सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (22 अप्रैल) को उस जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें केंद्र और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को 12वीं कक्षा के बाद मौजूदा पांच साल के एलएलबी पाठ्यक्रम की जगह तीन साल के पाठ्यक्रम संचालन की व्यवहार्यता तलाशने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था.


मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जे बी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि पांच वर्षीय एलएलबी (बैचलर ऑफ लॉ) पाठ्यक्रम सही चल रहा है और इसमें छेड़छाड़ करने की कोई जरूरत नहीं है. वकील एवं याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह की दलीलें सुनने के बाद सीजेआई ने कहा, 'याचिका वापस लेने की अनुमति दी जाती है.'


सीजेआई ने कुछ नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, ‘‘तीन साल का कोर्स भी क्यों हो. वे हाई स्कूल के बाद ही वकालत शुरू कर सकते हैं.’’ उन्होंने कहा कि पांच साल ‘‘भी कम हैं.’’ वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि ब्रिटेन में भी कानून का पाठ्यक्रम तीन साल का है और यहां पांच साल का एलएलबी पाठ्यक्रम 'गरीबों, विशेषकर लड़कियों के लिए निराशाजनक' है.


सीजेआई ने दलीलों से असहमति जतायी और कहा कि इस बार 70 प्रतिशत महिलाएं जिला न्यायपालिका में आयीं और अब अधिक लड़कियां कानून के क्षेत्र में आ रही हैं. सिंह ने इस संबंध में बीसीआई को अभ्यावेदन देने की छूट के साथ जनहित याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी. पीठ ने इसे अस्वीकार कर दिया और केवल जनहित याचिका वापस लेने की अनुमति दी.


जनहित याचिका में तीन साल के एलएलबी पाठ्यक्रम की व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित करने के लिए बीसीआई और केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था. वर्तमान में, छात्र प्रमुख राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों (एनएलयू) द्वारा अपनाए गए कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (सीएलएटी) के माध्यम से कक्षा 12 के बाद पांच वर्षीय एकीकृत कानून पाठ्यक्रम में प्रवेश ले सकते हैं. छात्र किसी भी विषय में स्नातक करने के बाद तीन साल का एलएलबी कोर्स भी कर सकते हैं.


याचिका में कहा गया है कि 'बैचलर ऑफ साइंस (बीएससी), बैचलर ऑफ कॉमर्स (बीकॉम) और बैचलर ऑफ आर्ट्स (बीए) पाठ्यक्रम जैसे 12वीं कक्षा के बाद तीन वर्षीय बैचलर ऑफ लॉ कोर्स शुरू करने की व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाने के लिए केंद्र और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को निर्देश देने का अनुरोध है.'


इसमें दावा किया गया कि एकीकृत पाठ्यक्रम के लिए पांच साल की 'लंबी अवधि' 'मनमानी और तर्कहीन' है क्योंकि यह विषय के लिए 'आनुपातिक नहीं' और छात्रों पर 'अत्यधिक वित्तीय बोझ' डालती है. याचिका में पूर्व कानून मंत्री राम जेठमलानी का उदाहरण दिया गया था जिन्होंने सिर्फ 17 साल की आयु में अपनी विधि कंपनी शुरू की थी. याचिका में प्रख्यात न्यायविद् और पूर्व अटॉर्नी जनरल स्वर्गीय फली नरीमन का भी उदाहरण दिया गया जिन्होंने 21 साल की उम्र में कानून की पढ़ायी पूरी की.


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