Nirbhaya case: निर्भया के गुनहगारों को कल फांसी नहीं होगी. सुबह 6 बजे चारों दोषियों को फांसी देने के लिए जो डेथ वारंट जारी किया गया था, उस पर निचली अदालत ने रोक लगा दी है. चारों दोषियों में से एक पवन की दया याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित होने के आधार पर रोक लगाई गई है. फांसी की कोई अगली तारीख पर फिलहाल तय नहीं की गई है


16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में चलती बस में 23 साल की पैरामेडिकल छात्रा के साथ गैंगरेप और उसकी हत्या के चारों दोषियों को सबसे पहले 22 जनवरी को फांसी देने के लिए डेथ वारंट जारी किया गया था. उसके बाद 1 फरवरी और फिर 3 मार्च की तारीख तय की गई. हर बार चार दोषियों में से एक के किसी न किसी कानूनी विकल्प का इस्तेमाल करने के चलते अदालत को फांसी के तारीख टालनी पड़ी.


तीन दोषियों अक्षय, विनय और मुकेश के सभी कानूनी और संवैधानिक विकल्प खत्म हो चुके हैं. यानी सुप्रीम कोर्ट न सिर्फ उनकी फांसी की पुष्टि कर चुका है, बल्कि राष्ट्रपति भी उनकी दया याचिका ठुकरा चुके हैं. लेकिन पवन के पास विकल्प बचा था, जिसका उसने इस्तेमाल किया है.


निचली अदालत के जज धर्मेंद्र राणा की कोर्ट में इस मसले पर लंबी बहस हुई. जज ने आखिरी मौके पर दया याचिका लगाई जाने पर नाराजगी जताई. उनका कहना था कि दोषियों को बार-बार मौके दिए गए हैं. हाई कोर्ट ने 5 फरवरी को 7 दिनों में सभी विकल्पों का इस्तेमाल करने का निर्देश भी दिया था. उसके बावजूद फांसी से 1 दिन पहले दया याचिका दाखिल की गई है.


सरकारी वकीलों ने भी मांग की कि पवन की अर्जी पर विचार न किया जाए. उनका कहना था कि एक दोषी के कोई अर्जी लगाने के चलते सब की फांसी रुक जाती है. इससे समाज में अच्छा संदेश नहीं जा रहा है. लेकिन पवन के वकील बार-बार कोर्ट से फांसी पर रोक की गुहार करते रहे.


वकील एपी सिंह का कहना था कि दया याचिका भेजना एक दोषी का संवैधानिक अधिकार है. राष्ट्रपति का पद देश में सर्वोच्च है. उनके पास किसी अर्ज़ी के लंबित रहते फांसी नहीं दी जा सकती है. जज ने करीब पौने 3 बजे आदेश सुरक्षित रखा. आखिरकार, 5 बजे दिए आदेश में पवन के वकील की दलील स्वीकार कर लिया.


निर्भया के दोषियों की फांसी रोकने का आदेश देते हुए जज ने लिखा है, "पीड़ित पक्ष के कड़े विरोध के बावजूद मुझे लगता है कि दोषी को सभी विकल्प का इस्तेमाल करने का मौका देना ही होगा. राष्ट्रपति के पास दया याचिका लंबित है. 3 मार्च को सुबह 6 बजे होने वाली फांसी अगले आदेश तक रोकी जाती है.“


आज इस मामले में कई और घटनाक्रम हुए. सबसे पहले सुबह 11 बजे सुप्रीम कोर्ट ने पवन की तरफ से दाखिल क्यूरेटिव याचिका को खारिज किया. इसके बाद दोपहर साढ़े 12 बजे के करीब निचली अदालत के जज ने फांसी पर रोक लगाने से मना किया. जज के सामने दो अर्ज़ियां थीं.


इनमें से एक पवन की तरफ से थी. उसमें सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका लंबित होने का जिक्र किया गया था. जबकि दूसरी अर्जी अक्षय की थी, जिसने राष्ट्रपति को दोबारा दया याचिका भेजने की बात कही थी. जज का कहना था कि पवन की क्यूरेटिव याचिका खारिज हो चुकी है और अक्षय एक बार दया याचिका खारिज होने के बाद दोबारा भेजना चाहता है. इसके चलते फांसी पर रोक लगाना कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है


इन अर्ज़ियों के खारिज होने के बाद पवन के वकील ने जज को राष्ट्रपति के पास दया याचिका लंबित होने की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि पवन ने पहली बार याचिका दाखिल की है. उसकी याचिका के निपटारे तक फांसी को रोक दिया जाना चाहिए. जज ने सुनवाई के दौरान नाराजगी जताने के बावजूद आखिर इस दलील को स्वीकार किया.


2014 में शत्रुघ्न चौहान मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर राष्ट्रपति के पास से दया याचिका खारिज होने के बाद भी किसी दोषी की फांसी कम से कम 14 दिन बाद ही होती है. यानी अगर राष्ट्रपति अगले तीन-चार दिन में याचिका पर फैसला लेते हैं और उसे खारिज करते हैं, तो मामला एक बार फिर निचली अदालत के जज के पास जाएगा. जज उसके 14 दिन बाद की कोई तारीख फांसी के लिए तय कर देंगे.


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