पटना: केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एनआरसी पर एक आर्टिकल लिखा है. इस आर्टिकल में उन्होंने हिंदुस्तान और पाकिस्तान के अल्पसंख्यंकों की जनसंख्या को लेकर सवाल उठाए है. नित्यानन्द राय ने लिखा कि संसद के दोनों सदनों में जवाब देते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने बेहद स्पष्टता से जो कहा उसके बाद किसी के मन में कोई संदेह नहीं रहना चाहिए.


अपने आर्टिकल में राय ने लिखा, उन्होंने कहा "नेहरू-लियाकत समझौते में भारत और पाकिस्तान ने अपने अल्पसंख्यकों का ध्यान रखने का करार किया, लेकिन पाकिस्तान ने इस करार का पूरा पालन नहीं किया. 1947 में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी 23 फीसदी थी. 2011 में ये 3.7 फीसदी पर आ गई. 1951 में भारत में मुस्लिम 9.8 फीसदी थे. आज 14.23 फीसदी हैं. हमने किसी के साथ भेदभाव नहीं किया. आगे भी किसी के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा''


उन्होंने आगे लिखा, ''ये कानून किसी एक धर्म के लोगों के लिए नहीं लाया गया है. ये इन तीन देशों से आए सभी प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के संरक्षण के लिए है. इसलिए इसमें आर्टिकल-14 का उल्लंघन नहीं होता. यह सच है कि अगर पाकिस्तान द्वारा नेहरू-लियाकत समझौते का ठीक से पालन किया होता तो आज शरणर्थियों को भारत में शरण नहीं लेनी पड़ती. अगर अफगानिस्तान में सिख समुदाय के लोगों के साथ धार्मिक प्रताड़ना नहीं होती तो उन्हें भी भारत में शरण नहीं लेनी पड़ती."


नित्यानंद राय ने अपने आर्टिकल में सीएए का जिक्र करते हुए ये भी लिखा, "नागरिकता संशोधन कानून ने किसी भी देश के किसी भी विदेशी को भारत की नागरिकता लेने से नहीं रोका है, बशर्ते वह कानून के तहत मौजूदा योग्यता को पूरा करे. पिछले छह सालों के दौरान लगभग 2830 पाकिस्तानी नागरिकों, 912 अफगानी नागरिकों और 172 बांग्लादेशी नागरिकों को भारतीय नागरिकता दी गई है. इनमें कई व्यक्ति तीन देशों में बहुसंख्यक समुदाय से हैं. साथ ही नागरिकता कानून के खंड 5 और 6 के तहत विदेशी व्यक्ति के लिए नैचुरलाइजेशन और पंजीकरण से नागरिकता के प्रावधान जस के तस मौजूद रहेंगे."


कांग्रेस और विपक्ष पर लगाया हिंसा भड़काने का आरोप
राय ने अपने लेख में कांग्रेस समेत विपक्ष पर आरोप लगाए. उन्होंने लिखा, "कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल असम सहित पूरे नार्थ-ईस्ट में हिंसा भड़काने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि केंद्र सरकार असम समझौते को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है. गृह मंत्रालय की एक स्थाई समिति है जो असम समझौते के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करती है. यह विधेयक अनुच्छेद 371 के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता है''


राय ने आगे लिखा, ''सरकार पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों की भाषाई, सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को संरंक्षित करने को लेकर कटिबद्ध है." उन्होंने आगे लिखा, "दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार सहित देश के अनेक हिस्सों में विरोध के नाम पर हिंसा और आगजनी को राजनीतिक समर्थन कौन दे रहा था, इससे देश की जनता वाकिफ हो चुकी है. जो लोग आज इस कानून का विरोध कि रहे हैं अगर वे एक बार शरणर्थियों के कैंप में जाकर उनकी दयनीय दशा और पीड़ा को देखें तो शायद वो भी इस कानून का विरोध नही करेंगे."


देश की मशहूर हस्तियों ने माना था कि प्रताड़ित शरणार्थियों को नागरिकता देनी चाहिए

राय ने लिखा, "आश्चर्यजनक है कि जो दल इस कानून का आज विरोध कर रहे हैं, वो शायद अपना इतिहास भूल चुके हैं. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, इंदिरा गांधी, जे. बी. कृपलानी, अबुल कलाम आजाद, दिग्गज समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया, कम्युनिस्ट पार्टी के एच.एन मुखर्जी जैसे नेताओं ने भी कभी न कभी यह स्वीकार किया है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक रूप से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करने के लिए उन्हें भारत की नागरिकता दी जानी चाहिए. 2003 में यूपीए शासनकाल में प्रधानमंत्री रह चुके डॉ. मनमोहन सिंह ने भी राज्यसभा में पाकिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा की मांग की थी. ममता बनर्जी और प्रकाश करात भी इस मुद्दे को पहले उठा चुके हैं. यह दुभाणग्यपूर्ण है कि वे आज विरोध कि रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार ने दुर्दशा का दंश झेल रहे उन लोगों के जीवन को गरिमा प्रदान की है."


नित्यानंद राय ने दावा किया है, विपक्ष के नेताओं द्वारा इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताया जा रहा है, लेकिन यहां पर एक तथ्य ध्यान में रखा जाना चाहिए कि अनुच्छेद-14 तर्कसंगत वर्गीकरण की इजाजत देता है. तर्कसंगत वर्गीकरण के आधार पर भारत के संविधान व्यवस्था में अनेक कानून प्रभावी रूप से लागू हैं. अनुच्छेद-14 के हवाले से इस कानून पर संदेह करना, सिर्फ भ्रामक प्रचार को बढ़ावा देने जैसा है. नागरिकता कानून को लेकर एक और झूठ फैलाया जा रहा है कि यह मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव करता है क्योंकि उन्हें इससे बाहर रखा गया है. परंतु यह कानून जिन तीन देशों से संबंधित है, वे इस्लामिक धर्म घोषित किए देश हैं, लिहाजा वहां मुस्लमानों के धार्मिक प्रताड़ना का सवाल ही नहीं उठता है. प्रताड़ना इन तीन देशों के अल्पसंख्यक यानी हिंदू, बौद्ध, सिख, ईसाई, जैन और पारसी समुदाय को झेलनी पड़ी है, इसलिए यह कानून उन्हें भारत की नागरिकता देने के संबंध में है.


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