नई दिल्ली: कृषि आय को इनकम टैक्स के दायरे में लाने का सरकार ने पूरजोर तरीके से खंडन किया है. एक तरफ वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साफ किया कि ऐसा कोई इरादा नहीं है, वहीं नीति आयोग ने ऐसे प्रस्ताव को सदस्य की व्यक्तिगत राय मानते हुए पूरे मामले से पल्ला झाड़ने की कोशिश की है.


दरअसल, मंगलवार को तीन साल की कार्ययोजना का खाका पेश करते समय नीति आयोग के सदस्य विवेक देबरॉय ने कहा था कि कि इनकम टैक्स का दायरा बढ़ाने का एक रास्ता छूट को खत्म करना है, वही दूसरा विकल्प ग्रामीण क्षेत्र को इनकम टैक्स के दायरे में लाने और खास तौर पर निश्चित सीमा से ज्यादा खेती बाड़ी से हुई कमाई पर इनकम टैक्स लगाना हो सकता है. देबरॉय के इस बयान को विभिन्न समाचार माध्यमों में नीति आय़ोग के आधिकारिक बयान के तौर पर पेश किया गया जिसके बाद खुद वित्त मंत्री अरुण जेटली को आगे आना पड़ा.


बुधवार को एक बयान में जेटली ने कहा, “नीति आय़ोग की रिपोर्ट में कृषि आय पर इनकम टैक्स से जुड़ा पैराग्राफ मैने पढ़ा है. इस मुद्दे पर किसी भी तरह के भ्रम को दूर करने के लिए मैं साफ करना चाहता हूं कि केद्र सरकार का कृषि आय पर किसी भी तरह का टैक्स लगाने की कोई योजना नहीं है. अधिकारों के संवैधानिक बंटवारे के तहत कृषि आय पर टैक्स लगाना केंद्र सरकार के कार्यक्षेत्र में नहीं आता.”


वहीं दूसरी ओऱ नीति आयोग का कहना है कि कई समाचार माध्यमों में नीति आय़ोग के तीन साल की कार्ययोजना के मसौदे का हवाला देते हुए इनकम टैक्स का आधार बढाने के तहत कृषि आय पर टैक्स लगाने के बारे में सुझाव का जिक्र किया गया है.


आयोग ये साफ कहना चाहता है कि ये ना तो उसका आधिकारिक मत है औऱ ना ही कार्ययोजना के मसौदे में कहीं इसका जिक्र है. ये मसौदा 23 अप्रैल को आयोग की गवर्निंग काउंसिल की बैठक में पेश किया गया है. बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी, जबकि 27 राज्यों के मुख्यमंत्री उसमें शामिल हुए थे. आयोग ने ये भी साफ किया कि कृषि आय पर टैक्स लगाने से जुड़ा मत उसके सदस्य विबेक देबरॉय का व्यक्तिगत मत है ना कि आयोग का सुझाव.


कृषि आय को आयकर को दायरे में लाने के लिए देबरॉय ने कुछ आंकड़ों का सहारा लिया था. देबरॉय ने दलील थी;




  1. देश में मोटा-मोटी 22.5 करोड़ परिवार है, जिसमें लगभग दो-तिहाई ग्रामीण इलाके में रहते है. 

  2.  ग्रामीण इलाके में रहने वाले आम तौर पर इनकम टैक्स के दायरे से बाहर हैं, क्योंकि वहां पर कमाई का मुख्य जरिया खेती-बाड़ी है. 

  3.  अब ऐसे में शहरों में रहने वाले 7.5 करोड़ परिवार बचते हैं जिनपर इनकम टैक्स लगाया जा सकता है. 

  4.  इनकम टैक्स में छूट के लिए तय सीमा के मद्देनजर 7.5 करोड़ में से भी आधे निकल जाते हैं. 

  5.  यानी कुल मिलाकर 3.75 करोड़ से लेकर ज्यादा से ज्यादा 4.5 करोड़ परिवार ऐसे बचते हैं जो इनकम टैक्स का आधार बनते हैं.


शहरी इलाकों में रहने वाले ज्यादात्तर लोग वेतनभोगी होते हैं जिन्हे कई तरह की छूट मिलती है. अब इन सब को देखते हुए टैक्स का आधार बढ़ाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है. इसी सब को देखते हुए ग्रामीण क्षेत्र और खास तौर पर खेती बारी से तय सीमा से ज्यादा की कमाई को इनकम टैक्स के दायरे में लाने का देबरॉय ने सुझाव दिया.