क्यों पहली बार स्वतंत्र भारत में बिना मुस्लिम मंत्री के बिहार सरकार? जानिए वजह
एनडीए की सीट पर एक भी मुस्लिम का चुनकर विधानसभा ना पहुंचना. एनडीए की ओर से सिर्फ जेडीयू ने ही अपने कोटे से 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था, लेकिन उन सभी चुनाव में शिकस्त का सामना करना पड़ा. ऐसे में अब एक ही रास्ता है मुस्लिम चेहरे को मंत्रिमंडल में लाने का और वो है- विधानपरिषद से चुनकर लाना.
बिहार में नीतीश कुमार ने लगातार चौथे कार्यकाल के लिए सोमवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. उनके साथ पहली बार ऐसा हुआ कि बिहार में दो-दो उपमुख्यमंत्री पद के लिए शपथ ली गई हो. पहली बार किसी महिला को राज्य के उप-मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी दी गई. इसके साथ ही, पहली बार यह भी देखने को मिला है कि नीतीश की कैबिनेट में कोई भी मुस्लिम चेहरा मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुआ.
दरअसल, इसकी वजह कि एनडीए की सीट पर एक भी मुस्लिम का चुनकर विधानसभा ना पहुंचना. एनडीए की ओर से सिर्फ जेडीयू ने ही अपने कोटे से 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था, लेकिन उन सभी चुनाव में शिकस्त का सामना करना पड़ा. ऐसे में अब एक ही रास्ता है मुस्लिम चेहरे को मंत्रिमंडल में लाने का और वो है- विधानपरिषद से चुनकर लाना.
नीतीश कुमार के कैबिनेट में इस बार वैसे तो भूमिहार, दलित, ब्राह्मण, राजपूत और यादव इन सभी वर्गों के नुमाइंदों को शामिल या गया है.
गौरतब है कि बिहार विधानसभा चुना में इस बार मुस्लिम प्रतिनिधियों की संख्या इस बार कम होकर सिर्फ 19 पर सिमट गई है. इस बार एआईएमआईएम के 5 और आरजेडी के 8 मुस्लिम प्रत्याशी जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं. जबकि, इसके अलावा सीपीआई और बीएसपी के 1-1 और चार कांग्रेस के मुस्लिम विधायक बने हैं। पिछले चुनाव की बात करें तो 2015 के चुनाव में 24 मुस्लिम प्रत्याशी जीतकर बिहार विधानसभा पहुंचे थे.
गौरतलब है कि बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन ने 125 सीटें जीत हासिल की है. जबकि, महागठबंधन सिर्फ 110 सीट पर ही सिमट कर रह गई. इनमें आरजेडी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी तो वहीं कांग्रेस सिर्फ 19 सीटें ही हासिल कर पाई. जबकि, वाम दलों ने 16 सीटों पर सिक्का जमाया. एनडीए में बीजेपी 74 सीटें जीतकर दूसरी बड़ी पार्टी बनी है. जबकि उसकी सहयोगी जेडीयू महज 43 सीटें हासिल कर तीसरे नंबर की पार्टी रह गई है. हम और वीआईपी पार्टी को चार-चार सीटें मिली हैं.