कपिल सिब्बल के खिलाफ नहीं चलेगा अवमानना का मुकदमा, सुप्रीम कोर्ट को लेकर की थी टिप्पणी
Kapil Sibal: कपिल सिब्बल के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अवमानना की कार्रवाई शुरू नहीं की जाएगी. अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने इसके लिए अनुमति नहीं दी है. जानिए आखिर पूरा मामला है क्या.
Kapil Sibal Remarks On SC: सरकार के सर्वोच्च विधि अधिकारी अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल (K. K. Venugopal) ने उच्चतम न्यायालय के बारे में राज्यसभा सदस्य एवं वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के बयान के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई (Contempt Proceedings) की अनुमति देने से इनकार कर दिया है. बता दें कि सिब्बल ने 6 अगस्त को यहां आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान उच्चतम न्यायालय के कुछ हालिया फैसलों को लेकर आलोचनात्मक बयान दिए थे.
वेणुगोपाल ने कहा है कि सिब्बल के पूरे भाषण को सम्पूर्णता में पड़ताल करने के बाद उन्होंने पाया कि राज्यसभा सदस्य द्वारा शीर्ष अदालत और उसके फैसलों की आलोचना का मुख्य उद्देश्य यह था कि अदालत न्याय वितरण प्रणाली के व्यापक हितों में उनके बयान पर ध्यान दे.
अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल के खिलाफ अवमानना का मुकदमा चलाने की अनुमति देने से मना किया। सिब्बल ने SC पर भरोसा न होने का बयान दिया था। लेकिन वेणुगोपाल ने कहा है कि सिब्बल ने SC के फैसले ज़मीन पर लागू न होने के आधार पर ऐसा कहा। यह अवमानना नहीं है..1/2 pic.twitter.com/UErCrfOW3J
— Nipun Sehgal (@Sehgal_Nipun) September 2, 2022
'मैं अवमानना की कार्रवाई से इनकार करता हूं'
शीर्ष विधि अधिकारी ने वकील विनीत जिंदल (Vineet Jindal) को लिखे अपने पत्र में कहा, 'मुझे ऐसा नहीं लगता है कि उन बयानों का उद्देश्य अदालत को बदनाम करना या संस्था में जनता के विश्वास को प्रभावित करना था. मैं अवमानना की कार्रवाई से इनकार करता हूं.'
गौरतलब है कि विनीत जिंदल ने कपिल सिब्बल के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू करने के लिए अटॉर्नी जनरल की सहमति मांगी थी. न्यायालय अवमानना अधिनियम की धारा 15 के अनुसार, शीर्ष अदालत के समक्ष आपराधिक अवमानना कार्रवाई शुरू करने के लिए अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल की अनुमति एक शर्त है.
'कपिल सिब्बल के बयान अदालत पर आरोप नहीं लगाते'
के. के. वेणुगोपाल ने कहा कि इन बयानों का कोई भी हिस्सा अदालत पर कोई दोष या आरोप नहीं लगाता है. अटॉर्नी जनरल ने कहा कि 'शीर्ष अदालत के कुछ निर्णयों की आलोचनाओं से संबंधित बयान 'निष्पक्ष टिप्पणी' के दायरे में आएंगे, जो न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा पांच के तहत स्वीकार्य है.'
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