Supreme Court On Demonetisation: उच्चतम न्यायालय ने 2016 में केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया. सर्वोच्च अदालत की संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि निर्णय लेने की प्रक्रिया महज इसलिए गलत नहीं थी कि इसकी शुरुआत सरकार की ओर से की गई थी. हालांकि, न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना ने सरकार के इस कदम पर कई सवाल उठाए. 10 प्वाइंट में इस फैसले को समझते हैं.



  1. जस्टिस एस ए नजीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने कहा कि कार्यपालिका की आर्थिक नीति से जुड़ा निर्णय होने के कारण इसे पलटा नहीं जा सकता. बेंच ने कहा कि आर्थिक मामलों में बहुत संयम बरतने की जरूरत होती है और अदालत कार्यपालिका (सरकार) के फैसले की न्यायिक समीक्षा कर उसके विवेक की जगह नहीं ले सकती. बेंच में जस्टिस नज़ीर के अलावा न्यायमूर्ति बी. आर. गवई, जस्टिस बी. वी. नागरत्ना, जस्टिस ए. एस. बोपन्ना और जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन भी शामिल थे.

  2. हालांकि, जस्टिस नागरत्ना ने आरबीआई एक्ट की धारा 26(2) के तहत केंद्र की शक्तियों के संबंध में बहुमत के फैसले से असहमति जताई. उन्होंने कहा कि 500 और 1000 रुपये की 'सीरीज' (क्रम संख्या) के नोट कानून बनाकर ही रद्द किए जा सकते थे, ना कि एक अधिसूचना के जरिए. जस्टिस नागरत्ना ने कहा, "नोटबंदी कानून लाने के लिए संसद में चर्चा होनी चाहिए थी. इसे गजट अधिसूचना के जरिए नहीं किया जाना चाहिए था. देश के लिए इतने महत्वपूर्ण विषय से संसद को अलग नहीं रखा जा सकता है."

  3. जस्टिस गवई ने कहा, "आरबीआई एक्ट की धारा 26(2) के तहत केंद्र के पास उपलब्ध शक्तियों को इस तरह सीमित नहीं किया जा सकता कि इसका उपयोग नोटों की केवल कुछ ‘सीरीज’ के लिए किया जाए न कि सभी ‘सीरीज’ के नोटों के लिए." उन्होंने कहा, "महज इसलिए कि दो पूर्व अवसरों पर नोटबंदी की कवायद विधान के जरिये की गई, यह नहीं कहा जा सकता कि इस तरह की शक्ति केंद्र सरकार के पास उपलब्ध नहीं है."

  4. वहीं, बेंच ने कहा कि आठ नवंबर 2016 को जारी अधिसूचना को अतार्किक नहीं कहा जा सकता और निर्णय लेने की प्रक्रिया के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता. बेच ने कहा कि निर्णय का इसके उद्देश्यों से तार्किक संबंध था, जैसा कि काला धन, आतंकवाद को वित्तपोषण आदि का उन्मूलन करना आदि. कोर्ट ने कहा यह प्रासंगिक नहीं है कि वे लक्ष्य हासिल हुए या नहीं.

  5. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चलन से बाहर किए गए नोटों को बदलने के लिए 52 दिनों का समय दिया गया था और इसे अब नहीं बढ़ाया जा सकता. बेंच ने कहा, "केंद्र और आरबीआई के बीच छह महीने की अवधि तक विचार-विमर्श चला था. हमने पाया है कि इस तरह का कदम उठाने के लिए यह तार्किक संबंध था."

  6. बेंच ने कहा कि अधिसूचना निर्णय लेने की प्रक्रिया में किसी तरह की कोई गलती नहीं है. इस तरह यह रद्द नहीं की जा सकती. कोर्ट ने कहा, "अधिसूचना में उपलब्ध कराई गई अवधि को अतार्किक नहीं कहा जा सकता. निर्धारित अवधि के आगे, बंद किए गए नोटों को स्वीकार करने की आरबीआई के पास स्वतंत्र शक्ति नहीं है." शीर्ष न्यायालय का फैसला, नोटबंदी के फैसले को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं पर आया है.

  7. संविधान बेंच की सबसे कनिष्ठ जज, जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि केंद्र के कहने पर सभी ‘सीरीज’ के नोटों को चलन से बाहर कर देना एक गंभीर मुद्दा है, जिसका अर्थव्यवस्था और देश के नागरिकों पर व्यापक प्रभाव पड़ा है. जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि आरबीआई ने इस मामले में स्वतंत्र रूप से विचार नहीं किया, उससे सिर्फ राय मांगी गई जिसे केंद्रीय बैंक की सिफारिश नहीं कहा जा सकता. उन्होंने कहा कि पूरी कवायद 24 घंटे में की गई.

  8. उन्होंने कहा, "मेरा मानना है कि केंद्र सरकार के अधिकार व्यापक हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल कानून के जरिए होना चाहिए, अधिसूचना जारी कर नहीं. यह जरूरी है कि देश की जनता का प्रतिनिधित्व करने वाली संसद में इस विषय पर चर्चा हो और वही इसकी मंजूरी दे." जस्टिस नागरत्ना ने अल्पमत वाले अपने फैसले में कहा कि 500 और 1000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर करने का फैसला नुकसान पहुंचाने वाला और गैरकानूनी था.

  9. नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बीजेपी ने स्वागत किया है. फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए बीजेपी ने नोटबंदी के खिलाफ मुखर रहे कांग्रेस नेता राहुल गांधी से पूछा है कि क्या वह देश से माफी मांगेंगे. वहीं रविशंकर ने प्रसाद ने कहा कि आतंकवाद की रीढ़ तोड़ने में नोटबंदी ने महत्वपूर्ण काम किया.

  10. वहीं कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि न्यायालय का फैसला केवल प्रक्रिया तक सीमित है और नोटबंदी के परिणामों से इसका कोई संबंध नहीं है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि नोटबंदी से 120 लोगों की जानें गईं, करोड़ों का रोजगार छिना, काला धन कम नहीं हुआ, नकली नोटों के मामले बढ़े. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार का नोटबंदी का निर्णय भारतीय अर्थव्यवस्था पर एक गहरे जख्म की तरह हमेशा रहेगा.


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