग ने उसके प्राइवेट पार्ट में रॉड डाल दिया. इसकी वजह से उसकी आंत खींचकर बाहर आ गई. रेप के बाद निर्भया और उसके दोस्त को महिपालपुर फ्लाइओवर के पास फेंक दिया गया. वहां से गुजर रहे एक राहगीर ने अधमरी हालत में दोनों को पाया और दिल्ली पुलिस को फोन किया. आनन-फानन में पुलिस आई और उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया. 


पीड़ितों को सफदरजंग अस्पताल में ले जाया गया, जहां डॉक्टर ने बताया कि निर्भया की सिर्फ पांच फीसदी आंत ही बची हुई है. इसके बाद इलाज के लिए निर्भया को सिंगापुर भेजा गया, जहां 29 दिसंबर, 2012 को उसकी मौत हो गई. पुलिस को दिए अपने बयान में निर्भया ने कहा था कि वह छह दरिंदों को सजा दिलवाना चाहती है. इस घटना के बाद पूरे देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए. यहां तक की कानून भी बदलना पड़ा.


निर्भया के दोषियों का क्या हुआ? 


दिल्ली पुलिस ने जल्द ही निर्भया के छह दोषियों को गिरफ्तार कर लिया. इसमें एक नाबालिग भी शामिल था. कहा जाता है कि सबसे ज्यादा क्रूरता नाबालिग ने ही की थी. कोर्ट ने इन सभी को दोषी पाया. दोषियों की पहचान राम सिंह, मुकेश सिंह, विनय गुप्ता, पवन गुप्ता, अक्षय ठाकुर और नाबालिग के तौर पर हुई. बस ड्राइवर राम सिंह ने ट्रायल के दौरान ही 11 मार्च, 2013 को तिहाड़ जेल में फांसी लगा ली थी. नाबालिग आरोपी को रिफॉर्म फैसिलिटी में तीन साल की सजा सुनाई गई थी. 


बचे हुए चार आरोपियों मुकेश सिंह, विनय गुप्ता, पवन गुप्ता और अक्षय ठाकुर को सितंबर 2013 में फांसी की सजा सुनाई गई. इन लोगों ने फांसी की सजा से बचने के लिए काफी हथकंडे अपनाए. कभी ये लोग सुप्रीम कोर्ट गए तो कभी इन्होंने राष्ट्रपति से क्षमा याचिका की मांग की. आखिर में 20 मार्च, 2020 को चारों को फांसी दी गई. नाबालिग दोषी अपनी सजा पूरी करके दक्षिण भारत में चला गया, जहां वह आज भी किसी होटल में काम कर रहा है. 


कानून में क्या बदलाव किए गए? 


2013 में, 'आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम' ने दुष्कर्म और यौन अपराध कानूनों और उसकी जांच प्रक्रियाओं में कई बदलाव किए. इसमें सबसे प्रमुख दुष्कर्म की व्यापक परिभाषा और इसके लिए कड़ी सजा का प्रावधान था. भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 में संशोधन किया गया. इसके बताया गया कि प्राइवेट पार्ट में हाथ या किसी अन्य चीज से प्रवेश भी दुष्कर्म माना जाएगा. सहमति की उम्र को भी बढ़ाकर 18 साल कर दिया गया. 


दुष्कर्म की सजा बढ़ाने के लिए धारा 376 में भी संशोधन किया गया. संशोधित धारा के तहत, दुष्कर्म में कम से कम सात साल की कैद की सजा का प्रावधान किया गया, जिसे बाद में 10 साल तक कर दिया गया. दुष्कर्म की वजह से मौत होने पर दोषी को कम से कम 20 साल की सजा देने का भी प्रावधान हुआ. किशोर न्याय अधिनियम में संशोधन किया गया ताकि 16-18 वर्ष की आयु के आरोपियों पर 'जघन्य अपराधों' का आरोप लगने पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जा सके.


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