नई दिल्ली: 2019 लोकसभा चुनाव से करीब एक साल पहले संसद में मोदी सरकार को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा. विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव 126 के मुकाबले 325 मतों से गिर गया. इसपर कल देर रात तक चर्चा होती रही. वहीं उसके बाद करीब साढ़े 11 बजे वोटिंग कराई गई. मत-विभाजन में 451 सदस्यों ने हिस्सा लिया जिसमें अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 126 वोट पड़े जबकि विरोध में 325 मत पड़े.
संख्याबल पर गौर करें तो अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्ष दलों को हार मिलेगी यह पहले से मालूम था. दरअसल, विपक्ष दल हार के बहाने ही सही अविश्वास प्रस्ताव पर यह देखना चाहती थी कि उसकी एकजुटता कहां ठहरती है. वहीं सत्तापक्ष भी 2019 लोकसभा चुनाव से पहले यह जानना चाहती थी कि उसके सहयोगियों का उसपर कितना विश्वास अब भी बना हुआ है.
विपक्ष
अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में सिर्फ 126 मत मिला. लेकिन विपक्ष में अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में स्पष्ट रूप से खड़े दलों के सांसदों की कुल संख्या 141 थी. यानि विपक्ष को 15 सांसदों का वोट नहीं मिला. 141 सांसदों में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के 64, टीएमसी के 34, टीडीपी के 16, वामदलों के 10, समाजवादी पार्टी के सात, आम आदमी पार्टी के चार, एआईयूडीएफ के तीन, आरएलडी के एक, लोकदल के दो शामिल हैं.
सत्तापक्ष
वहीं सत्तापक्ष को 325 वोट मिले. बीजेपी ने दावा किया कि पहले से खिलाफ रही तमिलनाडु में सत्तारूढ़ एआईएडीएमके (37) ने अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में वोट किया. संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार ने कहा, ‘‘जैसा कि मैंने आपको बताया , हमें एनडीए के बाहर के दलों का भी समर्थन मिला. अन्नाद्रमुक ने हमारा समर्थन किया.'' बीजेडी, टीआरएस और शिवसेना ने सदन का बहिष्कार किया. लोकसभा में बीजेडी के 19, टीआरएस के 11 और शिवसेना के 18 सांसद हैं. शिवसेना ने एनडीए में होने के बावजूद वोटिंग का बहिष्कार किया.
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आपको बता दें कि एनडीए में शामिल सांसदों की संख्या 313 हैं. जिसमें से अगर शिवसेना के 18 सांसदों को हटा दिया जाए तो 295 सांसद बचते हैं. वहीं सरकार के पक्ष में 325 वोट पड़े. दरअसल, 37 सीटों वाली एआईएडीएमके ने सरकार के पक्ष में वोट किया. अगर इन वोटों को जोर दिया जाए तो यह आंकड़ा 332 पर पहुंच जाता है. इससे साफ है कि एनडीए के पक्ष वाले कई सांसदों ने भी वोटिंग से दूरी बनाई.
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