निर्भया कांड: 16 दिसंबर, 2012 की रात को दिल्ली की सड़कों पर जो हुआ उसे 6 साल बाद भी याद कर सिहर जाते हैं लोग
निर्भया कांड (16 दिसंबर, 2012) ने राजधानी समेत पूरे देश को हिला दिया था. इस घटना के बाद देश ने लोगों के गुस्से को देखा और इसी का परिणाम है कि महिला सुरक्षा के लिए कठोर कानून बनाए गए. आज इस घटना को छह साल हो गए हैं.
निर्भया कांड: 16 दिसंबर, 2012 को देश की राजधानी दिल्ली में जो हुआ उसे याद कर आज भी लोगों की रूहें कांप जाती हैं. इसी दिन राजधानी की बीच सड़कों पर चलती बस में दरिंदों ने अपनी हवस का शिकार निर्भया को बनाया था. इस दौरान निर्भया से सामूहिक दुष्कर्म किया गया और उसके शरीर में लोहे का रड डाल दिया गया जिससे उसकी आंत बाहर आ गई. दरिंदे यहीं नहीं रुके थे और उसने इस जघन्य कृत्य के बाद निर्भया को सर्द भरी रातों में नग्न अवस्था में राजधानी की सड़कों पर बस से फेंक दिया था. बाद में पुलिस ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया जहां वह जिंदगी और मौत के बीच जूझती रही. स्वास्थ्य में सुधार नहीं होने के बाद उसे सिंगापुर के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां घटना के 13 दिनों के बाद 29 दिसंबर को निर्भया की मौत हो गई.
इस कांड के बाद पूरे देश में बवाल मच गया. लोग गुस्से से भर गए और हर जगह विरोध प्रदर्शन होने लगा. विश्व में इस अमानवीय कृत्य की निंदा की गई. दिल्ली में प्रदर्शन आयोजित किए गए. प्रदर्शन के उग्र रूप लेने के बाद दिल्ली में मेट्रो सेवा भी कुछ रूटों पर बंद करनी पड़ी थी. कुछ जगहों पर पुलिस ने भीड़ को हटाने के लिए लाठीचार्ज भी किया था. उस दौरान संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था. संसद में इस मामले को जोरदार तरीके से उठाया गया. उस समय देश के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे थे. उन्होंने संसद में आश्वासन दिया कि दोषियों को जल्द सजा दिलाने के लिए सरकार हर कोशिश करेगी और महिला सुरक्षा के लिए कठोर कदम उठाए जाएंगे.
इस घटना के बाद देश में महिला सुरक्षा के लिए कठोर कानून बनाने के लिए जस्टिस जेएस वर्मा कमिटी का गठन किया गया. वर्मा कमिटी को इस मसले पर कानून बनाने के लिेए देश-विदेश से सुझाव मिले और इन सबपर विचार करने के बाद कमिटी ने 29 दिनों के बाद 23 जनवरी, 2013 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी. इस रिपोर्ट में यौन अत्याचार के लिए कठोरतम दंड देने की सिफारिश की गई.
मामले की कोर्ट में सुनवाई के दौरान ही निर्भया कांड के मुख्य आरोपी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली. मामले की जल्द सुनवाई के लिए गठित फास्ट ट्रैक कोर्ट 13 सितंबर, 2013 को बाकी के 4 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई. इस घटना में एक आरोपी नाबालिग था जिसे तीन साल किशोर सुधार गृह में रखने के बाद छोड़ दिया गया. 9 जुलाई, 2018 को दोषियों की ओर से दाखिल की गई पुनर्विचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए मौत की सजा को बरकरार रखा है.
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