संसद में हर रोज हो रहे हंगामे के बीच विपक्ष चाहता है कि उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को उनकी कुर्सी से हटा दिया जाए. अब इसके लिए संवैधानिक प्रक्रिया अविश्वास प्रस्ताव है तो विपक्ष वो भी लेकर आ गया है, लेकिन क्या विपक्ष के पास राज्यसभा में वो नंबर गेम है, जिसके जरिए वो राज्यसभा के सभापति को उसके पद से हटा सकता है या फिर ये महज एक पॉलिटिकल स्टंट है, जिसमें विपक्ष का हर दल साझीदार है. आखिर क्या है उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ आ रहे अविश्वास प्रस्ताव की पूरी कहानी, बताएंगे विस्तार से.
राज्यसभा में एकजुट दिख रहे विपक्ष ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ पर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाया है. इसी वजह से विपक्ष जगदीप धनखड़ को उनके पद से हटाना चाहता है, जिसके लिए अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है. भारतीय संविधान कहता है कि राज्यसभा के सभापति को पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव ही एक जरिया है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 67 में उपराष्ट्रपति की शक्तियों का वर्णन किया गया है. अनुच्छेद 67 बी के मुताबिक राज्यसभा के सदस्यों के बहुमत और लोकसभा की सहमति से उपराष्ट्रपति को उनके पद से हटाया जा सकता है. इसके लिए 14 दिन पहले नोटिस देना जरूरी होता है.
तो विपक्ष ने संविधान के हिसाब से 10 दिसंबर को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ राज्यसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया है. भारतीय राजनीति के इतिहास में ये पहला मौका है, जब देश के उपराष्ट्रपति के खिलाफ विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया है. विपक्षी दलों कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी और दूसरे कई छोटे दलों के 65 सांसदों ने इस अविश्वास प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन सवाल है कि क्या ये अविश्वास प्रस्ताव सदन में टिक पाएगा.
इसका जवाब है नहीं. सबसे पहले तो विपक्ष को राज्यसभा में ही बहुमत जुटाना होगा. फिलहाल राज्यसभा के सदस्यों की संख्या है 231. यानी कि बहुमत के लिए विपक्ष के पास कम से कम 116 सांसद होने ही चाहिए. जो अविश्वास प्रस्ताव आया है, उसपर महज 70 सांसदों के ही हस्ताक्षर हैं. तो विपक्ष को अब भी राज्यसभा में अविश्वास प्रस्ताव पास करवाने के लिए कम से कम 46 सांसदों का समर्थन चाहिए, जो उसे मिलता नहीं दिख रहा है क्योंकि बीजेपी के अपने 95 सांसद हैं. 6 नॉमिनेटेड हैं. जदयू के 4 हैं. बाकी एनडीए के घटक दल जैसे कि देवगौड़ा की जनता दल सेक्युलर, अजित पवार की एनसीपी, जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल, एकनाथ शिंदे की शिवसेना, उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोकमोर्चा और अठावले की रिपब्लिकन पार्टी समेत दूसरे दलों को मिलाकर एनडीए के राज्यसभा सांसदों की संख्या 120 के पार है, जो बहुमत से ज्यादा है.
ऐसे में विपक्ष मिलकर भी राज्यसभा से अविश्वास प्रस्ताव को पास नहीं करवा पाएगा. बाकी अगर जोड़-घटाव करके विपक्ष ने राज्यसभा में कुछ खेल कर भी लिया, तो लोकसभा में विपक्ष को मुश्किल होगी क्योंकि अभी का विपक्ष वो विपक्ष नहीं है, जो 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान इंडिया के तौर पर था. अभी विपक्ष का इंडी अलायंस टूट सा गया है और हो सकता है कि कुछ दिनों में ये खंड-खंड होकर बिखर भी जाए. ऐसे में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ आया अविश्वास प्रस्ताव एक पॉटिलिकल स्टंट से ज्यादा और कुछ भी साबित होने वाला नहीं है.
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