NITAG On Vaccine Century: 100 करोड़ वैक्सीन के डोज लगाए जाने के बाद नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्यूनाइजेशन के सदस्य डॉ एन के अरोरा ने कहा कि यह संतुष्ट करने वाला मौका है. उन्होंने कहा कि जिस वक्त वैक्सीनेशन की शुरुआत भारत में हुई थी उसी वक्त सोचा गया था कि जल्द ही हम इस उपलब्धि को हासिल कर लेंगे. 


100 करोड़ वैक्सीन डोज लगना कितनी बड़ी उपलब्धि है भारत के लिए?


एक बहुत संतुष्ट करने वाला मौका है जो भारत में पाया है लेकिन मैं यहां यह भी कहूंगा इसमें संपूर्णता और आत्मविश्वास पाने की अनुभूति होती है जिस तरीके से  हमने पिछले साल इस वैक्सीन की यात्रा शुरू की थी और हमने सोचा था कि हम अपने लोगों को टीका लगाएंगे लोगों को पूरा टीका लगाएंगे और देश के हर कोने में पहुंचेंगे जो वह सोच थी उसकी तरफ एक कदम हमने पूरा किया है. तो संपूर्णता की भावना महसूस होती होती लेकिन इस सब के पीछे जो मूल भावना रही है वह वैक्सीन आत्मनिर्भरता की है पहले दिन से ही यह सोच थी यह साफ हो गया था कि यह एक महामारी है इसमें अगर हम अपनी देखभाल खुद नहीं कर सकते तो कोई हमारी देखभाल नहीं कर पाएगा और हम भी किसी की मदद नहीं कर पाएंगे तो इसी मूल भावना के साथ वैक्सीन आत्मनिर्भरता रहनी चाहिए पूरा का पूरा इकोसिस्टम देश का फिर चाहे वह वैज्ञानिक इकोसिस्टम था कार्यक्रम का सिस्टम था सोशल मोबिलाइजेशन जन सहयोग बनाने का सिस्टम था और साथ ही साथ शीर्ष नेतृत्व का जो एक पीछे से क्लोज मॉनिटरिंग अप्रोच थी उसी का नतीजा है कि जैसे जैसे हमने सोचा था उसी हिसाब से हम कर रहे हैं हमने सोचा था जुलाई के अंत तक हमने 50 करोड़ देने हैं तो हमने 7 अगस्त तक 50 करोड़ डोज दे दिए और हमने सोचा कि अक्टूबर में 100 करोड़ डोज देंगे वह हो रहा है तो जिस तरह से हमने अपने लिए रास्ता बनाया है और चुना है यह संतोष की बात है कि उसी हिसाब से चल रहे हैं.


वैक्सीन के गैप में अगर बदलाव नहीं होता तो क्या हम पहले ही इसको कर लेते?


अगर हमने वैक्सीन की कमी को लेकर अगर यह सोच रखी होती तो क्या बढ़ाने का कारण था वह वैज्ञानिक था क्योंकि जब जो को वीसी जैसी वैक्सीन है अगर उस में अंतर बड़ा है क्या है तो प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है और सबसे ज्यादा वही वैक्सीन दी गई जबकी कोवैक्सीन की मात्रा हमारे पास कम थी तो हमें उल्टा करना चाहिए था यह कार्यक्रम की विशेषता दो रही हैं कि निर्णय वैज्ञानिक आधार पर ले गए हैं और सारा का सारा एक वार्तालाप है किसी भी सेक्टर के साथ या जनता के साथ वह बहुत ही पारदर्शिता के साथ सबको बताया गया है.


बूस्टर डोज की जरूरत होगी क्या?


इजरायल में अमेरिका में जो हुआ है वह हमारे लिए भी लागू हो. उसका हम जायजा वैज्ञानिक तौर पर लेते हैं लेकिन जो हमारे यहां है प्राकृतिक तौर पर संक्रमण में हुआ दूसरे लहर के दौरान. और डब्ल्यूएचओ में भी मीटिंग हुई उसमें गहन विचार हुआ उसमें भी पाया गया कि फ़िलहाल बूस्टर डोज की जरूरत नहीं है. और जिन्होंने शुरू शुरू में वैक्सीन लगवा ली थी और हमारे यहां लोगों को दूसरी लहर का सामना करना पड़ा और दूसरी लहर का मतलब उन्हें बीमारी नहीं हुई लेकिन एक्स्पोज़र हुआ, इस तरह से अभी फिलहाल पहली प्राथमिकता है लोगों को रोटी के लग जाए


व्यस्क आबादी को दी जा रही जल्द पूरी हो जाएगी लेकिन बच्चों को कब दी जाएगी


बच्चे हमारे सबसे महत्वपूर्ण धन है और हमें सबसे प्रिय हैं हमारा भविष्य वही हैं तो उनके लिए भी उसी तरीके का कार्यक्रम बनाया जा रहा है जैसे बड़ों के लिए और और इसी तत्परता से अभियान रूप में स्वस्थ बच्चों को टीका लगाया जाएगा उम्मीद करते हैं अगले साल की तिमाही से इसको शुरू किया जा सकता है फरवरी या मार्च में. जैसे बड़ों को टीका लग जाएगा हां लेकिन जिन बच्चे को कोई बीमारी है खास तरह की कोई बीमारी है उनमें गंभीर बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है उन लोगों को बड़ी जल्दी टीका लगवाने का काम शुरू करेंगे इस समय चारबाग सिंह बच्चों में ट्रायल का काम चल रहा है यह बाकी दुनिया में नहीं है.


18 साल से ज्यादा उम्र के लोगों का 100% टीकाकरण कब तक हो जाएगा?


बहुत सारे प्रदेश है जहां 100% टीकाकरण हुआ है तो हम इसी रफ्तार से चलते रहेंगे इसको मैथमेटिकल फार्मूला या डेट के हिसाब से ना करें और हम पूरी कोशिश करें कि सबको 2 टीके लगे. हमें मालूम है कि किस गांव में कितने लोग हैं और किसको वैक्सीन लगी है किसको नहीं इस तरह की माइक्रो प्लानिंग की गई है. इस तरीके से हम हर व्यक्ति तक पहुंचने की कोशिश करेंगे लक्षण ने 100% रखा है.


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