बिहार में नया राज: छूट गया नीतीश के लक्ष्मण का साथ, जानें सुशील मोदी के वनवास की वजह
पिछले 15 वर्षों के दौरान ऐसे कई मौके आए जब सुशील मोदी ने नीतीश कुमार का पक्ष लेकर और उनका गुणगान कर बीजेपी को मुश्किल में डाला. लेकिन, यह भी सच है कि नीतीश कुमार जब तक ताकतवर रहे सुशील मोदी ही डिप्टी सीएम के तौर पर कैबिनेट में उनकी पसंद थे.
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सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री की कमान संभाल रहे नीतीश कुमार और बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी की जोड़ी देखकर बॉलीवुड फिल्म शोले के किरदार जय-वीरू की याद आती है. अगर 2018 के 8-10 महीने निकाल दें तो बिहार की राजनीति में भी इस जोड़ी का पिछले करीब 15 वर्षों के दौरान कुछ ऐसा ही साथ दिखा. ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर जब एनडीए की तरफ से बिहार में सातवीं बार नीतीश को सीएम बनने का मौका दिया गया तो फिर सुशील मोदी को डिप्टी सीएम क्यों नहीं?
दरअसल, नीतीश और सुशील मोदी की जोड़ी कुछ इस तरह की बन गई थी कि सुशील मोदी ने नीतीश की छत्रछाया से बीजेपी को बिहार में कभी आगे निकलने ही नहीं दिया. कई मौके ऐसे आए जब उन्होंने नीतीश कुमार के पक्ष में बयान देकर और उनका समर्थन कर उल्टा पार्टी को नाराज किया. बात अगर 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले की करें तो उस वक्त जब बीजेपी के अंदर नरेन्द्र मोदी को पीएम उम्मीदवार बनाने की मांग काफी जोर-शोर से उठ रही थी. दूसरी तरफ, जेडीयू ने इधर 2012 से ही नीतीश कुमार को एनडीए के कैंडिडेट के तौर पर प्रोजेक्ट करना शुरू कर दिया था.
उस वक्त सुशील मोदी ने एक इंटव्यू के दौरान नीतीश कुमार को पीएम मैटीरियल बताकर बिहार की राजनीति में नया भूचाल ला दिया था. पार्टी के नेता सुशील मोदी के इस बयान से भौंचक्के रह गए थे. उस वक्त बिहार बीजेपी नेता गिरिराज सिंह और अश्विनी चौबे समेत कई बड़े नेताओं ने सुशील मोदी के इस बयान का कड़ा विरोध किया था.
इतना नहीं नहीं, 2018 के भागलपुर साम्प्रदायिक हिंसा के दौरान भी सुशील मोदी ने अपनी कार्यशैली से बीजेपी को काफी आहत किया था. उस वक्त हिंसा में अश्विनी चौबे के बेटे अर्जित शाश्वत का नाम आया और गिरफ्तार कर 14 दिनों की ज्यूडिशयल कस्टडी में भेज दिया गया.
अर्जित पर इस एक्शन का सीधा आरोप नीतीश की सरकार पर लगा और बीजेपी में भारी नाराजगी थी. उस वक्त बिहार में बीजेपी-जेडीयू की ही सरकार थी. ऐसे में सुशील मोदी नीतीश के इस कदम पर किसी तरह के परेशानी में नहीं दिखे थे.
जाहिर है, पिछले 15 वर्षों के दौरान ऐसे कई मौके पर आए जब सुशील मोदी ने नीतीश कुमार का पक्ष लेकर और उनका गुणगान कर बीजेपी को मुश्किल में डाला. लेकिन, यह भी सच है कि नीतीश कुमार जब तक ताकतवर रहे सुशील मोदी ही डिप्टी के तौर पर कैबिनेट में उनकी पसंद थे. ऐसे में जब 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के मुकाबले जेडीयू की 31 सीटें कम आई है और बीजेपी मजबूत हुई है तो सुशील मोदी की नीतीश की कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है.
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