दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में 14 साल की नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता के गर्भपात से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए उसे 25 सप्ताह के गर्भ को गिराने की अनुमति दे दी. न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने यह फैसला मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद लिया. कोर्ट ने नाबालिग के अबॉर्शन के लिए उसे शुक्रवार को राम मनोहर लोहिया अस्पताल के अथॉरिटी के सामने उपस्थित होने के लिए कहा है.
जज स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट की धारा 3(बी) का हवाला देते हुए कहा, 'यौन उत्पीड़न के मामले में किसी भी महिला को गर्भपात के अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता. महिला पर मां बनने की जिम्मेदारी थोपना उसे सम्मान के साथ जीने के मानव अधिकार से दूर रखना होगा.
क्या है मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट की धारा 3
इस एक्ट में उन महिलाओं का जिक्र किया गया है, जो 24 हफ्ते तक गर्भवती होने के बाद गर्भपात करने की योग्य हैं. इस नियम में बताया गया कि यौन हमले या रेप या अनाचार की शिकार महिलाएं अबॉर्शन करा सकती हैं.
इसके अलावा नाबालिग के प्रेग्नेंट होने या गर्भावस्था के दौरान मैरिटल स्टेटस बदलने पर इस नियम के तहत गर्भपात हो सकता है. इसके अलावा शारीरिक तौर पर विकलांग महिला भी अबॉर्शन करवा सकती हैं. हालांकि दिव्यांगता के लिए भी कुछ शर्तें हैं.
जैसे जो प्रेग्नेंट महिला मानसिक तौर पर बीमार हैं वो अबॉर्शन करा सकती हैं. इसके अलावा जन्म लेने वाले बच्चे पर शारीरिक या मानसिक तौर पर गंभीर रूप से दिव्यांग होने का जोखिम हो तो अबॉर्शन करवाया जा सकता है.
क्या है मामला
पीड़िता की मां की तरफ से दायर किए गए याचिका के अनुसार मामला साल 2022 के सितंबर का है. याचिकाकर्ता की बेटी और 14 साल की नाबालिग के साथ आरोपी ने रेप किया गया. पहले तो नाबालिग ने डर के कारण इस बारे में घर में किसी को नहीं बताया, लेकिन जब कुछ महीनों बाद उसके शरीर में बदलाव होने लगे तो उसने अपनी मां को पूरी घटना की जानकारी दी. जिसके बाद मामला दर्ज किया गया.
कोर्ट को बताया गया कि पड़िता का परिवार गरीब है. उनके परिवार के सदस्य मजदूरी का काम करते हैं तो वहीं उसकी मां घर का काम करती है.
गर्भ गिराने का खर्च वहन करेगी सरकार
अबॉर्शन का फैसला सुनाने के साथ ही कोर्ट ने निर्देश दिया कि सरकार नाबालिग के गर्भ गिराने के सभी खर्च उठाएगी. अगर अबॉर्शन के मेडिकल प्रोसेस के प्रयासों के बाद भी बच्चा जीवित पैदा होता है, तो डॉक्टर इस बात का ख्याल रखेंगे कि जन्म लेने वाला बच्चा एक स्वस्थ बच्चे के रूप में विकसित हो सके.
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा, 'मां बनने के लिए तैयार हैं या नहीं इसका अधिकार महिला को मिलना चाहिए है. कोर्ट ने ये भी कहा ये यौन उत्पीड़न करने वाले व्यक्ति के बच्चे को जन्म देने के लिए पीड़िता को मजबूर करना बेहद दुखद होगा.
नाबालिग को पढ़ाया जाएगा
जज शर्मा ने संबंधित एसएचओ को यह भी निर्देश दिया कि अबॉर्शन और नाबालिक के स्वस्थ्य हो जाने के बाद उसे सरकारी स्कूल में भर्ती कराया जाए.
जज ने कहा, "सचिव, डीएसएलएसए से यह भी अनुरोध किया जाता है कि जब वे कानूनी अधिकारों के बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिए दिल्ली में सराहनीय काम कर रहे हैं, तो उन्हें एक ऐसी योजना भा तैयार करनी चाहिए, जहां ऐसे पीड़ितों को सलाह दी जा सके. उनके शिक्षा और सहायता के अधिकार के बारे में सूचित किया जाता है."
पहले भी लिए जा चुके हैं ऐसे ही फैसले
2022 के सितंबर महीने में 25 साल की एक अविवाहित महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. उनका कहना था कि वह 23 सप्ताह 5 दिन की गर्भवती है और उसने इसे समाप्त करने की मांग की थी.
महिला ने अबॉर्शन की मांग करते हुए तर्क दिया कि वो इसलिए बच्चे को जन्म नहीं दे सकती है क्योंकि अब उसकी शादी नहीं हुई और वह अविवाहित है. उसने कहा कि उसके साथी ने भी शादी करने से इनकार कर दिया है.
हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट ने उसे अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया. कोर्ट का कहना था कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स 2003 में अविवाहित महिला सहमति से उत्पन्न गर्भ को समाप्त कर सकती है या नहीं इसके बारे में कुछ नहीं बताया गया है.
इसके बाद महिला ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. सुप्रीम कोर्ट ने 21 जुलाई 2022 को एक अंतरिम आदेश में महिला को एम्स के मेडिकल बोर्ड की निगरानी में अबॉर्शन करवाने की इजाजत दे दी. मेडिकल बोर्ड ये महिला की जांच रिपोर्ट देखते हुए फैसला दिया कि वह गर्भपात करवा सकती है. इससे महिला के जीवन में कोई खतरा नहीं है.