निर्भया केस: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ऐसे बर्बर लोग रहम के लायक नहीं
नई दिल्ली: "ये घटना इस दुनिया की लगती ही नहीं. ये ऐसी दुनिया की घटना लगती है जहां इंसानियत मर चुकी हो." निर्भया के हत्यारों को फांसी की सज़ा देते वक्त सुप्रीम कोर्ट ने उनकी बर्बरता को बताने के लिए इन शब्दों का इस्तेमाल किया.
मामले पर सुनवाई करने वाले तीनों जज इस बात पर सहमत थे कि 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली की सड़कों पर वहशियाना हरकत करने वालों के लिए फांसी से कम कोई सज़ा नहीं हो सकती. आज कोर्ट ने दोषी मुकेश, विनय, पवन और अक्षय को सज़ा ए मौत दी.
बेंच के अध्यक्ष जस्टिस दीपक मिश्रा ने सज़ा का ऐलान करने से पहले 15 मिनट तक फैसले के दूसरे अहम बिंदुओं को पढ़ा. उन्होंने कहा, "पीड़िता साकेत के मॉल में फिल्म देखने गई थी. उसे अंदाज़ा भी नहीं था कि सड़क पर उसका सामना कुछ ऐसे लोगों से होगा जिनके लिए वो इंसान नहीं, सिर्फ एक मज़े का सामान होगी."
कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के साथ जिस तरह की बर्बरता की गई वो कल्पना से भी परे है. उसके साथ बलात्कार के साथ अप्राकृतिक यौनाचार किया गया. उसके शरीर के हर हिस्से पर ज़ख्म के निशान मिले. उसके गुप्तांग में लोहे का सरिया डाला गया. आंत बाहर निकाली गई. मेडिकल रिपोर्ट साबित करती है कि शरीर में लोहे का सरिया डालना, आंत और दूसरे अंदरूनी हिस्सों को पहुंचा नुकसान ही मौत की वजह थी.
कोर्ट ने मामले में पुलिस की तरफ से जुटाए गए सबूतों को काफी माना. कोर्ट ने कहा कि बस पर मिले डीएनए सैंपल, पीड़िता के दोस्त की गवाही और खुद पीड़िता का मौत से पहले दिया बयान वारदात और उसमें दोषियों की भूमिका को साबित करने के लिए पर्याप्त हैं.
कोर्ट ने अपने फैसले में इस कांड के बाद समाज में उभरे गुस्से का भी हवाला दिया है. कोर्ट ने कहा, "ये समाज में सदमे की सुनामी लाने वाला कांड था. दोषियों की तरफ से पारिवारिक जिम्मेदारियों, कम उम्र वगैरह का हवाला देना बेमानी है. उनके साथ रियायत नहीं बरती जा सकती. उनकी सज़ा सिर्फ फांसी है."
फांसी का ऐलान होते ही कोर्ट रूम में कुछ लोगों ने तालियां बजाईं. कोर्ट में मौजूद निर्भया के माता-पिता भी फैसले से संतुष्ट नज़र आए. मुख्य फैसले के बाद जस्टिस भानुमति ने अलग से अपना फैसला दिया. उन्होंने भी फांसी को सही ठहराया. इसके अलावा, उन्होंने समाज में महिलाओं के सम्मान के प्रति जागरूकता फैलाने की ज़रूरत बताई. खास तौर पर बच्चों को इस बारे में सिखाने को ज़रूरी कहा.
गौरतलब है कि वारदात को अंजाम देने वाले 6 लोगों में से राम सिंह की मौत हो चुकी है. एक नाबालिग दोषी बाल सुधार गृह में 3 साल बिता कर रिहा हो चुका है. निचली अदालत और हाई कोर्ट में 4 लोगों पर मुकदमा चला था. दोनों अदालतों ने उन्हें फांसी की सज़ा दी थी. आज सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे सही माना.