Lok Sabha Deputy Speaker: लोकसभा का डिप्टी स्पीकर नहीं होना 'असंवैधानिक'- कांग्रेस का सरकार पर हमला, जानिए क्या कहता है कानून
Lok Sabha में बीते चार सालों से कोई डिप्टी स्पीकर नहीं है. अब इस मुद्दे को कांग्रेस ने उठाया है. सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले पर केंद्र सरकार से जवाब तलब कर चुका है.
Congress On Lok Sabha Deputy Speaker: कांग्रेस ने बीजेपी 2.0 सरकार बनने के चार बाद भी लोकसभा में कोई डिप्टी स्पीकर नहीं होने का मुद्दा उठाया है. केंद्र को आड़े हाथों लेते हुए कांग्रेस पार्टी ने इसे 'असंवैधानिक' करार दिया. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भी बीते दिनों केंद्र सरकार से लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का चुनाव नहीं करने पर जवाब मांगा था. कोर्ट ने कहा था कि ये संविधान के अनुच्छेद 93 का उल्लंघन है.
कांग्रेस सांसद जयराम रमेश (Jairam Ramesh) ने ट्विटर पर लिखा, "पिछले 4 सालों से लोकसभा में कोई डिप्टी स्पीकर नहीं है. यह असंवैधानिक है." जयराम रमेश ने अपने ट्वीट में उस समय की तुलना की तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने डिप्टी स्पीकर के पद के लिए एक विपक्षी नेता के नाम का प्रस्ताव रखा था.
जयराम रमेश ने किया नेहरू का जिक्र
कांग्रेस सांसद ने कहा, "मार्च 1956 में नेहरू ने विपक्षी अकाली दल के सांसद और नेहरू के आलोचक सरदार हुकम सिंह के नाम का प्रस्ताव इस पद के लिए रखा था और उन्हें सर्वसम्मति से चुना गया था." बता दें कि पिछले महीने, सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई की, जिसमें कहा गया था कि वर्तमान लोकसभा का गठन चार साल पहले हुआ था, लेकिन सदन में अभी तक कोई डिप्टी स्पीकर नहीं है.
For the last 4 years there has been no Deputy Speaker in the Lok Sabha. This is unconstitutional. What a far cry from March 1956 when Nehru proposed the name of Sardar Hukam Singh an Opposition Akali Dal MP & a critic of Nehru for the post & he was unanimously elected.
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) March 5, 2023
याचिकाकर्ता ने कुछ राज्य विधानसभाओं का भी उल्लेख किया है, जिन्होंने अपने संबंधित डिप्टी स्पीकर नहीं चुने हैं. याचिकाकर्ता ने कहा, "लोकसभा और विधानसभाओं के डिप्टी स्पीकर का चुनाव न होना स्वस्थ लोकतांत्रिक कामकाज के खिलाफ है."
आखिर ये जरूरी क्यों?
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील डी. मखीजा के मुताबिक, 10वीं लोकसभा से डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को देने की परंपरा शुरू हुई थी. याचिकाकर्ता ने भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के.जी बालाकृष्णन का हवाला दिया, जिन्होंने बताया कि विपक्ष को डिप्टी स्पीकर का पद देने की परंपरा 1991 में शुरू हुई, जब भारतीय जनता पार्टी (BJP) के एस. मल्लिकार्जुनैया को डिप्टी स्पीकर बनाया गया था. उस समय कांग्रेस के शिवराज पाटिल लोकसभा के स्पीकर थे. इस परंपरा को अंतिम कार्यकाल तक निभाया गया.
संविधान का आर्टिकल 93 क्या कहता है
संविधान के अनुच्छेद 93 के अनुसार, संसद का निचला सदन जितनी जल्दी हो सके, सदन के दो सदस्यों को क्रमश: स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के रूप में चुनेगा. अगर स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का कार्यालय किसी वजह से रिक्त हो जाता है, तो सभा अन्य सदस्यों को पद के लिए चुनेगी. बता दें कि लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का पद 23 जून, 2019 से रिक्त है.
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