नई दिल्ली: निर्भया गैंग रेप और हत्याकांड के दोषी मुकेश की दया याचिका के निपटारे में क्या राष्ट्रपति ने जल्दबाजी की? क्या सभी तथ्यों को देखे बिना उसकी दया याचिका ठुकराई गई? और क्या इस आधार पर उसकी याचिका दोबारा देखी जानी चाहिए? इन बातों पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. फैसला कल आएगा.


मुकेश की तरफ से पेश वकील अंजना प्रकाश ने 3 जजों की बेंच के सामने दलील दी, ''मुकेश ने 14 जनवरी को जेल अधिकारियों को दया याचिका सौंपी थी. याचिका राष्ट्रपति को 16 जनवरी को मिली. 17 जनवरी को उन्होंने उसे खारिज भी कर दिया. इससे यही लगता है उन्होंने सभी बातों पर गौर किए बिना जल्दबाजी में फैसला लिया है. हमने याचिका में जो जो बातें कही थीं, उनसे जुड़े दस्तावेज भी सरकार ने राष्ट्रपति के सामने नहीं रखे.''


मुकेश की वकील ने आगे कहा, ''2006 में एपुरु सुधाकर बनाम आंध्र प्रदेश मामले में सुप्रीम कोर्ट फैसला दे चुका है कि अगर दया याचिका के सभी तथ्यों पर विचार किए बिना राष्ट्रपति या राज्यपाल फैसला लें तो कोर्ट उसकी समीक्षा कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट को इस सिद्धांत का पालन इस मामले में करना चाहिए. मामला किसी की जिंदगी से जुड़ा हुआ है. हम अदालत से संवेदनशीलता की उम्मीद करते हैं.''


इसका विरोध करते हुए दिल्ली और केंद्र सरकार के लिए पेश हुए सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ''राष्ट्रपति को सभी जरूरी दस्तावेज दिए गए थे. दया याचिका के निपटारे में अगर देरी हो, तो यह फांसी से माफी का आधार बन सकता है. लेकिन यह कोई दलील नहीं है कि दया याचिका पर तेजी से फैसला लिया गया. सुप्रीम कोर्ट पहले कई बार कह चुका है कि फांसी से जुड़े मामलों पर फैसला लेने में ज्यादा देर करना अमानवीय है.''


जेल में मुकेश का यौन शोषण हुआ था- वकील


इसके बाद मुकेश की वकील ने दलील दी कि जेल में मुकेश का यौन शोषण हुआ था. उन्होंने कहा, ''मुकेश को मामले के दूसरे दोषी अक्षय के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया गया. इतना ही नहीं उसको लंबे समय तक एकांत में बंद किया गया. मुकेश के भाई और सह आरोपी राम सिंह का भी जेल में यौन शोषण हुआ. बाद में उसकी जेल में ही हत्या कर दी गई और इसे आत्महत्या दिखाया गया. यह सभी बातें हमने दया याचिका में लिखी थीं. लेकिन सरकार ने इससे जुड़े दस्तावेज राष्ट्रपति को नहीं भेजे.''


सॉलिसिटर जनरल ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा, ''मैं पहले कह चुका हूं कि राष्ट्रपति को सभी जरूरी दस्तावेज दिए गए. जहां तक सवाल दोषी के जेल में शोषण का है, अगर इसे सच भी मान लिया जाए, तब भी यह फांसी माफ करने का आधार नहीं है. यह ऐसे अपराध का मामला है, जहां एक लड़की के साथ दरिंदगी की हद पार करते हुए उसके शरीर से आंतें बाहर निकाल दी गई और उसे सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिया गया. इस तरह के कांड का दोषी यह कहते हुए रहम की गुहार नहीं कर सकता कि उसका जेल में शोषण हुआ है. उसे इस आधार पर भी कोई माफी नहीं मिल सकती कि जेल में उसके भाई की हत्या कर दी गई.''


मुकेश का मेडिकल रिकॉर्ड के राष्ट्रपति के पास नहीं भेजा गया- वकील


मुकेश की वकील का कहना था कि फैसला लेना राष्ट्रपति के हाथ में था. हम तो यही सवाल उठा रहे हैं कि हमारी याचिका में कही गई बातों से जुड़े कागजात राष्ट्रपति को नहीं दिया गए. बेंच की अध्यक्षता कर रही जस्टिस भानुमति ने कहा, ''आपने जो बातें कही हैं, उन पर निचली अदालत हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई कर फैसला दिया था. तीनों फैसले राष्ट्रपति को सरकार की तरफ से दिए गए थे. इसलिए, यह नहीं कह सकते कि राष्ट्रपति को इन बातों की जानकारी नहीं थी. इस पर वकील की दलील थी, ''जेल अधिकारियों को जेल के रिकॉर्ड भेजने थे. वह नहीं भेजे गए. मुकेश का मेडिकल रिकॉर्ड के राष्ट्रपति के पास नहीं भेजा गया.''


गौरतलब है कि इस मामले में चारों दोषियों- मुकेश, विनय, पवन और अक्षय को 1 फरवरी की सुबह 6 बजे फांसी देने का आदेश निचली अदालत ने जारी किया है. ऐसे में मुकेश की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर चारों दोषियों की फांसी पर पड़ सकता है. अगर कोर्ट यह मानता है कि राष्ट्रपति को मुकेश की याचिका पर दोबारा विचार करना चाहिए तो फिलहाल फांसी टल सकती है.