बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट में समलैंगिक विवाह को लेकर दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई हुई. इस मामले में अदालत ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में जवाब देने के लिए कहा है. बता दें ये नोटिस दो अलग-अलग याचिकाओं पर जारी किया गया है. एक याचिका दो महिलाओं की और से विशेष विवाह कानून के तहत शादी करने की अनमुति देने की मांग को लेकर अदालत में याचिका दाखिल की गई थी.


पिछले आठ वर्षों से एक दूसरे के साथ रह रही इन दोनो महिलाओं का कहना है कि, वे एक दूसरे से मोहब्बत करती हैं और साथ मिलकर जीवन के हर संघर्ष का सामना कर रही है. इन महिलाओं ने अपनी याचिका में कहा है कि चूंकि वे महिलाएं हैं इसलिए वे शादी नहीं कर सकतीं. ऐसे में याचिकाकर्ताओं की ओर से मांग की गई है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता दी जाए और इसे स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शामिल किया जाए.


अगली सुनवाई 8 जनवरी को होगी


जस्टिस राजीव सहाय एंडलॉ और आशा मेनन की पीठ ने याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. दिल्ली हाईकोर्ट ने नोटिस में कहा है कि, यह साधारण याचिका नहीं है, इसलिए केंद्र सरकार के प्रतिनिधि इस पर गंभीरता दिखाएं. मामले की अगली सुनवाई की तारीख 8 जनवरी तय की गई है.


याचिका में समलैंगिक शादी को मान्यता देने की मांग


इस मामले की सुनवाई के दौरान रजिस्ट्रार के वकील ने दलील दी कि सनातन धर्म के 5 हजार सालों के इतिहास में इस तरह का मामला सामने नहीं आया है. वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील मेनका गुरुस्वामी और अधिवक्ता अरुंधति काटजू व अन्य ने पीठ के सामने अपनी दलीलें रखीं. याचिका में कहा गया है,कि शादी सिर्फ दो लोगों के बीच का बंधन नहीं है बल्कि यह दो परिवारों को साथ लाता है.याचिका में यह भी कहा गया है कि संविधान का अनुच्छेद 21 के तहत अपने मनपसंद व्यक्ति से शादी करने के अधिकार की रक्षा करता है. यह अधिकारी विषम-लिंगी जोड़ों की भांति ही समलैंगिक जोड़ों पर भी पूरी तरह लागू होता है. दोनो महिलाओं ने कोर्ट से मांग की है कि सरकार को समलैंगिक शादी को मान्यता नहीं देने वाले विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने का आदेश दिया जाए।


दो समलैंगिक जोड़ों ने दाखिल की है याचिका


बता दें कि इस मामले में दो समलैंगिक जोड़ों ने याचिका दाखिल की है.एक याचिकाकर्ता ने अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करना चाहा तो उसे ऐसा करने से रोका गया. वहीं दूसरे याचिकाकर्ता ने न्यूयार्क में शादी की थी, लेकिन भारतीय कॉन्सुलेट में उनके विवाह का रजिस्ट्रेशन नहीं हो सका. इससे पहले भी एक याचिका में केंद्र ने कोर्ट में जवाब दिया था. केंद्र सरकार द्वारा अदालत में कहा गया था कि यह हमारी संस्कृति के खिलाफ है, ऐसे में इसे कानून में जगह नहीं दी गई है.


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