नई दिल्ली: देश में लॉकडाउन को 50 दिन का वक्त हो रहा है. इन 50 दिनों के दौरान लगातार ऐसी तस्वीरें सामने आई जहां पर मजदूर पलायन करते हुए नजर आए हैं, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हर एक मज़दूर पलायन ही कर रहा है. अभी भी ऐसे लाखों मजदूर हैं जो भूख प्यास के बावजूद पलायन नहीं कर रहे हैं. वो उस दिन के इंतजार में बैठे हुए हैं कि कामकाज शुरू हो और वह अपनी कमाई कर सकें. जिससे कि उनको किसी राशन के लिए इंतजार ना करना पड़े और ना ही खाने के लिए लाइन में लगना पड़े.


ऐसे ही मजदूरों में से एक हैं उत्तर प्रदेश के महोबा की रहने वाली जसोदा. जो नोएडा में पिछले कई सालों से बेलदारी का काम कर रही हैं लेकिन पिछले 50 दिनों से कामकाज बिल्कुल बंद है. हालत यह हो गई है कि अब दो वक्त की रोटी के लिए भी सरकारी खाने या फिर किसी की मदद के इंतजार में दिन गुजारते हैं. इतना सब होने के बावजूद जसोदा अभी तक वापस अपने गांव नहीं गई हैं. हालांकि इनके साथ की बाकी कई महिलाएं और मजदूर पलायन कर अपने गांवों के लिए निकल गए हैं लेकिन जसोदा अभी भी इसी इंतजार में है कि जल्द से जल्द काम शुरू हो जाए. जिससे कि वह यहीं पर कमा सकें और जो पैसा बचता है उसको अपने परिवार के पास भेज सकें. जसोदा का कहना है कि हमारे पास कोई खेत है नहीं जो हम वहां खेती कर लेंगे. हम तो मज़दूरी के लिए ही गांव से इतनी दूर आए थे. गांव जाएंगे भी तो क्या मिलेगा कोई कमाई नहीं है वहां भी.


जसोदा अकेली नहीं है, जसोदा के साथ ही धर्मपाल भी इसी वजह से पलायन नहीं कर रहे. हालांकि धर्मपाल के कई साथी पिछले 50 दिनों के दौरान पलायन कर अपने-अपने गांवों और कस्बों की तरफ चले गए हैं लेकिन धर्मपाल का कहना है कि हम इस वजह से नहीं जा रहे कि अगर हम चले भी जाएंगे तब भी वहां पर भी रोजगार की समस्या तो रहेगी ही. धर्मपाल का कहना है कि अगर गांव में रोजगार होता तो हम यहां काम करने नहीं आते और इसी वजह से एक-एक दिन इसी आस में गुजार रहे हैं कि जल्द से जल्द काम शुरू हो जाए, जिससे की पहले की तरह ही पैसा कमा सकें और खा सकें. धर्मपाल का कहना है कि गांव में कोई काम था ही नहीं तभी यहां आए थे यहां से पैसा बचाकर घर वालों के पास भेजते थे.


हालांकि जसोदा और धर्मपाल जहां पर रहते हैं वहां पर पहले जितने मज़दूर होते थे अब उसमें से आधे ही बचे हैं क्योंकि आधे मजदूर पलायन कर गए हैं. लेकिन इस सब के बीच जो आधे मज़दूर अभी भी यहां रुके हुए हैं वह इसी आस में रुके हुए हैं कि जल्द से जल्द काम शुरू हो जाए. जसोदा और धर्मपाल के साथ ही और भी कई मज़दूर यहां पर काम शुरू होने के इंतजार में रुके हुए हैं. हालांकि अब यह जरूर कहना है कि अगर सरकार यह तय कर दें कि फिलहाल कामकाज शुरू नहीं हो ना तो हम भी अपने गांव चले जाएं क्योंकि यहां पर अब और दिन गुजारने मुश्किल होते जा रहे हैं.


भले ही यह कहानी नोएडा के कुछ मजदूरों की हो लेकिन इस तरह से देश में अभी भी लाखों मजदूर और कर्मचारी हैं जो इतनी मुश्किल हालातों के बावजूद भी पलायन नहीं कर रहे हैं. वह बस उसी दिन के इंतजार में हैं कि जल्द से जल्द इनका काम दोबारा शुरू हो जिससे कि यह दो वक्त की रोटी के लिए पैसा कमा सकें. क्योंकि ये जो कमाई करते हैं वो सिर्फ इनके लिए ही नहीं है बल्कि उसी कमाई में से एक हिस्सा बचा कर यह गांवों और कस्बों में रह रहे अपने परिवारों तक भी भेजते हैं.