निज़ामुद्दीन मरकज़ मामले की CBI जांच की ज़रूरत नहीं, केंद्र का SC में हलफनामा
तबलीगी मरकज मामले में पुलिस की तरफ से की जा रही जांच को सरकार ने सही बताया है. सरकार के हलफनामे में कहा गया है- 21 मार्च को ही दिल्ली पुलिस ने तबलीगी जमात के मुखिया मौलाना साद को मरकज में जमा लोगों को वापस भेजने के लिए कहा था.
नई दिल्ली: तब्लीगी मरकज मामले की सीबीआई जांच से केंद्र सरकार ने मना किया है. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में सरकार ने कहा है कि मामले की पुलिस जांच सही दिशा में चल रही है. इसलिए सीबीआई जांच की कोई जरूरत नहीं है. सरकार ने 27-28 मार्च को दिल्ली के आनंद विहार बॉर्डर पर बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों के जमा होने के मामले की जांच की मांग को भी गैरजरूरी बताया है.
क्या है याचिका सुप्रिया पंडिता नाम की याचिकाकर्ता ने दोनों मामलों में साज़िश की आशंका जताते हुए जांच की मांग की थी. आनंद विहार और गाजीपुर बॉर्डर पर मजदूरों के जमा होने के मामले में याचिकाकर्ता का कहना था कि जिस तरह से मजदूरों के बीच अफवाह फैली और फिर उन्हें बसों के जरिए दिल्ली की सीमा तक पहुंचाया गया, इसकी विस्तृत जांच की जरूरत है. ताकि यह देखा जा सके कि कहीं इस मामले में कोई साजिश तो नहीं थी और लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई भी हो सके.
तबलीगी जमात मामले में याचिकाकर्ता का कहना था कि जिस तरह से मरकज की इमारत में हजारों की संख्या में भारत और भारत के बाहर के लोग जमा थे, इसमें पुलिस और प्रशासन की लापरवाही साफ नजर आती है. मरकज में जो हुआ वह सिर्फ गलती थी या उसके पीछे कोई साजिश थी? मामले में क्या कुछ सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत भी थी? इन पहलुओं की जांच सीबीआई से करवाई जानी चाहिए.
सरकार का जवाब केंद्र सरकार ने दोनों बिंदुओं का एक ही हलफनामे में जवाब दिया है. मजदूरों के दिल्ली के बॉर्डर पर मजदूरों के जमा होने के मामले में सरकार ने कहा है- लॉक डाउन के ऐलान के बाद मजदूरों को आश्रय और भोजन पहुंचाने की पर्याप्त व्यवस्था की गई. फिर भी कई मजदूर भविष्य में स्थिति और खराब होने की आशंका और दिल्ली के बॉर्डर पर लोगों को गांव वापस भेजने के लिए बसों का इंतजाम होने की अफवाह के चलते आनंद विहार और गाजीपुर बॉर्डर पर जमा हो गए. इसके बाद पुलिस और प्रशासन ने सक्रियता दिखाई. मजदूरों के वहां पहुंचने पर अंकुश लगाया. जो मजदूर जमा हो गए थे, उन्हें धीरे-धीरे समझा-बुझाकर वापस भेजा गया. लोगों को बसों में भरकर बॉर्डर पर छोड़ रहे ड्राइवरों पर मुकदमा दर्ज किया गया. दिल्ली के उपराज्यपाल ने इस मामले में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखी. खुद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपने दो अधिकारियों को निलंबित कर रखा है. इसलिए, सरकार का मानना है कि मामले में किसी तरह की आपराधिक जांच की जरूरत नहीं है.
'जमात ने नहीं माने निर्देश' तबलीगी मरकज मामले में पुलिस की तरफ से की जा रही जांच को सरकार ने सही बताया है. सरकार के हलफनामे में कहा गया है- 21 मार्च को ही दिल्ली पुलिस ने तबलीगी जमात के मुखिया मौलाना साद को मरकज में जमा लोगों को वापस भेजने के लिए कहा था. लेकिन इसका पालन नहीं हुआ. उल्टे यह जानकारी सामने आई है कि मौलाना साद लोगों को वहीं रुके रहने और मरकज में शामिल होने के लिए कह रहा है. लॉकडाउन के ऐलान के साथ केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार ने भी सोशल डिस्टेंसिंग जैसे कई मसलों पर निर्देश जारी किए. लेकिन तबलीगी जमात के लोगों ने जानबूझकर सभी निर्देशों की उपेक्षा की. ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता है कि पुलिस और प्रशासन की तरफ से तबलीगी मरकज मामले में कोई लापरवाही बरती गई.
सरकार ने यह भी बताया है कि दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच मामले की बहुत तेजी से जांच कर रही है. जांच के दौरान यह पाया गया कि कई विदेशियों ने वीजा की शर्तों का उल्लंघन किया है. टूरिस्ट वीजा पर भारत आने के बाद उन्होंने धार्मिक गतिविधि में हिस्सा लिया. इसके साथ ही पुलिस तबलीगी जमात के संचालकों की भूमिका की गहराई से जांच कर रही है. अब तक 900 से भी ज्यादा विदेशी जमातियों से पूछताछ की जा चुकी है. जांच न सिर्फ तेज रफ्तार से चल रही है, बल्कि उचित दिशा में है. कानून में तय समय सीमा के भीतर निचली अदालत में चार्जशीट दाखिल कर दी जाएगी. इसलिए, मामले की जांच सीबीआई को सौंपने की कोई जरूरत नहीं है.
2 हफ्ते टली सुनवाई आज इस मामले पर हुई थोड़ी देर की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने सरकार के हलफनामे पर जवाब देने की अनुमति मांगी. सुप्रीम कोर्ट ने इसकी इजाजत देते हुए सुनवाई को 2 हफ्ते के लिए टाल दिया है.