नोएडा: IQAir की वर्ल्ड एयर क्वालिटी की 2019 रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली और गाज़ियाबाद विश्व की सबसे ज़्यादा प्रदूषित जगहों में शामिल हुए थे. वहीं विश्व के सबसे प्रदूषित 10 शहरों में से भारत के 6 शहर आए, जिनमें दिल्ली और एनसीआर का गाज़ियाबाद, नोएडा, गुड़गाव, ग्रेटर नोएडा थे. लेकिन विश्व के सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहरों में रहने का मतलब क्या होता है और इसका असर कितना गहरा होता है सिर्फ आंकड़ों से समझना मुश्किल है.


दिल्ली के कई इलाके दिवाली के बाद 999 तक की गंभीर श्रेणी में पहुंच गए थे. इन आंकड़ों द्वारा वायु प्रदूषण के स्तर का आभास शायद ना हो लेकिन उस व्यक्ति को इन आंकड़ों का असर महसूस होता है, जो बेहद साफ हवा की गुणवत्ता से बेहद गंभीर की श्रेणी में प्रवेश करता है.


40 दिनों से एक कमरे में कैद हैं आरुषि


नोएडा के क्लो काउंटी की रहने वाली आरुषि को बढ़ते वायु प्रदूषण के स्तर के कारण करीब एक हफ्ते ऑक्सीजन सपोर्ट के लिए अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा. अब घर आने के बाद भी 40 दिनों से एक कमरे में एयर प्यूरीफायर के साथ कैद हैं और सांस लेने में आनी वाली परेशानियों के चलते उन्हें दिन में दो बार कंप्रेसर नेबुलाइजर का इस्तेमाल भी करना पड़ रहा है.


आरुषि ने एबीपी न्यूज से बातचीत में कहा, "जब मैं भारत में आई, एयरपोर्ट पर पहुंचने के साथ ही प्रदूषण महसूस होने लगा. अक्टूबर से मुझे ज़्यादा दिक्कत होनी शुरू हो गई और नवंबर 10 तक अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. मैं अस्पताल में करीब एक हफ्ते तक भर्ती थी. मुझे इमरजेंसी में ही ऑक्सीजन लगा दी गई थी, एडमिट होने के बाद हर रोज़ ऑक्सीजन मास्क लगाया जा रहा था. उल्टे होकर सोने को कहा गया था ताकि फेफड़ों को ज़्यादा हवा आए. सोते वक्त भी ऑक्सीजन सिलिंडर लगा हुआ था."


सांस लेने में दिक्कत, आखों मे जलन की शिकायतें


पहले सिर्फ दिवाली के मौसम में सांस लेने में तकलीफ होती थी लेकिन अब सर्दियां करीब आने के साथ ही सांस लेने में दिक्कत, आखों मे जलन इत्यादि शिकायतें बेहद आम हो गई हैं. आरुषि यूनाइटेड किंगडम (UK ) की शेफील्ड नाम की जगह रह रही थी, जहां वो एमएससी की पढ़ाई कर रही हैं और छुट्टियों में घर आई हैं. इस जगह का AQI दो या तीन ही रहता है. वहीं दिल्ली एयरपोर्ट पर लैंड करने के साथ ही उन्हें सांस लेने में तकलीफ शुरू हो गई जो कि दिवाली के करीब आने तक गंबीर हो गई और ऑक्सीजन के लिए एक्सटर्नल सपोर्ट पर निर्भर करना पड़ा.


आरुषि कहती हैं, "मैं शेफील्ड रह रही थी और वहां का AQI दो या तीन रहता था. जिस वक्त मैं नोएडा अपने घर आई, तब यहां का AQI 400-500 के अंतर्गत था. डॉक्टर ने कहा कि लंग्स में साफ हवा नहीं जा पा रही है इसलिए इंफेक्शन हो गया है. इसलिए मुझे दिवाली पर भी कमरे में ही रहना पड़ा."


परिवार को करानी पड़ी कोरोना की जांच


आरुषि को सांस लेने में इतनी दिक्कत पेश आने लगी कि उनके लिए फोन पर किसी से बात करने जैसी छोटी चीज भी बहुत मुश्किल हो गई. उनके परिवार को संदेह हुआ कि सांस लेने में कमी का कारण कहीं कोरोनावायरस से संक्रमित होना तो नहीं? परिवार ने कोरोना की जांच तीन बार कराई लेकिन नतीजे हर बार नेगेटिव ही आए. आरुषि की मां कहती हैं, "हमे लगा इसको सांस लेने में तकलीफ हो रही है, कहीं कोरोनावायरस ना हो! इसलिए हमने वायरस के तीन टेस्ट करवाए और सभी नेगेटिव आए. सीटी स्कैन में सामने आया कि फेफड़े प्रदूषण के कारण प्रभावित हैं. डॉक्टर ने बताया कि ये सब प्रदूषण के कारण हो रहा है."


गैस चैंबर बन चुकी हमारे शहर की तस्वीर हमे अंदर से खोखला करती जा रही है. ऑफिस फॉर नेशनल स्टेटिस्टिक्स के अध्ययन के मुताबिक यूके के एक इन्सान की एवरेज लाइफ एक्सपेक्टेंसी 81.16 साल है ( 2017) वहीं भारत की एवरेज लाइफ एक्सपेक्टेंसी केवल 69.19 साल ही है. इसका बहुत बड़ा कारण अगर हम प्रदूषण को कहें तो शायद गलत नहीं होगा. क्योंकि जाने अनचाहे दिल्ली में रहने वाले एक व्यक्ति एक दिन के फेफड़ों में 40 सिगरेट के बराबर धुआं तो जा ही रहा है. आरुषि की कहानी किसी बुज़ुर्ग या बीमार व्यक्ति की नहीं है , बल्कि ये दस्तक है उस आने वाले वक्त की जिसकी ओर हम बढ़ते जा रहे हैं और अब धीरे धीरे युवा भी इसकी चपेट में आता जा रहा है. फिलहाल इसका कोई निदान होता नजर नहीं आ रहा.


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