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एक्सक्लूसिव: RTI में हुआ खुलासा, महिलाओं के खिलाफ अपराधों की जांच के लिए नहीं बनेगी एजेंसी
निर्भया फंड से प्रस्तावित 324 करोड़ रुपये की योजना को अब गृह मंत्रालय ने नहीं लागू करने का फैसला किया है.
दिल्ली: निर्भया फंड के तहत प्रस्तावित "महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर जांच ईकाइयां" स्थापित करने की योजना को गृह मंत्रालय ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है. एक आरटीआई के जवाब में गृह मंत्रालय ने बताया कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर जांच ईकाइयां स्थापित करने की प्रस्तावित योजना को वापस ले लिया गया है. निर्भया फंड से प्रस्तावित 324 करोड़ रुपये की इस योजना को गृह मंत्रालय ने लागू नहीं करने का फैसला किया है.
इन ईकाइयों का उद्देश्य महिलाओं के विरूद्ध जघन्य अपराधों, विशेषकर बलात्कार, दहेज हत्या, तेजाब हमला और मानव तस्करी जैसे मामले में राज्यों की जांच प्रणाली को बेहतर बनाना और इन मामलों की जांच करना था. महिलाओं में आत्मविश्वास कायम करना, उन्हें अपनी शिकायत दर्ज कराने के उद्देश्य से आगे आने के लिए प्रोत्साहित करना था और राज्य पुलिसबलों में महिलाओं के अनुपात में सुधार लाना जैसे कई इस जांच इकाई के उद्देश्य थे.
16 दिसंबर 2012 को देश की राजधानी दिल्ली में 23 साल की फिजियोथिरैपिस्ट की एक छात्रा का चलती बस में सामूहिक बलात्कार की बर्बरतापू्र्ण और दर्दनाक घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. लोगों ने सरकार की गैरजिम्मेदारी और समाज में महिलाओं के प्रति सुरक्षित माहौल न होने के खिलाफ दिल्ली की सड़कों पर जोरदार विरोध प्रदर्शन किया था. इस व्यापक विरोध प्रदर्शन और महिला सुरक्षा को सुनिश्चित करने के बढ़ते मांगों के चलते 2013 में तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने 1000 करोड़ के निर्भया फंड बनाने की घोषणा की. इस फंड का उद्देश्य महिलाओं का सशक्तिकरण और उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करना था.
इस मामले पर गृह मंत्रालय में सीएस डिवीजन के उप-सचिव एस.के. गुप्ता ने कहा, "यह उपर के स्तर पर सरकार का नीतिगत मामला है. इस पर मैं ज्यादा कुछ नही कह सकता हूं." वहीं गृह सचिव को इमेल के जरिए भेजे गए सवालों का कोई जवाब नहीं मिला. गृह सचिव से पूछा गया था कि ऐसी क्या वजह थी कि सरकार ने "महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर जांच ईकाइयां" नहीं बनाने का फैसला किया.
गृह मंत्रालय की ओर से मिले आरटीआई का जवाब
आपको बता दें कि निर्भया फंड के तहत महिला सुरक्षा के लिए अभी तक कुल 22 प्रस्तावों की सिफारिश की गई है जिसके लिए कुल 2209.19 करोड़ की राशि का आवंटन किया गया है. इन्ही प्रस्तावों में गृह मंत्रालय का "महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर जांच ईकाइयां" स्थापित करने का भी प्रस्ताव था जिसके लिए 324 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. लेकिन अब गृह मंत्रालय ने इसे नहीं लागू करने का फैसला किया है. माना जा रहा था कि इन जांच ईकाइयों की मदद से महिलाओं के प्रति बढ़ रहे अपराधों को कम करने में मदद मिल सकती थी.
सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में पुलिस सुधारों के मामले में अपने एक फैसले में कहा था कि पुलिस की अलग से एक जांच शाखा होनी चाहिए जिसमें जांच करने वालों में प्रशिक्षित पुलिस वालों को अच्छी खासी तादाद में होनी चाहिए.
गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा भी दायर कर इन जांच ईकाईयों को स्थापित करने की बात कही थी. इस योजना का प्रस्ताव पेश करते हुए गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि इससे महिलाओं के खिलाफ अपराधों और मानव तस्करी की रोकथाम के लिए विभिन्न राज्यों में अधिक दोषसिद्धि दर सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी. लेकिन गृह मंत्रालय ने अब खुद ही इसे नहीं लागू करने का फैसला किया है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक साल 2015 में बलात्कार के 34,651 मामले , दहेज हत्या के 7,634 मामले, तेजाब हमला के 222 और मानव तस्करी के 6,877 मामले दर्ज किए गए. 5 जनवरी 2015 को गृह मंत्रालय ने प्रत्येक राज्य के 20 प्रतिशत जिलों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर जांच ईकाइयां (आईयूसीएडब्ल्यू) स्थापित करने का प्रस्ताव किया था. इस योजना के तहत हर एक राज्य के सर्वाधिक अपराध वाले जिले में "महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर जांच ईकाइयां(आईयूसीएडब्ल्यू)" बनाने करने की योजना बनाई गई थी. योजना के तहत देश भर में कुल 150 जांच ईकाइयां बनाने का लक्ष्य रखा गया था. इसके लिए हर साल 84 करोड़ रूपये का खर्च होता जिसमें से केन्द्र द्वारा 42 करोड़ रूपये दिया जाता और बाकी 42 करोड़ रुपये कि राशि राज्य सरकारें वहन करती. खास बात ये है कि इन जांच ईकाइयों में भारी मात्रा में महिला पुलिसकर्मियों की तैनाती की जानी थी. कुल 150 जांच ईकाइयों में 2250 पुलिकर्मियों की जरुरत थी जिसमें से 750 महिला पुलिसकर्मियों को रखा जाना था.
अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संगठन की सचिव कविता कृष्णन कहती हैं कि ये बहुत जरुरी था कि इस प्रकार की जांच ईकाई बने जिसमें महिलाओं से जुड़े मामलों की जांच के लिए प्रशिक्षित और संवेदनशील पुलिस हो. अगर सरकार ने इसे नहीं बनाने का फैसला किया है तो ये उनकी असंवेदनहीनता को दर्शाता है. सिर्फ निर्भया का नाम इस्तेमाल हो रहा है, निर्भया फंड का पैसा खर्च ही नहीं किया जा रहा है.
बता दें की सत्र 2013-14 से ले कर 2017-18 तक में निर्भया फंड के लिए कुल 3100 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है. लेकिन महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के आंकड़ों के हिसाब से कुल फंड का अभी तक सिर्फ 400 करोड़ रुपये ही खर्च किया गया है. वित्त मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को निर्भया फंड के लिए योजनाओं का मूल्यांकन और बजट आवंटन की जिम्मेदारी है.
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राजेश शांडिल्यसंपादक, विश्व संवाद केन्द्र हरियाणा
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