नई दिल्ली: जब दो नेता मिले, वो भी एक ही पार्टी बीजेपी के. दोनों एक ही राज्य बिहार से आते हैं. दोनों नेता मोदी सरकार में मंत्री हैं लेकिन दोनों की भेंट किसी खबर से कम नहीं है. गिरिराज सिंह की मुलाक़ात नित्यानंद राय से हुई. दिल्ली में ये भेंट कृषि भवन में हुई. केन्द्रीय पशुपालन मंत्री गिरिराज सिंह का यहीं ऑफ़िस है. नित्यानंद राय गृह राज्य मंत्री और बिहार के बीजेपी अध्यक्ष भी है. इस मुलाक़ात का कनेक्शन भी बिहार से ही है. सूबे में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं. बीजेपी और जेडीयू में अभी से ज़ुबानी तनातनी शुरू हो गई है. गठबंधन रहेगा या नहीं, उस पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं.


बीजेपी के नेताओं का एक गुट चाहता है कि पार्टी अपने बूते चुनाव लड़े. रामविलास पासवान और कुछ दूसरे नेताओं की पार्टियों के साथ गठबंधन हो जाए. एक नया सामाजिक समीकरण लेकर बीजेपी बिहार की जनता के बीच उतरे तो बात बन सकती है. पार्टी के एक बड़े नेता का कहना है कि पिछड़ी और दलित जाति के नेताओं को आगे किया जाए. जैसा प्रयोग पार्टी ने पड़ोसी राज्य यूपी में भी किया है.


गिरिराज सिंह की नजर में नित्यानंद राय फिट बैठते हैं. वे यादव जाति के हैं. पार्टी अध्यक्ष अमित शाह उन पर भरोसा करते हैं. इसीलिए तो शाह ने राय को अपने साथ गृह मंत्रालय में रखा है. गिरिराज सिंह को नीतीश कुमार का आलोचक माना जाता है. वे अपनी बात खुल कर रखने से पीछे नहीं हटते. बिहार में बीजेपी का एक खेमा उन्हें सीएम देखना चाहता है. आक्रामक हिंदुत्व नेता की उनकी छवि कुछ को भली लगती है.


डिप्टी सीएम सुशील मोदी को बिहार बीजेपी में नीतीश का समर्थक माना जाता है. इसीलिए तो उन्होंने ट्वीट कर सुशासन बाबू को एनडीए का कैप्टन बता दिया. वो भी ऐसा कैप्टन जो चौके-छक्के लगा रहा है. तो फिर ऐसे कप्तान को बदलने का सवाल ही नहीं उठता.


सुशील मोदी ने ये बात अपनी ही पार्टी के नेता संजय पासवान को जवाब देते हुए कही. इसका भी कनेक्शन गिरिराज सिंह से है. शुक्रवार को नित्यान्द राय उनसे मिले. तो उससे पहले संजय पासवान ने गिरिराज सिंह से मुलाक़ात की. इसके लिए वे खास तौर से पटना से दिल्ली आए. पासवान ने ही नीतीश कुमार को केंद्र की राजनीति करने की सलाह दी थी. उन्होंने कहा था कि नीतीश बाबू तो चौदह साल रह सीएम रह गए. अब बहुत हो गया. किसी और को मौका दें. जो बात पासवान ने कही, वही बात बीजेपी के कई नेताओं के मन में है. बस वे अभी मन की बात करना नहीं चाहते. बस ऊपर से सिगनल का इंतजार है.


अब जरा बात गिरिराज सिंह और नित्यानंद राय की मुलाकात पर. कुछ महीनों पहले तक दोनों में अनबन थी. लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे के दौरान गिरिराज सिंह अपनी ही पार्टी के नेताओं से नाराज हो गए थे. लोगों से मिलना जुलना तक उन्होंने बंद कर दिया था. बात ये थी कि वे नवादा से सांसद थे लेकिन ये सीट गठबंधन में रामविलास पासवान की पार्टी के लिए छोड़ दी गई. उन्हें बेगूसराय से चुनाव लड़ने के लिए कहा जा रहा था.


तब गिरिराज सिंह ने आरोप लगाया था कि ये फ़ैसला लेने से पहले उन्हें किसी ने पूछा तक नहीं. इशारों ही इशारों में नित्यानंद राय और बिहार के प्रभारी भूपेन्द्र यादव को विलेन समझा जा रहा था. खैर आखिर में सब ठीक रहा. कन्हैया कुमार को हरा कर गिरिराज लोकसभा पहुंचे. पीएम नरेन्द्र मोदी ने उन्हें प्रमोशन देकर कैबिनेट मंत्री बना दिया. नित्यानंद राय से उनके सारे गिले शिकवे खत्म हो गए. अब दोनों का रास्ता एक है. यही सियासत है. अलग अलग रास्तों पर चलने वालों की मंजिल कब एक हो जाए, किसी को नहीं पता. मंजिल तो सब जानते हैं.