नई दिल्ली: निर्भया केस के दोषी मुकेश की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट कल सुनवाई करेगा. मुकेश की दया याचिका राष्ट्रपति ठुकरा चुके हैं. अब उसका कहना है कि जिस तेजी से राष्ट्रपति ने उसकी दया याचिका पर फैसला लिया, उससे लगता है की याचिका में लिखी गई बातों पर उन्होंने सही ढंग से विचार नहीं किया है.


निचली अदालत ने 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में निर्भया के साथ गैंगरेप और उसकी हत्या के चारों दोषियों को 1 फरवरी के सुबह 6 बजे फांसी देने का डेथ वारंट जारी किया हुआ है. इनमें से एक मुकेश ने 14 जनवरी को राष्ट्रपति को दया याचिका भेजी थी. जिसे राष्ट्रपति ने 17 जनवरी को खारिज कर दिया.


अब मुकेश ने अपनी वकील वृंदा ग्रोवर के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में नई याचिका दाखिल कर राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती दी है. उसकी इस याचिका का आधार है 11 अक्टूबर 2006 को एपुरु सुधाकर बनाम आंध्र प्रदेश मामले में आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, "अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति और अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल को किसी भी सजायाफ्ता कैदी की सजा पर विचार का अधिकार है, लेकिन अगर अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करते समय वह तय प्रक्रिया का पालन नहीं करते, तो उनके आदेश को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है."


कोर्ट ने जिन पांच आधार पर राष्ट्रपति और राज्यपाल के फैसले को चुनौती दिए जाने की बात कही थी, वह हैं-


* अगर आदेश सही तरह से विचार किए बिना पारित किया गया हो
* अगर आदेश दुर्भावना से दिया गया हो
* अगर आदेश ऐसी बातों के आधार पर दिया गया हो, जिनका मामले से कोई संबंध न हो
* अगर मामले से जुड़े जरूरी तथ्यों पर विचार न किया गया हो
* अगर आदेश मनमाने तरीके से पारित किया गया हो


इससे पहले मुकेश की वकील ने चीफ जस्टिस से मामले पर जल्द सुनवाई की मांग की थी. उनकी इस मांग पर चीफ जस्टिस ने कहा था, "अगर किसी को 1 फरवरी की सुबह फांसी लगने वाली हो, तो उसकी याचिका को जरूर प्राथमिकता के आधार पर सुना जाएगा." इसी के मुताबिक कोर्ट ने कल मामला सुनवाई के लिए लगा भी दिया है.


कल दोपहर 12:30 बजे जस्टिस भानुमति, अशोक भूषण और ए एस बोपन्ना की बेंच इस याचिका पर सुनवाई करेगी. बेंच सरकार से जानना चाहेगी कि मुकेश की दया याचिका पर फैसला लेते समय उचित प्रक्रिया का पालन किया गया या नहीं? क्या उसकी याचिका में लिखी गई बातों पर पूरी तरह से गौर किया गया? अगर कोर्ट इन बातों से संतुष्ट होता है तो मुकेश की याचिका खारिज हो सकती है. अगर कोर्ट को ऐसा लगता है कि इस मामले में सरकार से और ज्यादा स्पष्टीकरण लेने की जरूरत है तो वह औपचारिक नोटिस जारी कर सकता है. ऐसे में हो सकता है मामला कुछ लंबा खिंच जाए.


हालांकि, यहां यह समझना जरूरी है कि अगर कोर्ट यह मानता है कि राष्ट्रपति ने उचित सोच विचार के बिना आदेश पारित कर दिया, तब भी इसका मतलब यह नहीं है कि इसके चलते मुकेश की फांसी माफ हो जाएगी. कोर्ट राष्ट्रपति से दोबारा पूरी प्रक्रिया का पालन करते हुए दया याचिका पर फैसला लेने का अनुरोध कर सकता है.


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